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वि० सं० ११५-१५७ वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
और भविष्य में तो यह और भी अधिक नुकसान का कारण है । अतः वस्त्र साध्वी को वापिस दे दिया और कहा कि यह वस्त्र तुमको देवता ने दिया है अतः तुम इसको पहिनो और यह वस्त्र फट भी जाय तो दूसरा वस्त्र लेकर हमेशा के लिये वस्त्र पहिनती ही रहना । अतः शिवभूति ने साधु नम्र रहें और साध्वी लाल वस्त्र पहने ऐसा दुरंगा वेश बना कर एक नया मत निकाल दिया जिसको दिगम्बर मत कहते हैं । जैनधर्म में भगवान् महावीर को निर्वाण के बाद यह पहले ही पहिल इस प्रकार मतभेद खड़ा हुआ और इस मतभेद का समय निम्नलिखित गाथा में बतलाया है कि :
'छव्वास सएहिं नगोत्तेरहिं तझ्या सिद्धि गयस्स वीरस्स । तो बोडियाण दिट्ठी रहवीरपुरे समुप्पन्ना ||"
वीर निर्वाण के पश्चात् ६०९ वर्ष जाने के बाद रथपुर नगर में 'बोडिय' यानि शिवभूति ने एकान्त पक्ष को खींच कर नग्न रहने का नया मत निकाला। जिस को दिगम्बर मत भी कहते हैं ।
शिवभूति के दो शिष्य हुये १ कौडिन्य २ कोष्ठ वीर बाद उनका परिवार बढ़ने लगा ।
इस प्रकार प्राचीन ग्रन्थों में पूर्वाचार्यों ने दिगम्बरमतोत्पत्ति बतलाई है और भगवान् हरिभद्रसूरि ने आवश्यक सूत्र की वृत्ति में एवं उत्तराध्ययन सूत्र की टीका में तथा और भी जहाँ दिगम्बरोत्पत्ति लिखी है वहीँ सर्वत्र यही बात लिखी है कि भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् ६०९ वर्षे रथवीरपुर नगर में कृष्णाचार्य के शिष्य शिवभूति द्वारा दिगम्बर मत की उत्पत्ति हुई ।
कोई भी व्यक्ति लड़ गड़ कर नया पन्थ चलाता है वह स्वयं सच्चा एवं प्राचीन बन कर दूसरों को झूठा एवं अर्वाचीन बतलाते हैं, तदनुसार दिगम्बरों ने भी लिख मारा है कि वीर नि० सं० १६० पाटली पुत्र नगर में श्वेताम्बर मत निकला इसका कारण बतलाते हैं कि भद्रबाहु के समय बारहवर्षीय दुकाल पड़ा था उस समय साधुओं ने शिथलाचारी होकर वस्त्र पात्र रखने शुरू कर दिये और उन साधुओं ने अपना श्वेताम्बर नामक मत चला दिया इत्यादि । कई दिगम्बर २ विक्रम सं० १३६ वल्लभपुरी में श्वेताम्बर मत निकला बतलाते हैं पर यह सब कल्पना मात्र है या अपने पर श्रागम उत्थापक एवं निन्हवता का जो कलंक है उसको छिपाने का एक मात्र मिथ्या उपाय है ।
जैन सिद्धान्तों में तो दोनों प्रकार के साधुओं को स्थान दिया है १ - जिन कल्पी २ - स्थविर कल्प पर जिनकल्पी वही हो सकता है कि जिसके बॠषमनारच संहनन हों जब पंचम आरा में बज्रऋषभनारच संहनन विच्छेद होगया तब जिनकल्पी भी विच्छेद होजाना स्वभाविक ही है। दूसरे केवल नग्नत्व को ही जिनकल्पी नहीं कहा जाता है पर जिनकल्पी के लिये और भी कई प्रकार की कठिनाइयां सहन करनी पड़ती हैं। जो मंद संहनन वाले नग्न रहते हुये भी सहन नहीं कर सकते हैं। तथा जिनकल्पी मुनि को कम से कम नौ पूर्वका ज्ञान होना चाहिये इत्यादि वह शिवभूति में नहीं था। दिगम्बरों ने केवल नग्न रहने का हठ पकड़ लिया है और उस हठ से दिगम्बरों को कितना नुकसान हुआ है। जरा निम्न लिखित बातों पर लक्ष दीजिये१ - अव्वल तो दिगम्बर शास्त्रों का कथन है । कि पंचम आरे के अंत तक चतुर्विधि श्रीसंघ रहेगा तब दिग
१ भद्रबाहु चरित्र - दिगम्बर समुदाय में दो भद्रबाहु हुए हैं एक वीर निर्वाण के बाद दूसरी शताब्दी में तब दूसरा विक्रय की दूसरी शताब्दी में अतः चरित्रकार ने दूसरा भद्रबाहु की घटना पहले भद्रबाहु के साथ जोड़ते की भूल कर दी मालूम होती है । २ देखो बामदेव कृत भावसंग्रह की ठीक तथा देवसेनकृत दर्शनसार नामक ग्रन्थ-
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[ भगवान् महावीर की परम्परा
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