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________________ वि० सं० ११५ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास करवाया था । कलिकाल की कुटिल गति से इस तीर्थ पर कई प्रकार आक्रमण भी हुए थे । जिस समय बौद्धों और जैनों के शास्त्रार्थ हुआ था और बौद्धों की विजय में सौराष्ट्र प्रांत बौद्धों के हाथ में चला गया था इस हालत में शत्रु जय तीर्थ पर भी बौद्धों का अधिकार गया था। इनके अलावा असुरदेवों का भी शत्रु जय पर अधिकार रहा था अतः कई वर्षों तक जैनों को शत्रु जय तीर्थ की यात्रा से वंचित रहना पड़ा था और इस अंतराय कर्म को हटाने वाले महाप्रभाविक श्राचार्य बज्रस्वामी और धर्मवीर जावड़ शाह हुये कि इन्होंने दुष्ट सुर के पंजे में गये हुये शत्रु जय तीर्थ को पुनः दूध एवं शत्रु जी नदी के निर्मल अल से धोकर एवं शुद्ध बना कर पुनः उद्धार करवाया । तब से जाकर चतुर्विध श्रीसंघ ने श्रीशत्रु जय तीर्थ की यात्रा की। जावड़ शाह – आचार्य श्रीस्वयंप्रभसूरि ने पद्मावती नगरी के राजा पद्मसेनादि ४५००० जन समूह को जैनधर्म में दीक्षित किये । श्रागे चलकर उस समूह का प्राग्वटवंश नाम संस्करण हुआ । वंशावलियों से पता मिलता है कि पद्मावती में प्राग्वट वंशीय शाह देवड़ रहता था। देवड़ के ११ पुत्र थे जिसमें भागड़ भी एक था। भाइयों की अनबन के कारण भावड़ पद्मावती छोड़ सौराष्ट्र मे चला गया और कपीलपुर में जाकर बस गया और व्यापार में भावड़ ने बहुत द्रव्य भी पैदा किया पर कर्मों की गति विचित्र होती एक ही भव में मनुष्य अनेक दशाओं को देख लेता है यही हाल भावड़ का हुआ था । नगर भावला था और वह धर्मकरनी में कारण धन कम हो गया परन्तु दृढ़ व्रत वाली श्राविका थी । धर्म की तो वृद्धि होती गई कहा भावड़ शाह की गृहणी का नाम भावड़ शाह के पूर्व जन्म की अन्तराय है कि 'सत्य की बांधी लक्ष्मी फिर मिलेगी आय ।' एक समय भावला के मकान पर दो मुनि भिक्षार्थ आ निकले। भावला ने अपना अहोभाग्य समझ कर गुरु भक्ति की और उनको सादर आहार पानी दिया । उस समय भावला गर्भवती थी । मुनियों ने निमित्त ज्ञान के बल से कहा कि माता तुम्हारे पुत्र होगा । यह जैन शासन का उद्धार करने वाला भाग्यशाली होगा पुनः मुनियों ने कहा कि कल एक घोड़ी बिकेगी उसे खरीद कर लेना कि जिससे आपको बहुत लाभ होगा । बस इतना कह कर मुनि तो चले गये । भावला ने सब बात अपने पतिदेव को कह दीं जिससे दोनों ने शुभ शकुन मान कर मंगलीक गांठ लगादी। दूसरे दिन एक सोदागर घोड़ी बेचने को आया उसको भावड़शाह ने खरीद कर ली जिसके दो शुभ लक्षण वाले बच्चे पैदा हुए एक तो तीन लक्ष द्रव्य में एक राजा को बेच दिया, दूसरा राजा बिक्रम को भेंट में दे दिया। विक्रम ने खुश हो भावड़शाह को मधुमति आदि १२ ग्राम इनाम में दे दिये । बस, भावड़ व्यापारी नही पर मधुमती का राजा बन गया । बाद उसके एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम जावड़ रक्खा । जावड़ जब जवान हुआ तब उसकों एक श्रेष्ठि कन्या सुशीला के साथ उसका लग्न कर दिया । तदनन्तर भाबड़ का स्वर्गवास हुआ तो राजलक्ष्मी का मालिक जावड़ हुआ। शाह जावड़ राज्य के साथ व्यापार भी करता था । एक समय जावड़शाह ने बहुत सा माल जहाजों में भर कर विदेश में भेजा था । यह बात पादलिप्तसूरि के अधिकार में लिखी गई है कि पादलिप्त सूरि महान् प्रभाविक आचार्य हो गये हैं । आपके गृहस्थ शिष्य नागार्जुन ने शत्रु जय की तलेटी में पादलितपुर नाम का नगर बसाया था । विक्रम की मृत्यु के बाद अरब समुद्र को पार कर लाट में एक म्लेच्छों की सेना आई और उन्होंने लाट सौराष्ट्र के ग्रामों में लूट करनी शुरू कर दी । उसमें शत्रु जय को भी बहुत सी हानि पहुँचाई तथा पाद Jain Ed४९ ६ International For Private & Personal Use Only [ भगवान् महावीर की परम्परा www.jaimembrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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