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________________ आचार्य यक्षदेवमरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ५१५-५५७ हुआ इसी प्रकार पाली नगर के नाम से पल्लीवालगच्छ भी उत्पन्न हुआ उपरोक्त गच्छों की नामावली में पल्लीवालगच्छ का नंबर तीसरा श्राता है कारण इस गच्छ की पट्टावली देखने से मालूम होता है कि यह गच्छ बहुत पुराणा है जो उपकेशगच्छ और कोरंटगच्छ के बाद पल्लीवालगच्छ का नम्बर आता है श्रीमान् अगरचन्दजी नाहटा बीकानेर वाला ने श्री आत्मानन्द शताब्दी अंक नामक पुस्तक के हिन्दी विभाग के पृष्ट १८२ पर पल्लीवालगच्छ की पट्टावलीके विषय में एक लेख मुद्रित करवाया है। मैं केवल उस पट्टावली को यहाँ ज्यों की त्यों उद्धृत कर देता हूँ प्रथम २४ तीर्थङ्करों और ११ गणधरों के नाम लिखकर आगे पट्टानुक्रम इस प्रकार लिखा है१-श्री स्वामी महावीरजी रे पाटे श्री सुधर्म१ ६-तत्पाढे श्रीसंभूतविजय ६ २-तिणरे पाटे श्रीजम्बु स्वामी २ ७- तत्पाढे श्रीभद्रबाहुस्वामी ७ ३-तत्पा? श्रीप्रभव स्वामी ३ ८- तत्पाढे तिण माहें भद्रबाहु री शाख न ४-तत्पाटे श्रीशय्यंभवसूरि ४ वधी श्री स्थुलभद्र ८ ५-तत्पाढे श्रीजसोभद्रसूरि ५ ९- तत्पट्टे श्रीसुहस्तीसूरि २ काकंद्य कोटिसूरिमंत्र जाप्पांवान् कोटिकगण । तिहारै पाटि सुप्रतिबंध ९ तियारै गुरुभाई सुतिणरा शिष्य दोई विजाहर १ उच्चनागोरी २ सुप्रतिबंध पाटि ९ तिणरी शाखा २ तिणांरा नाम मजिमिका १ वयरी २।। १.-वयरी रै पाटै श्रीइन्द्रदिन्नसूरि पाटि १२--तत्पट्टे श्री सिहगिरिसूरि पाटि ११-तत्य? श्रीअार्यदिवसूरि १३-तत्प? श्री वयर स्वामी पाटि १४-तत्पट्टे तिणरी शाखा २ तिहाँरा नाम प्रथम श्री वयरसेन पाटि १४ बीजी श्री पद्म २ तिणरी नास्ति । तीजो श्री रथसूरि पाटि श्री पुसगिरि री शाखा बीजी बयरसेन पाटि १४ १५-तत्प? श्री चन्द्रसूरि पाटि १५ संवत् १३० चन्द्रसूरि । ( यहां तक तो दूसरे गच्छों से मिलती जुलती नामावली है केवल नौवें नम्बर में महागिरी का नाम नहीं है और सुप्रतिबंध का नाम अलग चाहिये जिसको सुहस्ती के शामिल कर दिया है । अब १६ वां नंबर में शान्तिसूरि से इस पल्लीवालगच्छ की शाखा एवं पटटावली अलग चलती है जैसे कि-1 १६-संवत् १९ ( १६१) १ श्री शांतिसूरि थाप्पा पाटि १६ श्री संवत १८० स्वर्ग श्री शांतिसूरि पाट्टे १६ तिणरे शिष्य ८ तिणरा नाम | (१) श्री महेन्द्रसूरि १ तिणथी मथुरावाला गच्छ (२) श्री शालगसूरि श्री पुरवालगच्छ (३) श्री देवेन्द्रसूरि खंडेलवालगच्छ (४) श्री श्रादित्यसूरि सोमितवालगच्छ (५) श्री हरिभद्रसूरि मंडोवरागच्छ (६) श्री विमलसूरि पतनवालगच्छ (७) श्री वर्द्धमानसूरि भरवच्छेवालगच्छ (८) श्री मूल पट्टे श्री (.......... १७--श्री जसोदेवसूरि पाटि १७ संबत् ३२९ वर्षे वैसाख सुदि ५ प्रल्हादि प्रतिबोधिता श्री पल्लीवालगच्छ स्थापना संवत ३९० (।)स्वर्गे । पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति ) ५४५ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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