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वि० सं० १७४-१७७ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
" साइबेरिया " महाभारत के युद्ध बाद बहुत सी सूर्य और चन्द्रवंशी जातियाँ हिन्दुस्तान को छोड़कर दूर २ जा बसी थीं। एक हिंदूजाति ने साइबेरिया में जाकर अपना राज्य स्थापित किया । इस राज्य की राजधानी "वज्रापुर" था। जब इस देश का राजा किसी युद्ध में मारा गया तब श्री कृष्ण के तीन पुत्र प्रद्युम्न, गद और साम्बु बहुत से ब्राह्मणों और क्षत्रियों को साथ लेकर वहाँ पहुँचे । इन तीनों भाइयों में ज्येष्ठ भाई वहाँ की गद्दी पर बैठे। श्रीकृष्ण की मृत्यु होने पर वे मातमपुरसी के लिये फिर द्वारिका आये थे । यह सब वृत्तान्त हरिवंश पुराण में विष्णु पर्व के ८७ वें अध्याय में लिखा है । साइबेरिया और उत्तरी एशिया के प्रदेशों में हिन्दुओं की सन्तान अभी तक मिलती है । साइबेरिया और फिनलैंड में यदुवंश की दो जातियों का होना इतिहास से ज्ञात होता है । उन जातियों के नाम श्याम-यदु और जादो हैं ।
" जावा द्वीप" जावा के इतिहास में स्पष्ट लिखा है कि भारत के कलिंग प्रान्त से हिन्दू उस द्वीप मे ं जाकर बसे थे । उन्होंने वहां के लोगों को सभ्यता सिखाई और अपना संवत चलाया । यह संवत् इस समय तक प्रचलित है । उसका आरम्भ ईसा से ७५ वर्ष पहिले हुआ था । इसके पीछे फिर हिन्दुओं का एक दल जावा गया । उस दल के लोग बौद्ध ( जैन ) मतावलम्बी थे । उस द्वीप में यह कथा सुनी जाती है कि सातवीं सदी के आरम्भ में गुजरात देश का एक राजा पांच हजार आदमी लेकर वहां पहुँचा और मतराम के एक स्थान पर बस गया । कुछ काल पीछे दो हजार मनुष्य और गये। ये सब बौद्ध-जैनी थे । उन लोगों ने धर्म का प्रचार किया । जिसमें बौद्ध मत का प्रचार विशेष किया। चीन देश का एक प्रसिद्ध यात्री, जिसने इस द्वीप को चौथी सदी में देखा था, लिखता है कि जावा में उस समय सब लोग हिन्दु मतानुयायी थे अर्थात् सर्व श्राये थे और सर्वजाति का धर्म चलता था ।
"लंका" - लंका में तो अत्यन्त प्रचीन काल से हिन्दुओं का आवागमन रहा है रावण को मारने के बाद लंका का राज्य सदाचारी विभीषण को दे दिया गया था पिछले समय में लंका और भारतवर्ष में बहुत निष्ट सम्बन्ध था इस द्वीप का दूसरा नाम सिंहलद्वीप है जिसका अपभ्रष्ट नाम “सिलोन" है ।
"अफ्रीका मिश्र " - सात आठ हजार वर्ष हुये जब एक मनुष्य दल हिन्दुस्तान से मिश्र गया और वहीं बस गया। वहीं उन हिन्दुओं ने बड़ी उच्च श्रेणी की सभ्यता फैलाई और अपनी विद्या और पराक्रम से बड़ा प्रभावशाली साम्राज्य स्थापित किया। एक प्रसिद्ध पुरावस्तुवेत्ता लिखते हैं कि मित्र निवासी बहुत प्राचीन काल में हिन्दुस्तान से स्वेज के रास्ते आये थे । वे नील नदी के किनारे बस गये थे । मिश्र के प्राचीन इतिसे मालूम होता है कि उस देश के निवासियों के पूर्वज एक ऐसे स्थान से आये थे जिसका होना अब हिदुस्तान के पन्त कहते थे ।
हास
"सिंधु नदी का जल " - अटक से बारह भील नीचे जाकर नीला दिखाई देता है इस कारण वहाँ पर सिन्धु नदी का नाम " नीलाब" होगया है । यह नीलाब या नील नाम मिश्र की सबसे प्रसिद्ध नदी का है। सिंधु नदी का प्राचीन नाम " अबोसिन " है । अबीसीनिया जो अफ्रीका में एक बड़े प्रांत का नाम है इस अबोसिन से बना है । इन प्रमाणों से सिद्ध है कि सिन्धुतर के निवासियों की पहुँच मिश्र तक अवश्य हुई थी । "अबीसीनिया " यह देश सिन्धु नदी के तटपर रहनेवालों का बसाया हुआ है । प्राचीन काल
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[ भारतीय व्यापारियों का
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