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________________ आचार्य देवगुप्तसरि का जीवन ] [ओसवाल संवत् ५७४-५७७ वैवाहिक सम्बन्ध भी था । कारण, राजाओं में यह रिवाज था कि जब अपनी कन्या की शादी करते थे तो धन माल के साथ दासियां भी दिया करते थे और यह रिवाज आज भी राजा एवं राजपूतों में विद्यमान है। भगवान महावीर के उपासकों की संख्या यों तो करोड़ों की थी परन्तु उनमें १५९००० तो उत्कृष्ट व्रतधारी श्रावक थे ऐसा कल्पसूत्र में लिखा है और उपासकदशाङ्ग सूत्र में श्रानन्दादि दस श्रावकों का वर्णन किया है ये दशों श्रावक गाथापति-वैश्य अर्थात् व्यापारी थे जिसमें आनन्द वाणिया ग्राम नगर में रहता था सिवानन्द नामक उसके स्त्री थी। बारह करोड़ सोनइयों का उसके पास द्रव्य था जिसमें चार करोड़ तो भूमि में जमा रखता था, चार करोड़ का जेवर भूमि आदि स्टेट था और चार करोड़ व्यापार में लगे रहते थे। आनन्द के गायें भी पुष्कल थी, चार गोकल गायों के थे और प्रत्येक गोकल में दश-दश हजार गायें थीं। आनन्द के ५०० हल भूमि थी जिसमें वह खेती करता कराता था। श्रानन्द का व्यापार भारत और भारत के बाहर पाश्चात्य देशों के साथ थी भी और समुद्री व्यापार के लिये चार बड़े और चार छोटे जहाज भी थे और पांच सौ गाड़े भारत के व्यापार के लिये और पांच सौ गाड़े जहाजों पर माल लाने और पहुँचाने के लिये रहते थे। इससे पाया जाता है कि आनन्द का समुद्री व्यापार विशाल था तब ही तो पांच सौ गाड़े केवल जहाजों पर माल पहुँचाने को एवं लाने को रख छोड़े थे। इसी प्रकार शेष नौ श्रावकों का व्यवसाय था जिसको हम निग्न कोष्टक में दे देते हैं। चूलनिपति सूरादेव सं | श्रावक नाम | नगर | द्रव्यकोटि | भूमि में | व्यापारमें | घरस्टेट | गोकल वानियग्राम १२ करोड ४ करोड | ४ करोड ४ करोड कामदेव चम्पानगरी १८, ६ , ६ , ६ , बनारसी | २४ , ८, ८ ८ , बनारसी १८, ६ , चूलशतक श्रालंभिया | १८, ६ , कुंडकोलिक कपीलपुर १८, ६ , पोलासपुर ३ , राजगृह २४ , ! ८ , ९ | नन्दनीपिता सावत्थी । १२, ४ , १० | शालिनी पिता | सावत्थी | १२ ,, | ४ , ४ , ४ , ४ शेष आनन्द के सदृश बतलाया है। अतः इनका व्यापार भी आनन्द की तरह पाश्चात्य प्रदेशों में था Jain Ea आनन्दादि दश श्रावक] शकडाल महाशनक - - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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