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वि० सं० ११५ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
आचार्य रक्षितसूरि जैनशासन में बड़े भारी प्रभाविक एवं युग प्रवर्तक आचार्य हुये आपके शासन में दो बातें जानने काबिल हुई १-- पूर्व जमाने में एक ही सूत्र से चारों अनुयोग का अर्थ किया जाता था पर भविष्य में साधुओं की बुद्धि का विचार कर चारों अनुयोग पृथक २ कर दिये वे अद्यावधि उसी रूप में चले आ रहे हैं २-पूर्व जमाने में साध्वियां अपनी आलोचना साध्वियों के पास करती और साध्वियां ही यथायोग्य प्रायश्चित दे दिया करती थी परन्तु आर्य रक्षितसूरि ने उस प्रवृति को बन्द कर साध्वियां अपनी आलोचना साध्वियों के पास न करके साधुओं के पास करे और साधु ही प्रायश्चित दें ऐसा नियम बना दिया।
आर्य रक्षित ५॥ पूर्व ज्ञान के पारगामी थे। इनके बाद इतना ज्ञान किसी आचार्य को नहीं हुआ था युगप्रधान पट्टावली अनुसार आप १९ वें युगप्रधान थे । आपका जन्म वी० नि सं० ५२२ में हुआ था २२ वर्ष की आयुष्य में दीक्षा ली ४४ वर्षसामान्य दीक्षा पर्याय और १३ वर्ष युगप्रधान पद पर रहकर शासन की खूब उन्नति की । वी०नि० सं०५९७ वें वर्ष में अर्थात् ७५ वर्ष का सर्व आयुष्य भोग कर स्वर्गवासी हुये।
आचार्य नंदिलमूरि-आप साढ़े नौ पूर्वधर महान प्रभावशाली आचार्य हुए हैं । प्रभाविक चरित्र में आपके विषय में बहुत वर्णन किया है । आपके चरित्रान्तरगत वैराट्या देवी का भी चरित्र वर्णन किया है। जिसमें पद्मनीखंडनगर, पद्मप्रभराजा, पद्मावतीरानी, पद्मदत्तश्रेष्ठि, पद्मयशास्त्री, पद्मपुत्र, जिसका वरदत्त को पुत्री वैराट्या के साथ विवाह हुआ था। इत्यादि विस्तृत वर्णन किया है। आगे लिखा है कि
दुकाल के कारण वरदत्त देशान्तर जाता है और वैराट्य को सासु खूब कष्ट देती है नागेन्द्र का स्वप्ना सूचित वैराट्या गर्भ धारण करती है। आचार्य नंदिलसूरि उद्यान में पधारते हैं । वैराट्या सूरि को वन्दन करने को जाती है और अपनी दुःख गाथा सुनाकर पूर्वभव में किये हुए कर्मों को सुनना चाहती है। सूरिजी कर्म सिद्धान्त का रहस्य बतला कर वैराट्या को शान्त करते हैं । वैराट्या को पयसान्न (दूधपकादि ) का दोहला उत्पन्न होता है । तप के उद्यापनार्थ दूधपाक तैयार होता है। वैराट्या बचा हुआ पयसान्न घट में डाल पानी के बहाने जलाशय पर जाती है। वहां नाग देव की देवी पयसान्न का भक्षण कर जाती है और वैराट्या की क्षमा शान्ति को देख प्रसन्न होती है । वैराट्या पुत्र को जन्म देती है और उसका नाम नागेन्द्र रखा जाता है। समयान्तर नागदेव की सहायता से पद्मदत्त पद्मयशा और वैराट्यादिसूरिजी के पास दीक्षा लेते हैं। वैराच्या साध्वि जीवन में कालकर भगवान पार्श्वनाथ के सेविका नागकुमार की जाति में वैराट था देवी पने उत्पन्न होती है इत्यादि विस्तार से वर्णन किया है
आर्य नंदिल किस वंश परम्परा के थे? इसके लिए चरित्रकार अायं रक्षित के वंश में हुये लिखते हैं पर नंदी स्थविरावली में प्रार्य मंगू के बाद और नागहस्ति के पूर्व के युगप्रधान बतलाया है परन्तु प्रार्य मंगू का युगप्रधान समय वी. नि. सं० ४५१ से ४७७ का है तब अार्य रक्षित का समय ५४४ से ५९७ का है यदि नंदिल आर्य मंगू के बाद माना जाय तो करीब १०० वर्ष पूर्व का समय आता है । अतः वे आर्य मंगू के वंश धर सिद्ध नहीं होते हैं। अतः आर्य नंदिल को आर्य रक्षित के बाद एवं इनके वंशज मानना यथार्थ ही है । आर्य नन्दिल का नाम प्रबन्ध कर एवं युग प्रधान पट्टावली करने आर्यनंदिल लिखा है पर श्रापका वास्तविक नाम आनंदिल था ऐसा पं० कल्याण विजयजी महाराज अपनी प्रबन्धपर्यालोचना में प्रमाणित करते हैं । जो यथार्थ ही समझा जा सकता है।
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[ भगवान् महावीर की परम्परा
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