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आचार्य कक्कसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ५५७-१७४
आचार्य श्री शाकम्मरी, हंसावली, पद्मावती, मुग्धपुर, नागपुर, षटकूप नगर, हर्षपुर, मेदनीपुर आदि नगरों एवं छोटे बड़े प्रामों में धर्मोपदेश देते हुये उपकेशपुर पधारे । वहाँ के श्रीसंघ ने सूरिजी का अच्छा स्वागत किया। भगवान महावीर और आचार्य रत्नप्रभसूरि की यात्रा के पश्चात श्रीसंघ को धर्मो. पदेश सुनाया। आज उकेशपुर के घर २ में आनन्द मंगल हो रहा है। चतुर्मास के दिन नजदीक आ रहे थे श्रीघ ने साग्रह विनती की जिसको स्वीकार कर सूरिजी ने चतुर्मास उपकेशपुर में करना निर्णय कर लिया । बस फिर तो था ही क्या नगर में सर्वत्र उत्साह फैलगया।
सुचंतिगोत्रीय शाह आम्र के महोत्सव पूर्वक व्याख्यान में महा प्रभाविक श्री भगवतीजीसूत्र वाचना शुरू कर दिया जिसको जैन जैनतर बड़ी ही श्रद्धा एवं उत्साह पूर्वक सुन कर लाभ उठा रहे थे। सूरिजी के व्याख्यान में दार्शनिक,तात्त्विक,आध्यात्मिक और ऐतिहासिक सब विषयों पर काफी विवेचन होता था जिसको श्रवणकर श्रोताजन मंत्र मुग्ध बन जाते थे । व्याख्यान किसी विषय पर क्यों न हो परन्तु आत्मल्याण के लिये त्याग वैराग्य पर विशेष जोर दिया जाता था । संसार की असारता, लक्ष्मी की चंचलता, कुटुम्ब की स्वार्थता, आयुष्य की अस्थिरता इत्यादि । सुकृत के शुभ फल और दुष्कृत के अशुभ फल भव भवान्तर में अवश्य भुगतने पड़ते हैं जिसको आज हम प्रत्यक्ष में देख रहे हैं। अतः जन्म मरण के दुःखों से मुक्त होने का एक ही उपाय है और वह है जैनधर्म की आराधना । यदि इस प्रकार की अनुकूल सामग्री में धर्माराधन किया जाय तो फिर संसार में भ्रमण करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी इत्यादि प्रति दिन उपदेश होता रहता था जिसका प्रभाव भी जनता पर खूब पड़ता था। कई लघुकर्मी जीव सूरिजी की शरण में दीक्षा लेने की तैयारी करने लगे तब कई गृहस्थावास में रहते हुये भी जैनधर्म की अराधना में लग गये ।
बाद चतुर्मास के कई ११ भावुकों को दीक्षा दी, कई नतन बनाये मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाई इत्यादि सूरीश्वरजी के विराजने से बहुत उपकार हुआ । तत्पश्चात् वहां से विहार करते हुये छोटे बड़े प्राम नगरों में धर्मप्रचार करते हुये सूरिजी महाराज नागपूर में पधारे । कई अर्सा तक वहां विराज कर जनता को धर्मोपदेश दिया वहां पर हंसावली के संघ अग्रेश्वर विनती करने को आये जिसको स्वीकार कर सूरिजी विहार करते हुये हंसावली पाधारे । वह श्रेष्टि वयं जसा और उसकी पत्नी के आग्रह से श्री भग. वती सूत्र व्याख्यान में फरमाया तथा शाह जसा के बनाये महावीर मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई जिससे जैनधर्म की महान प्रभावना एवं उन्नति हुई। तत्पश्चात् वहाँ से विहार कर क्रमशः कोरंटपुर की ओर पधारे । यह थी आपकी जन्मभूमि जिसमें भी आप आचार्य बन जैनधर्म की उन्नति करते हुये पधारे फिर तो कहना ही क्या था जनता में खूब उत्साह बढ़ गया था । नगर के राजा प्रजा एवं सकल श्रीसंघ की ओर से आपका सुन्दर स्वागत किया भगवान् महावीर की यात्रा कर व्याख्यान पीठ पर विराज कर थोड़ी पर सारगर्मित इस प्रकार की देशना दी कि जिसको सुनकर श्रोताओं के हृदय में आत्मकल्याण की भावना विजली की भांति विशेष चमक उठी बाद जयध्वनि के साथ परिषदा विसर्जन हुई।
कोरंटगच्छीय आचार्य नन्नप्रभसूरि आस पास के प्रदेश में बिहार करते थे। उन्होंने सुना कि कोरंटपुर में आचार्य ककसूरि का पधारना हुआ है। अतः वे भी अपने शिष्यों के साथ कोरंटपुर पधारे। आचार्य कक्कसूरि एवं श्रीसंघ ने आपका अच्छा स्वागत करके नगर प्रवेश कराया।
जब व्याख्यान पीठ पर दोनों प्राचार्य विराजमान हुये तो जनता को यह भ्रांन्ति हाने लगी कि श्री भगवतीजी सूत्र का महोत्सव ]
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