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________________ वि० सं० ११५-१५७ वर्ष ] [भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास गर्ग गोडल टेरन for a mx 5 w a va बिंदल संख्या | राजकुमार ऋषि | गोत्र | सं० राजकुमार ऋषि | गोत्र पुष्पदेव । गर्ग । १० तंबोलकरण तांडव तुंगल गेदूमल | गौभिल | ताराचंद तैत्तिरीय ताईल करणचंद कश्यप कच्छल वीरभान वत्स बाँसल मणिपाल कौशिक कांसिल १३ । वासुदेव धन्यास वृन्ददेव वशिष्ठ | १४ नारसेन नागेन्द्र नागल ढावणदेव | धौम्य ढालन(टेलण १५ अमृतसेन मॉडव्य मंगल सिंधुपति | शाण्डिल्य ! सिंघल १६ । इन्द्रमल | और्व एरन ८ जैवसंघ | जैमिनी | जिंदल १७ । माधवसेन! मुद्गल | मधुकल ९ । मन्त्रपति | मैत्रेय । मित्तल, १८ । गोधर | गोतम | गोबन इन गोत्रों का नाम कुछ रद्दोबदल भी मिलता है तथा इन गोत्रों से बाद में कई शाखायें भी निकल गई थीं ! एक समय इस अग्रवाल जाति का बड़ा भारी अभ्युदय था और व्यापार में जैसे ओसवाल पोरवाल और पल्लीवाल जातिएं बढ़ चढ़ के थी इसी प्रकार अग्रवाल जाति भी खूब उन्नत एवं आबाद थी। ___ अग्रवाल जाति के हाथों से राज कब निकाला और कब से व्यापार क्षेत्र में प्रवेश हुई इसके लिये अग्रवाल जाति का इतिहास पढ़ना चाहिये। अग्रवाल जाति में जैनधर्म--अग्रवाल जाति इस समय दो शाखाओं में विभाजित है 2 वैष्णव धर्मोपासक २-जैनधर्मोपासक । अग्रवाल जाति में जैनधर्म कब से प्रवेश हुआ इसके लिये अनुमान किया जाता है कि राजा अग्रसेन पर यज्ञ समय ही जैनधर्म का प्रभाव पड़ चुका था जब ही तो उसने हिंसामूलक यज्ञ करवाना बन्द कर अपनी संतान परम्परा के लिये हिंसा करना निषेध कर दिया था पर यह उल्लेख नहीं मिलता है कि राजा ने उसी समय खुल्लमखुल्ला जैनधर्म स्वीकार कर लिया था या बाद मे ? हां, पट्टावल्यादि प्रथों में यह उल्लेख जरूर मिलता है कि जैनचार्य * लोहित्यसूरिश ने अप्रवालों को प्रतिबोध देकर जैन बनाया था। इसके लिये लिखा है कि अग्रहा नगर में किसी प्रसंग से अग्रवाल लोग एकत्र हुये थे उस समय प्राचार्य लोहित्त्यसरि अपने शिष्यों के साथ भ्रमण करते हुये आगरा नगर में पधारे और उन अग्रवालों को उपदेश दिया जिसमें वहां उपस्थित थे वे लोग जैनधर्म स्वीकार कर लिया तब से ही अग्रवाल लोग जैनधर्म पालन कर रहे है । उन्हों की बस्ती यू० पी० तथा पंजाब की ओर विशेष है । उस समय जैनियों में कुछ संकीर्णता ने अपना अड्डा जमा लिया था कि ओसवालादि जैन जातियों ने अग्रवालों के साथ रोटी व्यवहार तो शामिल कर लिया परन्तु बेटी व्यवहार शामिल नहीं हुआ इसी कारण कालक्रम से कुछ अप्रवाल पुनः वैष्णव धर्म में चले गये अतः अग्रवालों में दो धर्म आज भी हष्टिगोचर होरहे हैं १-जैन २ वैष्णव परन्तु लोहित्याचार्य-दो हुए है-एक श्वेताम्बर समुदाय में लोहित्याचार्य हुए है और दूसरे दिगम्बर समुदाय में भी एक लोहित्याचार्य है । परन्तु अग्रवाल जाति के प्रतिबोधक शुरु से श्वेताम्बर समुदाय के लोहित्याचार्य हैं अतः अग्रवाल जाति शरू से श्वेताम्बर समुदाय के श्रावक थे पर बाद कई स्थानों में श्वेताम्बर साधुओं के अभाव से कई अग्रवाल भाई दिगम्बर को भी मानने लग गये हैं। खैर अग्रवाल जाति प्राचीन समय से जैनधर्मोपासक है। Jain Edy Ointernational For Private &Personal use only [ भगवान् महावीर की परम्परा ww.jdine brary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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