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________________ आचार्य यक्षदेवसरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ५१५-५५७ शब्दनिवेशनमः प्रत्यासत्या क्वचित् कयाचिदतः । तदयोगे योगे सति शब्दस्याऽन्यः कथं कल्प्य: स्तन-जधनादिव्यङग्ये 'स्त्री' शब्दोऽर्थे, न तं विहायैव । पृष्टः क्वचिदन्यत्र त्वग्निर्माणवकवद् गौणः आपष्ठया स्त्रीत्यादौ स्तनादिभिस्त्री स्त्रियाइति च वेदा स्त्रीवेद स्व्यनुबन्धास्तुल्यानां शतपृथकत्वोक्तिः न च पुंदेहे स्त्रीवेदोदयभावे प्रमाणमङ्गं च। भावः सिद्धौ पुंवत् घुमा अपि (पुंसोऽपि)न सिध्यतो वेदः क्षपकश्रेण्यारोहे वेदनोच्येत भूतपूर्वण । 'स्त्री' ति नितराममख्ये मख्येऽर्थ युज्यते नेतराम् ॥३६॥ मनुपीपु मनुष्येषु च चतुर्दशगुणोक्तिराणि (बि) कासिद्धौ । भावस्तवोपरिक्षप्य 'नवस्थो नियतउपचारः पुंसि स्त्रियां, स्त्रियां पुंसि-अतश्च तथा भवेद् विवाहादिः । यतिपु न संवासादिः स्यादगतौ निष्प्रमाणेष्टिः अनडुह्याऽनड्वाही दृष्ट्वाऽनड्वाहमनडुहाऽऽरूढम् । स्त्रीपुंसेतरवेदो वेद्यो ना ऽनियमतो वृतेः ॥४२॥ नाम-तदिन्द्रियलब्धेरिन्द्रियनिवृत्तिमिव प्रमाद्यङ्गम् । वेदोदयाद् विरचयेद् इत्यतदङ्गेन तद्वेदः ॥४३॥ या पुंसि च प्रवृत्तिः,पुंसि स्त्रीवत,स्त्रिया स्त्रियां च स्यात् । सा स्वकवेदात तिर्यगवदलामे मत्तकामिन्याः विगतानुवादनीतौ सुरकोपादिषु चतुर्दश गुणाः स्युः । नव मार्गणान्तर इति प्रोक्तं वेदेऽन्यथा नीतिः न च बाधकं विमुक्तेः स्त्रीणामनुशासकं प्रवचनं च । संभवति च मुख्येऽर्थ न गौणइत्यार्यिका सिद्धिः * इति स्त्री निर्वाण प्रकरणं समाप्तम् ॥ इसके अलावा दिगम्बर समुदाय का परम माननीय ग्रन्थ गोमटसार तथा त्रिलोक्यसार नाम के ग्रन्थों में भी स्त्रियों की मुक्ति हीना स्पष्ट शब्दों में उल्लेख मिलता है पर मत्ताग्रह के कारण हमारे दिगम्बर श्राई उस ओर लक्ष नहीं देते हैं खैर मैं उस दिगम्बर ग्रन्थ की एक गाथा यहाँ उद्धृत कर देता हूँ"वोस नपुंसक वेआ, इत्थीवेयाय हुँति चालीसा। पुं वेआ अडयाला, सिद्धा एकमि समय स्मि ॥" अर्थात् एक समय १०८ सिद्ध होते हैं जिसमें २० नपुंसक ४० स्त्रियों और ४८ पुरुष इस प्रकार १०८ की संख्या दिगम्बराचार्यों ने ही बतलाई है इतना ही क्यों पर उन्होंने तो स्त्रियों को चौदहवां अयोग गुणस्थान होना भी लिखा है । गौमटसार जीव कांड की गाथा ७१४ में भी अयोगी स्त्री का जिक्र है एवं स्त्री को १४ वां गुणस्थान बताया है। ६--दिगम्बरों ने एक नग्नत्व के आग्रह करने में और भी अनेक मिथ्या प्ररूपना करदी है जैसे दिगम्बर कहते हैं कि केवली कवल आहार नहीं करते हैं जो कि यह कथन खास दिगम्बरों के प्रन्थों से ही मिथ्या साबित होता है । कारण गोमटसार, दिगम्बरीय तत्वार्थ सूत्र, तत्वार्थसार आदि ग्रन्थों में केवली के ग्यारह परिसह बतलाये हैं जिसमें क्षुधा और पिपासा परिसह भी हैं इनके अलावा दिगम्बराचार्य शकटायन ने भी केवली के आहार करने की सिद्धि में एक ग्रंथ निर्माण किया है । वह यहाँ उद्धृत कर दिया जाता है । ॥ केवलिभुक्तिप्रकरणम् ॥ अस्ति च केवलिभुक्तिः समग्रहेतुर्यथा पुरा भुक्तेः । पर्याप्ति-वेद्य-तैजस-दीर्घायुष्कोदयो हेतुः ॥१॥ नष्टानि न कर्माणि क्षुधो निमित्त विरोधिनो न गुणाः । ज्ञानादयो जिने किं सा संसारस्थिति स्ति दिगम्बर मतोत्पत्ति-] ५२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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