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आचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ५७४ -५७७
में इस देश और भारतवर्ष से बहुत व्यापार होता था । कितने ही हिन्दू इस देश में खाते थे । इस विषय में टॉड साहब ने राजस्थान के इतिहास के दूसरे भाग में बहुत कुछ लिखा है ।
"यूरोप" यूरोप नाम संस्कृत शब्द हरियुषीया से निकला है और यूरोप भूमि भारत के प्राचीन निवासियों की परिचित थी इसके वेदोक्त प्रमाण लीजिये । ऋग्वेद में कहा है हरियुषीया देश में जाकर इन्द्रने वरशिल दैत्य के पुत्रों का बध किया ।
“ यूनान " - पोकोक साहब ने अपनी पुस्तक में इस बात के प्रबल प्रमाण दिये हैं कि यूनान देश को भारत के निवासियों ने ही अर्थात् मगध के हिन्दुत्रों ने ही बसाया था मगध देश की राजधानी का नाम प्रचीन काल में 'राजगृह' था उसमें रहने वाले गृहका कहलाते थे। इसी गृहका से ग्रीक शब्द बना है विहार देश का नाम पलश्वा था । वहाँ से वह जनसमूह ग्रीस में जाकर वसा वह पेलासगी कहलाया और उस देश का नाम पेलासगो पड़ गया। एक प्रसिद्ध यूनानी कवि सिपस के लेखानुसार यूनानियों के विख्यात राजा पेलास गस हिन्दुग्तान में बिहार का प्राचीन राजधानी में उत्पन्न हुआ था ! मेकडोनियन और मेसेडन शब्द मगध के अपभ्रंश हैं। मनुष्यों के कितने ही समूह मगध से जाकर यूनान में बसे और उसके प्रांतों को पृथक् २ नाम से पुकारने लगे। कैलाश पर्वत का नाम यूनान में " केनन " है और रोम में " कोकिन " है। क्षत्रियों की कई जातियों का यूनान में जाकर बसना सिद्ध होता है। यूनान में देवी देवता भारतवर्ष के देवी देवताओं की नकल है । उस देश का धर्म विधान साहित्य और कला शास्त्र भी हिंदू जाति ही की चीज है । ' रोम " - रोम शब्द राम से बना है। एशिया माइनर में हिन्दू जाति जाकर बसी, रोमवाले उसी की सन्तान है । रोम की समीवर्तिनी यूट्रेसियन जाति भी हिन्दु ही थी । रोम के देवी देवता भी हिन्दुस्तान के देवी देवताओं के प्रतिरूप हैं। यह भी इस बात का प्रमाण है कि रोम निवासी हिन्दु जाति के ही हैं । "अमरीका " अमरीका की श्राचर्यजनक प्राचीन सभ्यता के चिन्हों पर दृष्टि डाली जाय तो मालूम होगा कि यूरूप वासियों के प्रवेश करने के पहिले वहाँ कोई सभ्य जाति अवश्य रहती थी । दक्षिण श्रमरीका में बड़े २ नगरों के खंडहरों, दृढकोट, सुंदरभवनों, जलाशयों सड़कों, नहरों आदि के चिन्ह मिलते हैं जिससे यह प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में यहाँ कोई बड़ी उच्चश्रेणी की सभ्य जाति रहती थी । अच्छा तो यह सभ्यता श्रई कहाँ से ? यूरोपीय पुरावस्तु वेत्ताओं ने इसका पता लगाया है। वे कहते हैं ये सभ्यता और कहीं से नहीं हिन्दुस्तान से आई थी। वेरन महाशय का कथन है कि इस समय भी श्रमरीका में हिन्दुओं के स्मारक चिन्ह मिलते हैं ।
अब पोकाक महाशय का कथन सुनिये वे कहते हैं कि पेठ निवासियों की और उनके पूर्वज हिन्दुओं की सामाजिक प्रथायें एक सी पाई जाती हैं। प्राचीन अमरीका की इमारतों का ढंग हिन्दुओं के जैसा है । स्ववायर साहब कहते हैं कि बौद्ध (जैन) मत के स्तूप दक्षिण हिन्दुस्तान और उसके उपद्वीपों में मिलते हैं, वैसे ही मध्यम अमरीका में भी पाये जाते हैं। जैसे हिन्दु पृथ्वी माता को पूजते हैं वैसे ही वे भी पूजते हैं। देवी देवताओं और महात्माओं के पदचिन्ह जैसे हिन्दुस्तान में पूजते हैं वैसे वहाँ भी देखाते हैं । जिस प्रकार लंका में भगवान् बुद्ध के और गोकुल में श्रीकृष्ण के पदचिन्हों की पूजा की जाती है उसी तरह मेक्सिकों में भी एक देवता के पदचिन्ह पूजे जाते हैं। जैसे सूर्य चन्द्र और उनके प्रहण हिन्दुस्तान में
विदेशियों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध
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