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आचार्य यक्षदेव का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ५१५-५५७
जैन शासन के निन्हव निन्हव-निन्हव दो प्रकार के होते हैं। एक देश निन्हव, दूसरे सर्व निन्हव, जैनधर्मी कहलाता हुआ जैनधर्म की श्रद्धा रखता हुआ भी कभी मिथ्यात्व मोहनीय कर्मोदय वीतराग प्रणित आगमों को नहीं मानना या अन्यथा मानकर जैनधर्म से खिलाफ मत निकालना जैसे महात्मा बुद्ध और गोसाला, इन्होंने जैनधर्म की दीक्षा ली एवं पाली भी थी पर बाद में आपने अपने नाम से नया एवं अलग मत निकाले यह सर्वथा निन्हव कहलाये जाते हैं । दूसरा जैनागमों को मानता हुआ कुछ सूत्र श्रुतियों और शब्दों को नहीं मानना और इस प्रकार तीर्थङ्करों के मत में रहकर अलग मत निकालने वाले को देश निन्हव कहा जाता है । जैसे जमाली आदि
और इस प्रकार के अलग मत स्थापन करने वाले शासन के सात निन्हव हुये हैं जिन्हों का उल्लेख उत्तरा. ध्ययन सूत्र उत्पतिकसूत्र आवश्यक सूत्रादि अनेक स्थानों पर उपलब्ध होता है। पाठकों की जानकारी के लिये उन निन्हवों का हाल यहां पर संक्षिप्त से लिख दिया जाता है ।
१- प्रवचन का पहिला निन्हव जमाली हुआ-जमाली भगवान महावीर का भानेज था तथा दूसरी ओर भगवान की पुत्री प्रियदर्शना जमाली को ब्याही थी । अतः जमाली भगवान का जमाई भी लगता था। भगवान महावीर को कैवल्यज्ञान हो गया था। वे चलते हुये महान कुण्डनगर के उद्यान में पधारे । जमाली आदि ने भगवान का व्याख्यान सुना और संसार को असार जानकर ५०० साथियों के साथ तथा जमीली की स्त्री ने १८०० महिलाओं के साथ भगवान् के पास दीक्षा ली। जमाली ने एकादशांग का ज्ञान पढ़ा बाद भगवान से श्राज्ञा मांगी कि यदि आपकी इच्छा हो तो मैं ५०० साधुत्रों को साथ लेकर अन्य प्रदेश में विहार करूं । प्रभुने न इन्कार किया और न आज्ञा दी पर मौन रहे । जमाली ने इस प्रकार दो तीन बार पूछा पर उत्तर न मिलने से 'मौनसम्मतिलक्षणं' समझ कर जमाली ने ५०० साधुओं के साथ विहार कर दिया और चलता २ सावत्यी नगरी में आया और कोष्टक उद्यान में ठहरा । उस समय उसके शरीर में दाह जल की बड़ी भारी बीमारी हो गई थी। साधुओं को कहा कि बैठने की मेरी शक्ति नहीं है । तुम मेरे लिये शीघ्र संस्तारा तैयार करो मुनियों ने घास लाकर संस्तारा करना शुरू किया। वेदना को सहन न करते हुये जमाली ने पूछा कि क्या संस्तारा तैयार हो गया ? साधुओं ने कहा कि संस्तारा अभी किया जा रहा है । इस पर जमाली को शंका हुई कि भगवान ने कहा है कि 'चलमाणे चलिये--कड माणे कडे' यह निरर्थक है । “चलमाणे अचलिये" कडमाणे अकडे" कहना चाहिये अतः भगवान के वचन असत्य हैं पर मैं कहता हूँ यह सत्य है । बस इस कदाग्रह के बस जमाली अपनी वेदना को तो भूल गया और साधुओं को बुला कर कहा कि देखो भगवान के वचन प्रत्यक्ष में असत्य हैं और मैं कहता हूँ वह सत्य है क्योंकि वे कहते हैं कि 'कडमाणे कडे' अर्थात करना आरम्भ किया उसे किया ही कहा जा पर प्रत्यक्ष देखिये तुमने संस्तारा करना प्रारम्भ किया जब तक पूरा न हो वहां तक उसे किया कैसे कहा जा सकता है अतः मैं कहता हूँ कि 'कड. माणे अकडे' यह प्रत्यक्ष सत्य है इत्यादि । इस पर कई साधु जमाली के वचनों को स्वीकार कर जमाली के पास रह गये पर कई साधुओं ने सोचा कि भगवान का कहना नैगम नय का है तब जमाली कर रहा है एवं भूत नय की बात । अतः जमाली की मति में भ्रम है । भगवान् के वचन सोलह आना सत्य हैं, वह जमाली को छोड़ भगवान के पास चले गये। बाद जमाली आरोग्य हुआ तो स्वयं या साधुओं की प्रेरणा से भगवान
Jain E प्रवचन के निम्हव ]
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