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वि० सं० १७४-१७७ वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
१६-प्राचार्य देव गुप्तसूरि (तृतीय)
आचार्यस्तु स देवगुप्त पद भागादित्य नागान्वये, आदित्येन समः सुदीप्त तपसा स्वीयप्रभा धारया । नित्यं वादि विवाद वात शमने लब्धप्रसिद्धस्तु यः, भारत्या अवतार रूप धरणो धर्मध्वजोद्धारकः ।
HT चार्य देवगुप्तसूरीश्वरजी महाराज जैन संसार में देव की तरह परमपूजनीय हुये हैं आपक
पा अवतार जगत के जीवों के उपकार के लिये ही हुआ था । आपका जन्म मरुधर के नागपुर
Ne, नगर के धनकुबेर आदित्यनाग गोत्रिय शाह भैरा की पत्नी नन्दा की पवित्र कुक्ष से हुआ था । जब आप गर्भ में थे तब माता नन्दा को धन कुबेर देवता ने साक्षात्दर्शन दिये थे। तत्पश्चात् पुत्र का जन्म हुआ तो कइ महोत्सवों के साथ नवजात पुत्र का नाम धनदेव रख गया था । धनदेव के माता पिता सदाचारी एवं धर्मज्ञ थे अतः उनका प्रभाव धनदेव पर भी हुआ करता था । धनदेव के बच्चापना से ही धार्मिक संस्कार सुदृढ़ जम गये थे । आपकी बालक्रीड़ा अनुकरणीय थी तथा विद्याध्ययन में तो श्राप अपने सहपाठियों से सदैव अप्रेश्वर ही रहते थे। जब धनदेव ने युवक अवस्था मे पदार्पण किया तो समान धर्मवाली श्रेष्ठि कन्या के साथ विवाह कर दिया । श्राप देवताओं की भांति सुख में कालनिर्गमन कर रहे थे।
आचार्य यक्ष देवसूरि का पधारना नागपुर में हुआ । आप श्री का व्याख्यान हमेशा हुआ करता था । एक दिन सूरिजी ने व्याख्यान में फरमाया कि संसार रूप समुद्र को तरने के लिये चार प्रकार के जीव हैं।
१-डोका समान-डोका ज्वार बाजरी मकाई का डोका जिसको जल में डालने पर वह अकेला ही तर सकता है परन्तु दूसरे को नहीं तारता है । इसी भांति एक एक मनुष्य ऐसे भी होते हैं कि वे स्वयं तर सकें परन्तु दूसरे को नहीं तार सकें जैसे जिनकल्पी साधु
२-तुंबा समान-तुम्बा को जल में डालने से एक तुंब और एक दूसरा जो तुंबा का आलम्बन करने वाला एवं तुम्बा एक जीव को तार सकता है जैसे प्रतिमधारी साधु एक शिष्यकों दीक्षा देकर श्राप एकान्त जाकर ध्यान में लग जाते हैं
३-काष्ठ की नौका के समान-काष्ठ की नौका श्राप तरती है और दूसरे अनेक जीवों को तार सकती है जैसे स्थविर कल्पी साधु आप तरते हैं और उपदेश देकर अनेकों को तारते हैं।
४-पत्थर की नौका के समान पत्थर की नौका श्राप डूबती है और उस पर चढ़ने वालों को भी डुबा देती हैं जैसे मिध्यात्वी, पाखण्डी, उत्सूत्र प्ररूपक आदि आप स्वयं डूबते हैं और अनेकों को डुबा देते हैं ।
A यही बात गृहस्थों के लिये समझ लीजिये । एक ऐसा साधारण गृहस्थ होता है कि वह एकान्त में रहकर अपना कल्याण कर लेता है पर साधन के अभाव दूसरे का काल्याण करने में असमर्थ है ___B दूसरा एक अपना और एक दूसरे का कल्याण कर सकें। कारण उनके पास साधन इतना ही है
C तीसरा आप तो तरता ही है और अनेक भावुकों को भी तारने में निमित्त कारण बन जाता है
५७४ Jain Education International
[संसार तरने की चौभंगी--- any or
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