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________________ वि० सं० १७७-१९९ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास चाहता है तो अपन तो मुक्त भोगी है तेजसी के साथ अपने को भी दिक्षा लेनी चाहिये । कारण ऐसा सुअवसर अपने लिये फिर कब आने वाला है इत्यादि । इस पर तो माता कमला को और भी अधिक गुस्सा आगया और उसने कहा कि तेजसी क्या दीक्षा ले श्राप खुद तेजसी को दीक्षा दिलाना चाहते हैं। तब ही तो आप मुझे उपदेश दे रहे हो। नागदेव ने कहा कि ठीक है तेजसी ही क्यों पर मैं खुद ही दीक्षा लेना चाहता हूँ । बतलाओ अब आपकी क्या इच्छा है ? तुम खुद सोच सकती हो कि क्या इस प्रकार की अनुकूल सामग्री मिलने पर भी सम्पूर्ण जिन्दगी इस कर्मबन्ध के कारण रूप संसार कार्य में ही व्यतीत कर देना । अपने तो भुक्तभोगी हैं पर देखो इस तेजसी को कि इसने संसार को क्या देखा है फिर भी दीक्षा लेने को तैयार हो गया है। कमला ने कहा कि श्राप तो बाप बेटा दीक्षा लेने को तैयार होगये हैं न ? नागदेव ने कहा तेजसी के लिये मैं नहीं कहता हूँ पर मैं तो अपनी कह सकता हूँ कि मेरी इच्छा तो दीक्षा लेने की है और मैं तो आपसे भी कहता हूँ कि ऐसा सुअवसर आप भी हाथों से न जाने दीजिये । तेजसी - क्या माता तू मेरे से इतना प्रेम करती हुई भी मैं दीक्षा लू और तू घर में रहेगी ? कमला-बेटा ! मैं जान गई हूँ कि तेरा बाप ही सब को दीक्षा दिलाने की कोशिश करता है । यदि तुम बाप बेटे का यही इरादा है तो एक मुमको ही क्यों सब के सब घरवालों को दीक्षा क्यों न दिलावें कि सबका कल्याण होजाय । इत्यादि माता कमला ने खूब गुम्सा में जवाव दिया । नागदेव ने कहा कि आप जरा शान्त हो कर अपना तो निश्चय करलो बाद घरवालों की बात करना । कमला--जब आपकी इच्छा ही मुझे दीक्षा दिलाने की है तो मैं कह ही क्या सकती हूँ मेरा पुत्र एवं पति दीक्षा लेता है तब मेरी इच्छा हो या न हो मैं भी आपके साथ दीक्षा लेने को तैयार हूँ। कहिये अब आपको क्या करना है ? नागदेव ने अपनी दूसरी दोनों औरतों को और २० पुत्रों को बुला कर कहा कि हम तीनों जनों ने दीक्षा लेने का निश्चय किया है और तुम्हारे अन्दर से किसी का विचार हो तो हमारे साथ हो जाइये । इस पर पहिले तो खूब वादविवाद हुआ पर आखिर नागदेव की दोनों औरतें और ७ पुत्र दीक्षा लेने को तैयार होगये अर्थात् बात ही की बात में एक घर से १२ भावुक वैरागी बन गये। __इस बात की खबर सूरिजी को मिली तो सूरिजी कमी क्यों रक्खें। व्याख्यान में दीक्षा ही दीक्षा के यश एवं गुण गाये जाने लगे कि माडव्यपुर एवं आस पास के ग्राम तथा बाहर से आये हुवे दर्शनार्थी लोगों में से कई ४५ नरनारी दीक्षा के उम्मेदवार बनगये । अहा-हा तेजसी कैसा मिमित बना है । __ भलो ! उस जमाने के कैसे हलुकर्मी जीव थे। उन लोगों का उपादान कारण बहुत सुधरा हा था और पूर्व भवों की ऐसी प्ररणा थी कि थोड़ा सा निमित्त कारण मिलजाने पर वे अपना श्रात्मकल्याण करने को कटिबद्ध होजाते थे और इस प्रकार दीक्षायें होने से ही वे प्राचार्य एवं मुनिजन सौ सौ दो दो सौ एवं पांचसौ साधुओं के साथ प्रत्येक प्रान्तों में विहार कर जैनधर्म का प्रचार किया करते थे। माण्डव्यपुर नगर के श्राज घर घर में आनंद मङ्गल छागया। मुहल्ले-मुहल्ले के मन्दिरों में अष्टान्हिका महोत्सव के बाजे बजने लगे। मुक्ति रमणिके वर पर घर में बंदोले खारहे हैं। भक्त लोग इस पुनीत कार्य का अनुमोदन कर रहे हैं। नागदेव के पुत्र सोमदेवादि अपने माता पिता एवं भ्राताओं की c hternational [माता-बेटा का सलाद Jain E For Private & Personal Use Only
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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