SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 824
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ५७४-५७७ गजा के पास पुराने खत हैं यह भी तो झूठ नहीं हो सकता। इसी विचार में समय होगया और सब पंच भोजन करने को चले गये । एक पंच ने जिस समय का राजा का खत था उस समय की अपनी बहिये निकाल कर देखी तो मालूम हुआ कि राजा ने अपने खत में जो रुपयों का सिक्का लिखा है वह उस समय का नहीं पर बहुत पीछे का है इससे निर्णय किया कि खत जाली बनाया है। बस, भोजन करके सब पंच वापिस राजा के पास आये और सब एक मत होकर राजा को कहा कि खत आपका जाली है । गजा ने गुस्से में आकर कहा कि तुम साहूकार साहूकार का पक्ष करते हो वरना मेरा खत जाली होने की क्या साबूती है ? पंचों ने कहा कि आपने बड़ी चतुराई से जाली खत लिखा है परन्तु इसमें सिक्का को बदलाने की गलती होगई है । जो सिक्का आपने लिखा है वह खत के समय से बहुत पीछे का है । राजा ने सुन कर कहा कि मैंने आपकी परीक्षा के लिये ऐसा किया है। पर पंच परमेश्वर कहलाते हैं यह सत्य ही है। ____ करीब एक शताब्दी पूर्व एक अंग्रेज टॉड साहब हुये हैं। उसने राजपूताने में भ्रमण कर वहां का हाल 'टॉड राजस्थान' नामक पुस्तक में लिखा है। जिसमें श्राप लिखते हैं कि ग्राम २ में ऐसी पंचायतें मैं देखता हूँ कि जहाँ रईस की जरूरत भी नहीं है। वे पंचायतें ग्राम के सब काम स्वयं निपटा देती हैं इत्यादि । इससे पाया जाता है कि एक शताब्दी पूर्व महाजनों की पंचायतें सुव्यवस्थित थीं और वे पंच प्राम का लेन देन का एवं मगड़े टंटे का काम आपस में निपटा देते थे कि लोगों को राज अदालतों का मुंह देखना नहीं पड़ता था परन्तु बाद में वे पंचायतें उसी रूप में नहीं रही। न जाने उनके खाने में ऐसा कौनसा अन्न आया होगा कि पक्षपात एवं स्वार्थ तथा अहंपद रूपी पिशाच उनके हृदय में घुस गया कि अपने परोपकारी कामों से हाथ धो बैठे और दुनिया का निपटारा करने वालों स्वयं आपस में लड़ झगड़ कर अपना महत्व खो दिया कि उन खुद को ही अदालतों में जाकर इन्साफ लेना पड़ता है। पुराने जमाने की पंचायतों का यशः आज भी अमर एवं जीवित है। जहाँ महाजनों की पंचायते हैं वहां उन पंचायतें के निर्वाह के लिये ग्रामोंग्राम शुभ प्रसंगों पर लागन लगाई हुई है उसकी आय व्यय के हिसाब को पंचायत हिसाब कहा जाता हैं पंचायत आमन्द के लिये कई मकान दुकानें और बरतन विगैरह पाता है वह पंचायत में जमा होता हैं इस प्रकार की पंचायतें छोटे छोटे प्रामों से लगा कर बड़े बड़े नगरों में हैं इतना ही क्यों पर उपकेश वंशीय लोग अपने मूल स्थान को छोड़ कर अन्य स्थानों में वास किया और वह उनकी थोड़ी बहुत बसती जम जाती थी वहां भी उनकी पंचातियों का प्रबन्ध होजाता था आज उन पंचायतों का रूप बदल गया है पर उनका मूल ध्येय केवल जाति का ही नहीं पर साधारण जनता की सेवा करने का ही था jain Eपंचों में परमेश्वर का उदाहरण ] For Private & Personal Use Only www.५९"ary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy