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________________ [ ५१ ] तीर्थकरों के लिये है श्रीकृष्ण भविष्य में तीर्थकर होने से जैनसंघ वर्तमान में भी प्रतिदिन सातवार नमस्कार करते हैं। इस बात को जैनधर्म अच्छी तरह से मानता है कि चाहे समान जीव हो चाहे विशेष जीव हो अपने किये हुये कर्म अवश्य भुगतने पड़ते हैं जैसे भ० महावीर तीर्थङ्कर होने पर भी महावीर के भव में भी उनको अपने संचित कर्म भुगतने ही पड़े थे इसी प्रकार श्रीकृष्ण ने भी कोपार्जन किये थे कि कौसंबी के बन में आपको अकेले जगॉवर के बान से शरीर छोड़ तीसरी पृथ्वी बालुकप्रभा में उत्पन्न होना पड़ा। इसी प्रकार हमारे कृष्णभक्त भी कृष्ण को बल राजा के द्वार तप करना मानते हैं यह भी एक प्रकार के कर्मों का ही फल है। ६-श्रीकृष्ण को ईश्वर अवतार परमेश्वर या कर्ताहर्ता की मान्यता कब से ? त्रिषष्ठीसिलाग पुरुष चरित्र में उल्लेख मिलता है कि जब श्रीकृष्ण कोसंबी बन में जराकुँवर के बान से शरीर छोड़ बालुका प्रभा में गये बाद बलभद्र ने दीक्षा ली और वे भी शरीर छोड़ पांचवें स्वर्ग में देव पने उत्पन्न हुए उन्होंने अपने झान से कृष्ण को बालुकाप्रभा में देखकर पूर्व भव के भ्रातृस्नेह के कारण आप भी कृष्ण के पास गये और कृष्ण को पीछला भव सुनाने से कृष्ण को भी भान हुआ और पूर्व संचित कर्मों का पश्चाताप हुआ बलभद्र का जीव देव ने कहा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकू ? इस पर कृष्णने.कहा मेरा कर्म तो मुझे भोगना ही पड़ेगा पर मैंने पूर्व भव में यदुवंश को बदनाम किया है अतः आप भरतखण्ड में जाकर देवशक्ति से मेरी और आपकी पूजा हो ऐसा प्रयत्न करो अतः बलभद्र का जीव देवता वैक्रय लब्धि से विमान बना कर एक में चक्र गदा शंख सहित पीत वस्त्र वाला कृष्ण का रूप दूसरा में हल मुसल एवं नील वसा वाला बलभद्र का रूप बनाकर भरतक्षेत्रमें आये और लोगों को कहने लगे कि हम कृष्णबलभद्र ईश्वर परमात्मा पूर्णब्रह्म हैं वैकुंठ में हमारा वास है हम स्वतंत्र घूमते हैं हमारी मान्यता करने वाले भक्तों को हम मनोवांछित सुख देते हैं हे लोगों यदि तुम तुम्हारा कल्याण चाहते हो या सुख शांति की अभिलाषा रखते हो तो श्रीकृष्ण बलभद्र की सुन्दर मूर्तियां बना कर खूब सेवा पूजा भक्ति करो जिससे वे दोनों ईश्वर तुम्हारे पर खूब प्रसन्न होंगे इत्यादि । कहा भी है कि "दुनियां मुकती है मुकाने वाला होना चाहिये" सुख शान्ति के इच्छुक लोग श्रीकृष्ण और बलदेव की स्थान २ पर मूर्तियां स्थापन कर उनको ईश्वर परमात्मा पूर्णब्रह्म कह कर सेवा भक्ति पूजा करने लगे उधर बलभद्रदेव उन भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने लगे बस फिर तो कहना ही क्या थोड़े ही समय में श्रीकृष्ण ओर वलभद्र की मतियां सवत्र फैल गई इस घटना को शायद पांच हजार वर्ष हुए हों । यही कारण है कि कृष्ण भक्त कृष्ण को होने में पांच हजार वर्ष बताते हैं। वास्तव में श्रीकृष्ण जीवित थे उस समय उनके लिये ईश्वर एवं अवतार की कल्पना किसी ने भी नहीं की थी पर उनके मरने के बाद हजारों वर्षों के पीछे वलदेव के जीव देवता ने ऊपर लिखानुसार कृष्णबलभद्र की मूर्तियों की स्थापना करवा के उनको ईश्वर परमात्मा के नाम से पुजाये थे तब से ही यह कथा चल पड़ी तत्पश्चात् तो कृष्णभक्तों ने उनके नाम पर ऐसे २ प्रन्थ भी रच डाले कि वे गोपियों के साथ नाच कूद एवं जलमज्जन करते थे महियरों का मक्खन चुग कर खाते थे इत्यादि यदि श्रीकृष्ण के मौजूदगी में उनके लिये ऐसी अश्लील बातें उठाई होती तो वे उनकी अवश्य ही खबर लेते खैर यहां तो केवल उन श्रीकृष्ण के सम्बन्ध की लोक प्रचलित बात का निर्णय करने के लिये संक्षिप्त से उल्लेख कर दिया है। श्रीकृष्ण एक नीति निपुण आधे भारत का राजा था उन्होंने पहली अवस्था में भारत विजय करने में कई स्थानों पर युद्ध भी किये थे पर जब श्रीकृष्ण के बाबा समुद्रविजय के पुत्र नेमिनाथ तीर्थकर हुए उनके Jain Education Interations For Private & Personase Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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