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________________ आचार्य यक्षदेवसरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ५१५-५५७ फिर भी यह खुशी की बात है कि दोनों धर्म के पालने वाले अप्रवालों में रोटी बेटी व्यवहार जैसे पहिले था वैसे ही आज भी है। ____ अब देखना है समय ! कि अग्रवाल किस समय जैनी बने हैं इसके लिये आचार्य लोहितसूरि का समय देखना पड़ेगा क्योंकि अग्रवालों को जैन बनाने वाले आचार्य लोहितसूरि थे और जैन पट्टावलियों से पता चलता है कि आर्यदेवऋद्धिगणि क्षमा श्रमणजी आचार्य लोहितसूरि के शिष्य थे और उन्होंने वीर संवत ९८० (ई. स. ४५३) में बल्लभी नगरी में आगम पुस्तकारूढ़ किये थे। यदि इनसे ३० वर्ष पूर्व आवार्य लोहित का समय समझा जाय तो ई. स ४२३ के पास पास आगरा नगर में आचार्य लोहितसूरिने अग्रवालों को जैन बनाये थे और बाबुनागेन्द्रनाथ के मतानुसार यह समय राजा अग्रपेन के निकटवर्ती श्राता है। जब राजा अग्रसेन ने जैनाचार्य के उपदेश से पशुहिंसा एवं मांस प्रति घृणा लाकर अपनी संतान तक के लिये हिंसा निषेध कर दी तो ब्राह्मणों ने उनको कहना सुनना एवं उपदेश अवश्य किया होगा और उस समय या उनके बाद कुछ अर्मा में अग्रवालों ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया हो तो यह सर्वथा मानने योग्य है। अग्रवाल जाति के जैन श्रावकों ने आत्म कल्याण के लिये बड़े बड़े सुकृत कार्य किये है कई दाने वरियों ने दुष्काल में करोड़ों द्रव्य व्यय कर देशवासी भाइयों के प्राण बचाये कई एकों ने तीर्थयात्रार्थ बड़े. बड़े संघ निकाल कर चतुर्विध श्री संघ कों तीर्थों की यात्राएं करवाई-कइएकों ने स्वपर कल्याणार्थ बड़े. बड़े मन्दिर बनवा कर उसमें त्रिजगपूजनीय तीर्थङ्कर देवों की मूर्तियो की प्रतिष्ठा करवाई कइएकों ने जैनाचार्यों के पद महोत्सव एवं नगर प्रवेश महोत्सव में लाखों करोड़ों द्रव्य खर्च कर अनंत पुन्योपार्जन किये। जिसके उल्लेख यत्र तत्र पट्टावलियादि ग्रन्थों में मिलते है। जिसकों हम यथा स्थान दर्ज करदेंगे। यहाँ पर तो केवल अग्रवाल जाति की उत्पति तथा अग्रवाल जाति कबसे जैनधर्म स्वीकार किया इन बातों का ही निर्णय करना था जो उपरोक्त प्रमाणों से पाठक अच्छी तरह से समझ गये होंगे । इति शुभम् ___ महेश्वरी जाति की उत्पत्ति ___ महेश्वरी जाति के साथ जैन धर्म का घनीष्ट सम्बन्ध है क्योंकि महेश्वरी जाति के पूर्वज सब के सब जैन धर्मोपासक थे, जिस समय महेश्वरी जाति की उत्पत्ति हुई थी उस समय जैन धर्म का सर्वत्र प्रचार था एवं अहिंसा परमोधर्म का झंडा सर्वत्र फहरा रहा था हिंसामय यज्ञादि क्रिया काण्ड से जनता को अरूची एवं घृणा हो रही थी, जैनाचार्य सर्वत्र विहार कर जनता की शुद्धि कर जैन धर्म के झंडा के नीचे लाकर उनका उद्धार कर रहे थे। फिर भी कहीं कहीं पर ब्राह्मण लोग छाने छूपके छोटा बड़ा यज्ञ कर ही डालते थे ऐसा ही बरताव महेश्वरी जाति की उत्पति में हुआ है। महेश्वरी जाति की उत्पत्ति के लिये महेश्वरियों के जाग-वही भाट अपनी वंशावलियों में एक कथा बना रखी हैं और जब महेश्वरियों के नाम लिखने को वे लोग आते है तब वह कथा सब को सुनाया करते हैं उसमें सत्य का अंश कितना है पाठक स्वयं समझ जायंगे । खैर कुच्छ भी हो उन जागों के तो यह कथा एक जागीरी बन चूकी है पाठकों की जानकारी के लिये उस कथा को यहां उद्धृत करदी जाती है। खंडेला नगर में सूर्यवंशी राजा खंडेलसेन राज करता था राजा सर्व प्रकार से सुखी एवं सर्व ऋद्धि सम्पन्न होने पर भी उसके कोई सन्तान नहीं थी, अतः वह सदैव चिन्तातुर रहता था और इसके लिये कई उपाय महेश्वरी जाति की उत्पत्ति ] Jain Edu For Private & Personal use Only www.jaindibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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