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वि० सं० १५७ - १७४ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
है । इत्यादि सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करने वालों के यह नियम है और जो लोग स्वेच्छा व्रत पालने वाले होते हैं वे गृहस्था वास में रहते हुए भी आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत का पालन कर सकते हैं जैसे विजयसेठ और विजय सेठानी हुए हैं तब कई लोग सदारा संतोष अर्थात् मर्यादा से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं ।
अब आप अपने प्रश्न का उत्तर भी सुन लीजिये कि जैसे 'अपुत्रस्यगतिर्नास्ति' ? यह किसी पक्ष मनुष्य का कथन है परन्तु देखिये आप महात्मा मनु ने अपने धर्मशास्त्र मनुस्मृति में यह भी कहा है कि:अनेकानि सहस्राणी कुमारी ब्रह्मचारिणाम् । दिवं गतानि विप्राणामकृत्वा कुलसन्ततिम् ॥
इसमें स्पष्ट बतलाया है कि अनेकों ने कुमारावस्था से ही ब्रह्मचर्य व्रत का सम्पूर्ण पालन कर स्वर्ग को प्राप्त किया है । इनके अलावा भी कई प्रमाण मिलते हैं जो ब्रह्मचर्य से मोक्ष प्राप्त हुए हैं ।
ब्राह्मण देव ! दूसरे व्रत पालन करने सहज हैं पर यह दुस्कर व्रत पालन करना बड़ा भारी कठिन है ऊपर जो नव वाडे बतलाई हैं जिसमें स्त्री जाति का परिचय तक करना मना किया है और दूसरों के लिये तो क्या पर खुद माता एवं बहिन के साथ भी एकान्त में नहीं ठहरना चाहिये जैसे कहा है कि:मात्र स्वस्त्र दुहित्रा वा न विविक्ताऽऽसनोभवेत्। बलवानिन्द्रिय ग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ||
महात्माओं ने तो यहां तक भी फरमाया है कि मैथुन केवल स्त्री पुरुष संयोग को ही नहीं कहते हैं पर मनसा विकार मात्र को भी मैथुन ही कहते हैं ।
ब्रह्मचर्यं सदा रक्षेद् अष्टधा रक्षणं पृथक् । स्मरणं कीर्त्तिनं केलिः प्रक्षेणं गुह्यभाषणम् ॥ संकल्पोऽध्यवसायश्च क्रियानिवृत्तिं रेव च । एतन्मैथुनमष्टांगं प्रवदन्ति मनोषिणाः ॥
ब्राह्मण देव ने कहा पूज्यवर ! आपका कहना सत्य है पर किसी २ शास्त्र में तो यहां तक भी लिखा है कि तपके तपने वाले सन्यासी महात्माओं ने कई राजाओं की रानियों को ऋतुदान दिया था। तब क्या परोपकार के लिये साधुत्रों को इस बात की छूट दी है ।
सूरिजी ने फरमाया कि यह किसी व्यभिचारी ने अपने ऐब छिपाने के लिये परोपकार की ओट में कुकर्म किया होगा | देखिये शास्त्र तो स्पष्ट कह रहा है कि:यस्तु प्रवार्जितो भूत्वा पुनः सेवेत मेथुनम् । षष्टिवर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते कृमि ॥
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इत्यादि सूरिजी ने ब्रह्मचर्य का इस कदर महत्व बतलाया उसका भूषि पर इतना प्रभाव हुआ कि उसी ने भरी सभा के बीच खड़ा होकर प्रतिज्ञा पूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया । उस सभा में शाह लाला का पुत्र त्रिभुवनपाल भी बैठा था उसने भी इस प्रकार ब्रह्मचर्थ्य के महत्व को सुना जिसकी उम्र करीब १६ वर्ष की थी पर पूर्व जन्म का क्षयोपशम इस प्रकार का था कि उसने अपने दिल में निश्चय कर लिया कि मैं आजीवन अखंड ब्रह्मचर्य व्रत पालन करूंगा । त्रिभुवन ने अपने मन में तो दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली पर लज्जा के मारे उस सभा में बोल नहीं सका । जब सभा विस र्जन हुई तो त्रिभुवन ने अपने मनकी बात सूरिजी से कह सुनाई। सूरिजी ने कहा, त्रिभुवन ! तेरा विचार तो उत्तम है पर कुटुम्ब वाले तुमको सुख रहने नहीं देंगे वह तेरी शादी की बातें कर रहे हैं । त्रिभुवन ने कहा पूज्यवर ! जब मैं दृढ़ता पूर्व प्रतिज्ञा कर चुका हूँ तो मुझे डिगाने वाला है कौन ? सूरिजी ने कहा, बहुत अच्छी बात है यह व्रत तेरे कल्याण का कारण है । त्रिभुवन सूरिजी को वंदन कर अपने मकान पर चला गया !
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[ ब्रह्मचर्यव्रत का महत्व
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