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________________ आचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन ] [ओसवाल संवत् ५७४-५७७ शांतिपर्व के ३२६ वें अध्याय में लिखा है । अन्य देशों में दो बार पाण्डवों के जाने का उल्लेख भी महाभारत में है । पहली दफे वे ब्रह्मदेश, श्याम, चीन, तिब्बत मंगोलिया तातार और ईरान को गये और हिरात, काबुल, कन्धार और बिलोचिस्तान होकर लौट आये । उनकी दूसरी यात्रा पश्चिम की तरफ हुई वे लंका से प्रस्थान करके अरब, मिश्र, जंजुवार और अफ्रीका के दूसरे भागों में गये । यह बृत्तान्त महाभारत में ( सभा पर्व के २६-२८ अध्याय में ) लिखा है । इस यात्रा के समय मार्ग में उन्हें अगस्त्य तीर्थ, पुष्पतीर्थ, सुदामातीर्थ, करन्धमतीर्थ और भारद्वाजतीर्थ मिले थे । राजा सगर के पृथ्वी विजय की भी कथा पुराणों में है । गजा धृतराष्ट्र ने अफगानिस्तान के राजा की पुत्री का पाणीग्रहण किया था । अर्जुन ने अमरीका के राजा कुरु राजा को पुत्री से विवाह किया। श्री कृष्ण के पोते अनिरुद्ध का विवाह सुड (सुएड ) के राजा चाण की पुत्री उषा के साथ हुआ था। महाराजा अशोक ने काबुल के राजा सिल्युकस की पुत्री से विवाह किया था। ईसा के जन्म के अन्तर सहस्त्रों हिंदू तुर्किस्तान, ईरान और रूस में रहते थे। मनुस्मृति के दशवें अध्याय से मालूम होता है कि क्षत्रियों की प्रजा कितनी ही जातियाँ ब्राह्मण ( साधुओं) के दर्शन न होने के कारण पतित हो गई थीं। "एशिया" एशिया का पुराना नाम जम्बुद्वीप है । एशिया नाम भी हिंदुओं का ही रखा हुश्रा है । इस विषय में कर्नल टॉड का कथन सुनिये वे कहते हैं कि धुमिदा और मजस्व की सन्तानों से इन्दु (चंद ) वंशीय "अश्व" नाम की एक जाति थी । उस अश्व जाति के लोग सिन्ध के दोनों तरफ दूर तक जा बसे थे। इस कारण उस पृथ्वी भाग का नाम एशिया हुआ । एशिया खंड के कितने ही देशों में हिन्दू जाति फैल गई थी। उनमें से कुछ देशों का संक्षिप्त उल्लेख नीचे दिया जाता है । "अफगानिस्तान" प्राचीन भारत में अपवंश नाम की नाग जाति थी उसमें अपगण नाम का एक मनुष्य हुआ। इसी अपगण की सन्तान अफगान कहलाई । प्राचीन काल में हिन्दुस्तान और अफगानिस्तान में गहरा सम्बन्ध था। इसके कितने ही प्रमाण हैं । राजा धृतराष्ट्र ने अफगानिस्तान के राजा की पुत्री गान्धारी से विवाह किया था । महाभारत में लिखा है कि जिस समय पाण्डव जिस समय दिगविजय करने गये थे उस समय वे कन्धार अर्थात् गान्धार में राजा धृतराष्ट्र के श्वसुर के महमान हुए थे हिरात नगर हरि के नाम से विख्यात हुआ है । बौद्ध ( जैन ) राजाओं के समय तक अफगानिस्तान हिन्दुस्तान का ही अंश समझा जाता था। कर्नल टॉड लिखते है कि जैसलमेर के इतिहास से ज्ञात होता है कि विक्रम संवत् के बहुत पूर्व इस क्षत्रिय जाति का राज्य गजनी से समरकन्द तक फैला हुआ था। यह राज्य महाभारत युद्ध के पीछे स्थापित हुआ था । गजनी नगर उन्ही लोगों का बसाया हुआ है। ___ "तुर्किस्तान" तुर्किस्तान में भी हिन्दु जाति का राज्य था । तर्क का पुत्र तमक हिंदु पुराणों में तरिक्षक नाम से विख्यात हैं। अध्यापक मैक्समूलर लिखते हैं कि तुर्वा और उसकी सन्तान को शाप हुआ था भारत छोड़कर उनके चले जाने का यह कारण था ! कर्नल टॉड अपने नामी ग्रन्थ राजस्थान में लिखते हैं कि जैसलमेर के प्राचीन इतिहास से पता चलता है कि यदुवंश अर्थात् चन्द्रवंश की वान्हीक जाति ने महासमर के युद्ध के पीछे खुरासान में राज्य किया । विदेशियों के साथ व्यापार सम्बन्ध ] ५८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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