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________________ वि० सं० १७४-१७७ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास रत है मैं नगर का राजा हूँ आप खाते में नाम न लिखें सुबह ही रकम पहुँचा दी जायगी। सेठजी ने बिना नाम लिखे राजा को रुपये दे दिये । एक दो तीन दिन व्यतीत होगये रुपये आये नहीं। सेठजी ने राजाज्ञा भंग के भय से रुपये राजा के नाम भी नहीं लिखे । आखिर सेठजी ने राजा से कहलाया कि या तो हजार रुपये भेज दीरावें या नाम लिखने की आज्ञा फरमावें । राजा ने सेठ को बुलाकर खूब धमकाया और कहा कि कौन तेरे रुपये लाया है । जब तू मेरे से ही बिना लाये रुपये मांगता है तो इस प्रकार दूसरे लोगों से तो बिना दिये कितने रुपये वसूल किये होंगे और जो तू कोटाधीश बना है इसी प्रकार बिना दिये रुपये वसूल करके ही बना होगा इत्यादि । विचारा सेठ बड़ी ही चिंता में पड़ गया । रुपये नहीं आ जिसकी तो चिंता नहीं पर राज मुझे सच्चे को झूठा बताता है इस बात का बड़ा ही दुःख है। राजा ने कहा क्यों सेठजी क्या करना है ? सेठजी ने कहा कि आप फरमाते हो कि रुपये मैं नहीं लाया तो ऐसा ही सही । राजा ने कहा ऐसा नहीं अपने मामले की पंचायत करवालें । सेठजी ने कहा ठीक है बस, पंचों को बुलाकर दोनों ने अपने अपने हाल सुनाकर कहा कि हमारी पंचायती कर दीजिये । पंचों में कई ने सोचा कि राजा गत्रि समय स्वयं जाकर सेठजी से हजार रुपये लावे यह असम्भव है तब किसी ने कहा कि सेठजी की इतनी हिम्मत नहीं है कि राजा के राज में रहते हुये राजा पर झूठा कलंक लगावे दूसरे महाजनों की पोते बाकी में हजार रुपयों का फरक चल नहीं सकता है इत्यादि विचार ही विचार में टाइम होगया राजा की रजा लेकर सब भोजन करने को गये उन पंचों में रुपये देने वाले सेठ जी भी शामिल थे। भोजन करके चार पंच तो आगये पर सेठजी नहीं आये । चारों पंचों ने बार बार कहा कि सेठजी अभी तक नहीं आये इतने ही में राजा ने सहसा कह दिया कि सेठजो का मकान दूर है, आता होगा। बस, एक पंच ने निर्णय कर लिया कि सेठजी का कहना सत्य है । राजा जरूर सेठजी के वहाँ से रुपये लाया है। यदि राजा रुपये नहीं लाता तो उसको क्या मालूम कि सेठजी का घर दूर है। बस, सेठजी आये और सबने एक विचार कर राजा से कहा कि सेठजी सत्य कहते हैं आप एक हजार रुपये सेठजी के यहाँ पहुँचा दें । राजा ने कहा किस न्याय से ? पंचों ने कहा बतलाओ हमारा घर वहाँ से कितनी दूर है ? राजा ने कहा मुझे क्या मालूम पंचों ने कहा तब सेठजी का घर दूर है आपको कैसे ज्ञात हुआ ? राजा ने कहा मैंने आप लोगों की परीक्षा के लिये ही इतना प्रपंच किया है कि यह सत्य है पंच परमेश्वर हैं। राजा ने सेठजी को हजार रुपया और पंचों को इनाम देकर विसर्जन किया। २-इसी प्रकार काशी के राजा ने एक इब्भ सेठ के पूर्वजों के नाम पर एक लक्ष रुपयों का खत मांड कर स्ठ को बुलाया और कहा कि तुम्हारे पूर्वजों पर एक लक्ष रुपये बाकी लेना निकलते हैं । तुमको मय ब्याज के जमा करवाना चाहिये । विचारे सेठ ने सोचा कि 'समुद्र में रहना और मगर से बैर रखना' ठीक नहीं है अतः उसने कहा कि हमारे पूर्वज परम्परा से कहते आये हैं कि राजा की रकम देनी है पर ब्याज के माड़े से दी नहीं गई है। राजा कहते हैं रकम ब्याज से ली जाय और हम कहते हैं कि मगड़े की रकम का ब्याज नहीं दिया जाय इत्यादि। अतः लक्ष रु पये तैयार हैं जब फरमावें तब ही हाजिर किये जावें राजा ने कहा कि अब इस झगड़े को कहां तक रक्खा जाय पंच डाल दें जो फैसला दें वह मंजूर कर लो। सेठ ने कहा ठीक है। बस, पंचों को बुलाकर दोनों ने अपना २ हाल सुना दिया। पंच सोचने लगे कि इतना बड़ा सेठ पुश्तों से धनाढ्य हैं खत लिखकर रुपये लेजाय यह असंभव है। तब एक ने कहा [ पंचों में परमेश्वर है। पQ. Jain Eda International For Private & Personal Use Only ainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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