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________________ ( 85 ) कि हे प्रभो ! समय श्रा पहुँचा है आप दीक्षा धारण कर भगवान ऋषभदेव के चलाये हुवे धर्म का उद्धार करो तब माघ वदी ९ को एक हजार पुरुष के साथ भगवान् ने दीक्षा धारण करी उम्र तपश्चर्या करते हुये पौष व १९ को भगवान् ने कैवलज्ञान प्राप्त किया भगवान् ऋषभदेव के प्रचलित किए हुए धर्म को वृद्धि करते हुवे सिंहसेनादि एकलक्ष मुनि फाल्गुनी आदि तीन लक्ष तीसहजार श्रार्यकाए दो लक्ष अठानवे हजार श्रावक, पंचलक्ष पैंतालीस हजार श्राविकाओं का सम्प्रदाय हुआ क्रमशः बहत्तरलक्ष पूर्व का सर्व प्रायुष्य पूर्ण कर सम्मेतशिखर पर्वतपर चैतशुद ५ को भगवान् मोक्ष पधारे आपका शासन तीसलक्ष कोड सागरोपम तक प्रवृतमान रहा । उस समय प्रायः राजा प्रजा का एक धर्म जैन ही था । आपके शासन में सागर नाम का दूसरा चक्रवर्ती हुआ वह अयोध्या नगरी के सुमित्रराजा के यशोमतिराणीकी कुक्षीसे चौदह स्वप्न सूचीत पुत्र हुआ जिसका नाम "सागर" था वह ४५० धनुष्य का शरीर ७२ लक्ष पूर्वका आयुष्य शेष छे खण्डादिका एक छत्रराज वगैरह भरत चक्रवर्ती की माफिक जानना विशेष सागर के साठ हजार पुत्रों से जन्हुकुमार ने अपने भाईयों के साथ एक समय अष्टापद तीर्थपर भरतके बनाये हुये जिनालयों की यात्रा करी विशेष में उनका संरक्षण करने के लिये चौतरफ खाई खोद गंगानदी की एक नहर लाके उस खाई में पाणी भर दिया और जन्हुकुमार का पुत्र भागीरथ ने उस अधिक पाणी को फिर से समुद्र में पहुँचा दिया जब से गंगा का नाम जन्ही व भागीरथी चला पर उस पाणी से नागकुमार के देवों को तकलीफ होने से उन सब कुमारों को वहां ही भस्म कर दिया अस्तु ! सागर चक्रवर्ती अन्त में दीक्षा पहन कर कैवल्यज्ञान प्राप्तकर नाशमान शरीर छोड़के आप अक्षय सुखरूपी मोक्ष मन्दिर में पधार गये । भगवान् ऋषभदेव के पश्चात् दूसरे तीर्थङ्कर भ० अजितनाथ इनके बाद तीसरे संभवनाथ चतुर्थ अभिनन्दन पांचवे सुमतिनाथ छटे पद्मप्रभ सातवें सुपार्श्वनाथ आठवें चन्द्रप्रभ नोर्वे सुबुद्धिनाथ यहां तक तो समाज एवं धर्म की उत्तरोत्तर वृद्धि होती आई पर भ० सुबुद्धिनाथ से पन्द्रहवें धर्मनाथ का शासन तक श्ररूपकाल चल कर बीच बीच में शासन विच्छेद होता गया जिससे माहाणों (ब्राह्मणों) की जुल्मी सत्ता बढ़ती गई उन्होंने मूल चार वेदों में भी काफी परिवर्तन करके अपने स्वार्थ के ऐसे विधि विधान रच डाले कि जिस से संसार अध: पतन होकर रसातल में पहुँचने लगा । जब सोलहवें भ० शान्तिनाथ का शासन प्रवृतमान हुआ तब से संसार में शान्ति का प्रचार हुआ आगे सतरहवें कुन्थुनाथ अठारहवें अरेनाथ उन्निसर्वे मल्लिनाथ और बीस मुनिसुव्रत के शासन में पर्वतने महाकाल देव की सहायता से मांस भक्षण का एवं यज्ञादिका जोरों से प्रचार किया बाद एक बीसवें नमिनाथ और बाईसवें नेमिनाथ के शासन में मांस का प्रचार ग्राम तौर से राजा महाराजाओं के यहां लग्नसादियों में भी प्रयोग होने लगा पर भ० नेमिनाथ ने अपने शासन में मांस का प्रचार पर अंकुश लगा कर अहिंसा के प्रचार को बढ़ाया इसी प्रकार भ० पार्श्वनाथ और भ० महावीर ने तो अहिंसा का सर्वत्र प्रचार बढ़ा दिया इन चौवीस तीर्थकरों का विस्तृत हाल आगे चलकर हम कोष्ट द्वारा लिखेंगे । हाँ चौवीस तीर्थङ्करों में विशेष वर्णन तो भ० ऋषभदेव का ही था वह हम लिख आये हैं। शेष तीर्थकरों के शासन में जो विशेष घटना घटी है जिसको ही हम यह संक्षिप्त से लिख देते हैं जब कि हमारा खास उद्देश्य तो म० पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास लिखने का ही था पर कई सज्जनों का यह भी मह रहा कि इतना बड़ा प्रन्थ में कम से कम चौवीस तीर्थङ्करों का संक्षिप्त से जाना चाहिये कि पाठकों को उनके लिये अन्योन्य पुस्तकों को ढूंढना नहीं पड़े । श्रवः उन आह को मान देकर शेष तीर्थङ्करों के शासन की विशेष घटना यहां लिखदी जाती हैं । १ - भ० ऋषभदेव तथा चक्रवर्ति भरत का अधिकार तो विस्तार से कर दिया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only भी वर्णन सज्जनों के www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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