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वि० सं० ११५–१५७ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
१८-श्री नन्नसूरि पाटि १८ संवत ३५६ स्वर्गे ४२-- श्री अभयदेव सूरि पाटि ४२ स० ११६९ १९-श्री उजोयण सूरि पाटि १९ स० ४०० स्वर्गे श्री मलधार अभयदेवसूरि अविमल्या ता पछे २०-श्री महेश्वरसूरि पाटि १९ संवत ४२४ स्वर्गे
अजीतदेव स्वामि श्री अभयदेवसूरि कहा२१-~-श्री अभयदेव सूरि पाटि २१ स० ४५० "
वाण पाटि ४२ स० ११६९ स्वर्गे २२-श्री आमदेवसूरि पाटि २२ स० ४५६ " ४३ -श्री अामदेव सूरि पाटि ४३ स० ११९९ " २३- श्री शान्ति सूरि पाटि २३ स. ४९५ ४४-श्री शान्ति सूरि पाटि ४४ स० ५२२४ " २४-श्री जसोदेव सरिपाटि २४ स०५३४ ४५-श्री जसोदेव सूरि पाटि ४५ स० १२३४ " २५ --श्री नन्न सूर पाटि २५ स० ५७० ४६ -श्री नन्न सूरि पाटि ४६ स १२३९ " २६- श्री उजोयण सूरि पाटि २६ स. ६१६ " ४७ ---श्री उजोयण सूरि पाटि ४७ स. १२४३ " २७-श्री महेश्वर सूरि पाटि २७ स० ६४० । ४८-श्री महेश्वर सूरि पाटि ४८ स० १२७४ " २८-श्री अभयदेव सूरि पाटि २८ स. ६८१ " ४९-श्री अभयदेत्र सूरि पाटि ४९ स० १३२१ " २९-श्री बामदेव सूरि पाटि २९ स. ७३२ " ५०-~श्री अामदेव सूरि पाटि ५० स १३७४ " ३०-श्री शान्ति सूरि पाटि ३० स० ७६८ ५१-श्री शान्ति सूरि पाटि ५१ सः १४४८ " ३१-श्री जस्योदेव सूरि पाटि ३१ स० ७९५ " ५२-श्री जसोदेव सूरि पाटि ५२ स० १४८८ " ३२-श्री नन्न सूरि पाटि ३२ सम्वत ८३१ ।। ५३-- श्री नन्न सूरि पाटि ५३ स० १५३२ " ३३-श्री उजोयण सूरि पाटि ३३ सः ८७२ " ५४-- श्री उजोयण सूरि पाटि ५४ स० १५७२ " ३४-श्री महेश्वरसूरि पाटि ३४ सम्वत ९२१ " । ५५-श्री महेश्वर सूरि पाटि ५५ स० १५९९ " ३५-श्री अभयदेव पाटि सूरि ३५ स० ९७२ " । ५६-श्री अभयदेव सूरि पाटि ५द् नवी गच्छ स्था३६-श्री आमदेव सूरि पाटि ३६ सम्वत ९९९ " । पना किधी गुरांसा ( थी ) क्लेश कीधो कोटि ३७-श्री शान्ति सूरि पाटि ३७ स. १०३१ " द्वेष करी क्रिया उद्धार कीधो स० १५९५ स्वर्गे ३८-श्री जस्योदेव सूरि पाटि ३८ स० १०७० " ५७-श्री अामदेव सृरि पाटि ५७ स० १६३४ " ३९-श्री नन्न सूरि पाटि ३९ स. १०९८ " ५८-श्री शान्ति सूरि पाटि ५८ स. १६६१ " ४०-श्री उजोयण सूरि पाटि ४० स० ११२३ ” ५९- श्री जसोदेव सूरि पाटि ५९ स. १६.२ " ४१-श्री महेश्वर सूरि पाटि ४१ स. ११५५ " ६०-श्री नन्न सूरि पाटि ६० स. १७१८ " ६१-विद्यमान भट्टारक श्री उजोयणसूरि पटि ६१ स. १६८७ वाचक पद स० १७२८ जेष्ट सुदि १२ वार शनि दिन सूरि पद विद्यमान विजय राज्ये ।
१६-वां पट्ट का समय संवत् १८० का बतलाया है तब १७ वा पट्ट का समय सं० ३२९ का लिखा है तथा पडीवालगच्छ की स्थापना सं० ३९० में हुई लिखी है फिर १८ वां पट्ट का समय सं० ३५६ का लिखा है यह संवत् ठीक नहीं है क्योंकि १६ वां और १७ वां पट्ट अन्तर १४९ वर्ष का होना असंभव सी बात है जब ३७ का पह ही ३२९ वर्ष का है और १८ वां संवत ३५६ का तब १६ वां पट्ट में पल्लीवालगच्छ की स्थापना सं० ३९० में कैसे हुई हो शायद ३०९ का संवत हो और बिन्दी बीच में की भूल से आगे लग गई हो तो कम से कम १७ वें पट्टके अन्दर ३०९ में पल्लीवाल गच्छ की स्थापना मानी जा सकती है । अब रहा १६-१७ वां पटान्तर १४९ वर्ष का बतलाया है इसमें या तो कुछ असा तक पट खाली रहा है या कोई दूसरा कारण हो या इतना बड़ा आयुष्य हो कोई भी विशेष कारण बिना इतना अर्सा तक एक पट होना विचारणीय है
[ भगवान महावीर की परम्परा
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