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आचार्य यक्षदेवसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ५१५-५७
ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाय--तो पाली और पल्लीवाल जाति का गौरव कुछ कम नहीं हैं प्राचीन ऐतिहासिक साधनों से पाया जाता है कि पुराने जमाने में इस पाली का नाम फेफावती पाल्हिका पालिका आदि कई नाम था और कई नरेशों ने इस स्थान पर राज भी किया थ पाली नगर एक समय जैनों का मणिभद्र महावीर तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध था, इतिहास के मध्य काल का समय पाली नगरी के लिये बहुत महत्त्व का था विक्रम की बारहवीं शताब्दी के कई मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्टाएँ के शिलालेख तथा प्रतिष्टा करवाने वाले जैन श्वेताम्बर आचार्यों के शिलालेख आज भी उपलब्ध हैं इत्यादि प्रमाणों से पाली की प्राचीनता में किसी प्रकार के संदेह को स्थान नहीं मिलता हैं।
व्यापार की दृष्टि से देखा जाय--तो भारतीय व्यापारिक नगरोंमें पाली शहर का मुख्य स्थान है पूर्व जमाने में पाली शहर व्यापार का केद्र था यहाँ बहुत जथ्था बन्ध माल का निकस प्रवेश होता था यह भी केवल एक भारत के लिये ही नहीं था पर भारत के अतिरक्त दूसरे पश्चात्य प्रदेशों के व्यापारियों के साथ पाली शहर के व्यापारियों का बहुत बड़े प्रमाणमें व्यापार चलता था पाली में बड़े-बड़े धनाढय व्यापारी बसते थे और उनका व्यापार विदेशों के साथ था तथा उनकी बड़ी-बड़ी कोठियाँ थीं। फारिस अरब अफ्रिका चीन जापान जावा मिश्र तिब्बत वगैरह प्रदेश तो पाली के व्यापारियों के व्यापार के मुख्य प्रदेश माने जाते थे जब हम पट्टावलियों वंशावलियों आदि ग्रन्थ देखते हैं तो पता मिलता है कि पाली के महाजनां की कई स्थानों पर दुकानें थीं और बालदों पोटो तथा जल एवं थल मार्ग से पुष्कल माल आता जाता था
और इस व्यापार में वे बहुत मुनाफा भी कमाते थे। यही कारण था कि वे लोग एक एक धर्म कार्य में करोड़ों द्रव्य व्यय कर डालते थे इतना ही क्यों पर उन लोगों की देश एवं जाति भाइयों के प्रति इतनी वात्सल्यता थी कि पाली में कोई साधर्मी एवं जाति भाई आकर वसता तो प्रत्येक घर से एक एक मुद्रिका
और एक एक ईट अर्पण कर दिया करते थे कि आने वाला सहज ही में लक्षाधिपति बन जाता और यह प्रथा उस समय केवल एक पाली वालों के अन्दर ही नहीं थी पर अन्य नगरों में भी थी जैसे चन्द्रवती और उपकेशपुर के उपकेशवंशी एवं प्राग्वटवंशी अग्रहा के अगरवाल डिडवाना के महेश्वरी आदि कई जातियों में थी कि वे अपने साधर्मी एवं जाति भाइयों को सहायता पहुँचा कर अपने बराबरी के बना लेते थे।
करीबन एक सदी पूर्व एक अंग्रेज महात्मा टॉडसाहब मारवाड़ में पेदल भ्रमण करके पुरातत्व की शोध खोज का कार्य किया था उनके साथ एक ज्ञानचन्द्रजी नामक यति भी रहा करते थे टॉड साहब को जितनी प्राचीन हिस्ट्री मिली थी उतनी ही उन्होंने टॉड राजस्थान नामक ग्रन्थ में छपादी थी उसमें पाली शहर का भी बहुतसा हाल लिखा है उसमें पाली नगर को बहुत प्राचीन बतलाया है व्यापार के लिये तो पाली को प्राचीन जमाने से एक व्यापार की बड़ी मंडी होना लिया है वहाँ से थोक बन्ध माल विदेशों में जाता था पाली का नमक, सूतका जाड़ा कपड़ा, ऊनी कांवले, कागज वगैरह बड़ा प्रमाण में तैयार होता था और विदेश के व्यापारी खरीदकर अपने देशों में भेजते थे तब विदेशों से हस्तीदान्त, साकू गेंडाकाचमड़ा तांबा टीन जस्त सूखी खजूर पंडखजूर अरब का गुंद सहोगी नारियल बनात रेशमी कपड़ा औषधिय गन्धक पारा चन्दन की लकड़ियें कपुर चाय हरा रंग के कांच भावलपुर से साजी मजिट आल का रंग पक्के फल हिंग मुलतानी छीटें संदूक तथा पलंग की लकड़िये कोटा से अफिग छीटें जाड़ा कपड़ा भोजपे तलवारें और घोड़ा पल्लीवाल जाति को उत्पत्ति ]
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