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वि० सं० १७७-१९९ वर्ष ] । भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
२० प्राचार्य श्री सिद्धसूरि ( तृतीय)
आचार्यस्तु स सिद्धसरि रिह बैडीडवाख्य गोत्रात्मजः । यो हीरेण समश्चसुद्युतियुतः सर्वैश्च देवैः स्तुतः ॥ श्रुत्वा यस्य रसेन पूरित तमं वाक्यामृतं मानवाः । देवा मंत्र बलेन मुग्धमन सो व्याख्यानमध्येऽभवन् ।
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चार्य श्री सिद्धसूरीश्वरजी महाराज जैन संसार में सिद्ध पुरुष के नाम से विख्यात थे केवल जैन ही क्यों पर जैनेतर लोग भी आपके आत्मिक चमत्कार एवं सिद्धियों को देख मंत्र-मुग्ध बन कर आपके चरण कमलों की सेवा करते थे। आपने अपने
पूर्वजों की स्थापित की हुई मशीन को द्रुतगति से चलाने में एक चतुर ड्राइवर का काम किया अर्थात् आप एक धर्मप्रचारक आचार्य हुये हैं । आपश्री का जीवन महत्वपूर्ण था।
__ माडव्यपुर नगर के राजा सुरजन के मुख्य मंत्री श्रेष्टि गोत्रीय नागदेव था। नागदेव पर लक्ष्मी और सरस्वती दोनों देवियों की महती कृपा थी यही कारण था कि मंत्री नागदेव को लोग धन में कुवेर और बुद्धि में बृहस्पति हो कहा करते थे । नागदेव के रंभा नाम की सुशीला स्त्री थी पर उसके कोई संतान न होने से मंत्री ने दूसरा विवाह क्षत्रिय हरनारायण की पुत्री देवला के साथ किया था पर पूर्व कर्मोदय उसके भी कोई संतान नहीं हुई । मंत्री ने सञ्चायिका देवी का अाराधन किया । तीन उपवास की अन्तिम रात्रि में देवी ने कहा कि उपकेशपुर के चिंचट गोत्रिय शाह रामा की पुत्री कमला के साथ विवाह कर तेरे बहुत संतान होंगी। श्रेष्टि ने देवी के बचनों को तथाऽस्तु कर लिया। देवी अदृश्य होगई । श्रेष्ठि ने तीन उपवास का पारणा किया
और एक योग्य पुरुष को उपकेशपुर भेजा। वह जाकर शाह रामा से मिला और मंत्री नागदेव के समाचार कहे तो शाहरामा बड़ा ही खुश हुआ कारण, उसको नागदेव जैसा जमाई मिलना कहां था। उसने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और थोड़े ही दिनों में कमला का विवाह मंत्री नागदेव के साथ कर दिया। बस फिर तो था ही क्या देवी का बचन सफल हो ही गया । कमला के क्रमशः सात पुत्र हुए इतना ही क्यों पर पहले परणी हुई रंभी और देवला के भी सात सात पुत्र हुए पट्टावली कारों ने न गदेव के परिवार का बहुत विस्तार से वर्णन किया है। माता कमला के लघु पुत्र का नाम तेजसी बतलाया है तेजसी एक तेज का पुंज ही था जिसकी क्राति का तेज सूर्य की भाँति सर्वत्र फैल गया था ।
मंत्री नागदेव का घराना शुरू से ही जैनधर्मोपासक था। नागदेव ने धर्मकार्यों में लाखों नहीं पर करोड़ों का द्रव्य व्यय कर पुष्कल पुन्योपार्जन किया था इतना ही क्यों पर अनेक क्षत्रियों को जैनधर्म के उपासक बना कर जैन धर्म का प्रचार में खूब सहयोग दिया था
एक समय आचार्य ककसूरिजी महाराज का पधारना माडव्यपुर में हुआ। श्रीसंघ ने सूरिजी महाराज का खूब उत्साह के साथ स्वागत किया । सूरिजी का व्याख्यान बड़ा ही प्रभावोत्पादक होता था। आपके
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[ मांडव्यपुर का मंत्री नागदेव
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