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________________ आचार्य यक्षदेवसूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ५१५ - ५५७ ६१ विद्यमान भट्टारक श्री उजायेणसूरि पटि ६१ संवत् १६८७ वाचक पदं संवत् १७२८ जेष्ठ सुदि १२ बार शनि दिन सूरि पद विद्यमान विजय राज्ये - उपरोक्त पट्टावली से पाया जाता है कि विक्रम की चौथी शताब्दी में पल्लीवाल गच्छ की स्थापना आचार्य शान्तिसूरि के हाथों से हुई थी -- पाली की जनता को सबसे पहिले प्रतिबोध श्राचार्य श्री रत्नप्रभसूरि ने ही दिया था और श्रापश्री की परम्परा के आचार्यों ने क्रमशः उनकी वृद्धि करी । बाद में जब पूर्व में आर्य सुहस्तीसूरि के समय दुष्काल पड़ा थात सुहस्तसूरि सपरिवार आवंति प्रदेश में आये बाद में सौराष्ट्र और मरुधर में आये और पाली की और अधिक विहार करने वाले शान्तिसूरि ने पल्लीवालगच्छ की स्थापना की हो तो यह बात विश्वासनीय है । जैसे ८४ गच्छों में पल्लीवालगच्छ प्राचीन है वसे ही वैश्यों की ८४ जातियों में भी पल्लीवाल जाति प्राचीन है जहाँ हम चौरासी जातियों के नाम उल्लेख करेंगे पाठक वहाँ से देख सकेंगे कि पल्लीवाल जाति कितनी प्राचीन है ? पल्लीवाल जाति में बहुत से नररत्न वीर एवं उदार दानेश्वरी हुए हैं जिन्होंने एक एक धर्म कार्य में लाखों करोड़ी द्रव्य व्यय करके कल्याणकारी पुन्योपार्जन किया है हाँ आज उनका सिलसिला बार इतिहास के अभाव हम यहाँ सबका उल्लेख नहीं कर सकते हैं इसका कारण यह है कि अव्वल तो वह जमाना ही ऐसा था कि इन बातें को लिपिबद्ध करने की प्रथा ही कम थी दूसरा जो करते थे वह भी उनके गच्छ वालों के पास तथा वंशाबलियों लिखने वालों के पास रहता था पर विदेशियों की धर्मान्धता के कारण कई ज्ञान भंडार ज्यों के त्यों जला दिये गये थे कि उसके अन्दर काफी ग्रन्थ जल गये । तथापि शोध खोज करने पर पल्लीवाल जाति एवं पल्लीवाल गच्छ सम्बन्धी यत्र तत्र बिखरा हुआ साहित्य मिल सकता है अभी विद्वर्य मुनिराज श्री दर्शनविजयजी महाराज ने पल्लीवाल जाति का इतिहास लिखकर इस जाति के विषय अच्छा प्रकाश डाला है पल्लीवाल जाति के वीर पेथड़शाह वगैरह दानेश्वरियों के नाम खास उल्लेखनीय हैं जिसको हम यथा स्थान वर्णन करेंगे यहाँ तो हमारा उद्देश्य खास पल्लीवाल जाति के विषय लिखने का था और हमने उपरोक्त प्रमाणों द्वारा यह बतलाने की कौशिश की है कि पल्लीवाल जाति बहुत प्राचीन है इसका उत्पति स्थान पाली नगर और समय विक्रमपूर्व चार सौ वर्ष पूर्व का है । अग्रवाल जाति जैसे भारतीय जातियों में ओसवाल पोरवाल पल्लीवाल श्रीमालादि जातियें हैं वैसे अग्रवाल भी एक जाति है । इस जाति के इतिहास के लिए वे ही कठिनाइयें हमारे सामने उपस्थित हैं कि जैसी अन्य जातियों का इतिहास के लिये हैं । कारण, इस जाति का भी सिलसिले वार इतिहास नहीं मिलता है । हाँ, इस जाति की उत्पति के लिए कई प्रकार की किम्बदन्तियें प्रचलित हैं जैसा कि - ! १ - - कई कहते हैं कि इस जाति के पूर्वज अगुरु नाम की सुगन्धित लकड़ियों का व्यापार करते थे अतः इसका नाम अगुरु पड़ गया और उस गुरु का ही अपभ्रंश अग्रवाल है । * कौटिल्य के अर्थशास्त्र से पता मिलता है कि एक समय भारत में अगुरु जाति की लकड़ियों का बहुत प्रमाग में व्यापार चलता था और अगुरु लकड़ी सुगन्धमय होने से इसका व्यापार भारत में ही नहीं बल्कि भारत के अतिरिक्त पाश्चात्य अग्रवाल जाति की उत्पत्ति ) Jain Education International For Private & Personal Use Only ५४७ www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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