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________________ वि० सं० १७४-१७७ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास हिन्दुओं की तरह । सूर्य्यदेव की पूजा माने जाते हैं उसी तरह वहां भी घंटा घड़ियाल आदि जैसे ही हिन्दुस्तान में इन अवसरों पर बजाये जाते हैं। वहाँ भी उसी के बाजे बजते हैं। सूर्य चन्द्र का राहु से प्रसित होना वे भी मानते हैं वहां के पुजारी सर्प आदि के चिन्ह कंठ में धारण करते हैं इससे हिन्दुस्तान के महादेव और काली आदि देवी देवताओं का स्मरण होता है । हिन्दुस्तान में जैसे गणेशजी की मूर्ति की पूजा होती है । उसी तरह वहाँ भी एक वैसे ही देवता की पूजा होती है । जिस प्रकार हिन्दू धर्म ग्रन्थों में प्रलय का वर्णन है वैसा ही डन लोगों के ग्रंथों में भी है उनमें एक कथा है कि उनके एक महात्मा की आज्ञा से सूर्य की गति रुक गई थी वह ठहर गया था । हमारे महाभारत में भी ऐसा ही उल्लेख है । जयद्रथ वध के समय श्री कृष्ण की आज्ञा से सूर्य्य ठहर गये थे । कृष्ण की मृत्यु पर अर्जुन के शोक नाद से भी सूर्य का रथ रुक गया था। अमरीका के आदिम निवासी भी पृथ्वी को कच्छप की पीठ पर ठहरी हुई मानते हैं दोनों देशों में होती है । मेक्सिको में सूर्य के प्राचीन मन्दिर हैं । जीव के आवागमन के सिद्धान्त में भी हिन्दुत्रों की तरह उन लोगों का विश्वास है धार्मिक विषयों के अतिरिक्त सामाजिक विषयों में भी बहुत कुछ समता देख पड़ती है। उन लोगों के कितने ही रीत रिवाज हिन्दुओं के से हैं। उनका पहिनना हिन्दुओं के ही ढंग का है। वे भी खंडा ऊपर चलते हैं। स्त्रियों के वस्त्र भी हिन्दु स्त्रियों के सदृश ही जान पड़ते हैं । अमरीका में हिन्दु श्रीरामचन्द्रजी के बाद गये ऐतिहासिक कथाओं से भी जाना जाता है। कि महाभारत के युद्ध के बहुत पीछे तक हिन्दु अमरीका को जाया करते है रामचन्द्रजी और सीताजी की पूजा उनके असली नाम से वहाँ आज तक होती है पेरू में रामोत्सव नाम से रामलीला भी होती है । अमरीका वालों की भवन निर्माण शैली और प्राचीन ऐतिहासिक बातें ऐसी हैं जिसका विचार करने पर उन लोगों को हिन्दु जाति से ही उत्पन्न मानना पड़ता है। महाभारत में लिखा है कि अर्जुन ने पातालदेश जीत कर वहाँ के राजा की कन्या 'उलूपी' से विवाह किया था। उससे एक पुत्र हुआ जिसका नाम 'अवर्णव' था । वह बड़ा पराक्रमी था । । प्राचीन काल में भारतवर्ष से अमेरिका जाने के दो रास्ते थे । एक हिन्दुस्तान से लंका अथवा बंगाल की खाड़ी से जावा और बोर्नियो होते हुये मेक्सिको पेरू या मध्य अमरीका तक चला गया था । दूसरा चीन, मंगोलिया, साइबेरिया, और वहिरंग के मुहाने से होकर उत्तरी अमरीका तक गया था । इस समय जहां बहिरंग का मुहाना है वहाँ प्राचीन समय में जल न था वह स्थान अमरीका से मिला हुआ था । पीछे भौमिक परिवर्तन होने से वहां जल होगया । जैसे पहिले एशिया से अफ्रीका महाद्वीप स्थल मार्ग से मिला था उसी तरह अमेरिका देश भी मिला था । अव एशिया और अफ्रीका के बीच स्वेज नहर और एशिया और अमरीका के बीच बहिरंग का मुहाना 1 सरस्वती संम्वत् १६६१ वैशाख मास के अंक से महाजन संघ की पंचायतें पुराने जमाने में ऐसा रिवाज था कि राजा की ओर से सभासद चुने जाते थे और जनता के छोटे बड़े तमाम काय्यों का निपटारा उन सभासदों द्वारा होता था जैसे आप सम्राट् चन्द्रगुप्त अशोक और सम्प्रति के समय का इतिहास पढ़ आये हो। पर जब महाजन संघ की स्थापना हुई और बाद जैनाचाय्य ५९० Jain Edcon International For Private & Personal Use Only [ भारतीय व्यापारियों का brary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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