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________________ वि० सं० ११५–१५७ वर्ष । [ भगवान् पार्श्वनाथ को परम्परा का इतिहास २--कई लोगों का मत है कि अप्रवालों के पूर्वजों ने श्राग्रहा (आगरा) नाम का नगर बसाया था । इससे इस जाति का नाम अग्रवाल हुआ। ३-कई एकों का मत है कि अग्रवाल जाति क्षत्रियों से उत्पन्न हुई है। ४-कई कहते हैं कि अग्रवाल जाति वैश्यों से पैदा हुई । ५-कई कहते हैं कि राजा अग्रसेन की सन्तान होने से इस जाति का नाम अग्रवाल हुआ है। पर अग्रसेन के लिये भी तो कई मत प्रचलित है जैसे कि a-पौराणिक कथाओं में राजा अग्रसेन की पूर्व परम्परा ब्रह्माजी से मिलाई है। b-कई कहते हैं कि श्रीकृष्ण के समय यदुवंश में अग्रसेन राजा हुआ है । c-कई कहते हैं कि युधिष्ठिर की तेरहवीं पुश्त में गजा अग्रसेन हुआ d-कई कहते हैं कि आबू के परमारों में राजा अग्रसेन हुआ जिसका समय ई० स० ८३ के आस पास का है। e-इतिहास मर्मज्ञ बंगाल के बाबू नागेन्द्रनाथ वसु कहते हैं कि सम्राट समुद्रगुप्त के समय (ई. सं० ३२६ से ३७५ ) राजा उग्रसेन हुआ। इत्यादि जिसमें बंगाल के इतिहास कार बाबू नागेन्द्रनाथ वसु का मत है कि उपरोक्त पाच उग्रसेन से अन्तिम सम्राट समुद्रगुप्त के समय में जो उग्रसेन हुआ है वही अग्रवाल जाति का पूर्वज होना चाहिये जिसका समय ईसा की चतुर्थ शताब्दी है । उस उग्रसेन की सन्तान ही अग्रवाल कहलाई। उपरोक्त मत्तों में ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाय तो बाबू नागेन्द्रनाथ का मत्त प्रमाणिक पाया जाता है । बाबुजी के इस मत से हम भी सहमत है। अग्रसेन के साथ अग्रहा नगर का घनिष्ट सम्बन्ध है। कई विद्वानों का मत है कि राजा अग्रसेन ने ही अग्रहा नगर बसाया था और वहाँ पर अग्रवालों के एक लक्ष घरों की बस्ती थी। वे धन धान्य में बड़े ही समृद्धशाली थे । एक ऐसी भी कथा प्रचलित है कि अग्रहा नगर में कोई भी जाति भाई रहने को आता तो प्रदेशों में भी जत्थावन्ध था। शायद् अग्रवालों के पूर्वजों ने अगुरुका व्यापार किया हो और इस कारण इन लोगों की जाति का नाम अग्रवाल हुआ हो तो असंभव भी नहीं है जैसे कुमटका व्यापार से कुमट जाति बनो धूप का व्यापार से धूपिया गुद का धंधा से गुन्दिया इत्यादि ये जातिये ओसवालों में आज भी विद्यमान है। अग्रसेन नामक एक वैश्य राजा एक लाख मनुष्यों के परिवार के साथ दक्षिण में राज करता था । राजा अग्रसेन के पूर्व पुरुष धनपाल भी दक्षिण भारत के प्रताप नगर में राजा थे। उनके शिव, नल, आनन्द, नन्द, कुन्द, कुमुद, बल्लभ और शुक नामक आठ पुत्र और मुकुटा नामक एक कन्या हुई । उस समय विशाल नामक एक और राजा नल नगर में राज्य करता था उसके पद्मावती, मालती कान्ति नन्दा, सुभद्रा सुरा, मरा और रजा नाम की आठ कन्यायें थीं । धनपाल के उक्त आठ पुत्रों के साथ विशाल की आठों कन्याओं का विबाह हो गया। जिसमें नल सन्यासी हो गया बाकी सात पुत्र अपने अपने अधिकृत देश में राज्य करते थे। शिव के वंश में वंशानुक्रम से विष्णुराज, सुदर्शन, धुरन्धर, समाधि, मोहनदास और नेमनाथ ने राज्य किया । नेमनाथ से नैपाल का नामकरण हुआ और वहाँ लोक आकर बसे । नेमनाथ के पुत्र वृन्द ने बृन्दावन में बहुत से यज्ञ किये । वृन्द के पुत्र गुर्जर ने अपने नाम से गुर्जर देश में राज्य स्थापित किया। गुर्जर का पुत्र हरिहर उसका पुत्र रङ्गराज और उसकी पांचवीं पीढ़ी में अग्रसेन हुआ उस ने नागराज की कन्या माधवी से विवाह किया। इस [ भगवान् महावीर की परम्परा ५४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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