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________________ [ ४० ] बहुत कम हो गये जो कुछ रहे थे वह भी फल देने में इतनी संकीर्णता करते थे कि युगल मनुष्यों में भोगोपभोग के लिये प्रचुर कषाय का प्रादुर्भाव होने लग गया कुलकर भार्या पिता माता आयुष्य देहमान दंडनीति मकार १ | विमलवाहन | चंद्रयशा | अज्ञात अज्ञात | पल्योपम के | ९०० धनुष्य हकार दशमे अंश २ चक्षुष्मान | चंद्रकान्ता विमलवाहन चंद्रयशा | कुच्छ न्यून ३ यशस्वी | स्वरूपा चक्षुष्मान | चंद्रकान्ता सं० , ४ अभिचन्द्र प्रतिरूपा यशस्वी | स्वरूपा स्वरूपा , , ५ प्रसेनजीत चक्षुकान्ता | अभिचंद्र | प्रतिरूपा | , , ६०० , धीकार ६ मरुदेव श्रीकान्ता | प्रसेनजीत | चक्षुकान्ता सं० २० ७ | नाभिराजा |मरुदेवा मरुदेव । श्रीकान्ता ___ यद्यपि जैनशास्त्रकारों ने युगलमनुष्योंका व कुलकरों का विषय सविस्तर वर्णन किया है पर मैंने मेरे उद्देशानुसार यहां संक्षिप्तसे ही लिखा है अगर विस्तार से देखने की अभिलाषा हो उन ज्ञानप्रेमियों को श्री जम्बुदिपप्रज्ञप्ति सूत्र जीवाभिगमसूत्र आवश्यकसूत्र और त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्रादि ग्रन्थों से देखना चाहिये। इति भोगभूमि मनुष्यों का संबन्ध ।। सर्वार्थसिद्ध वैमानमें राजा बगंध का जीव जो देवता था वह तेतीस सागरोपम की स्थिति को पूर्ण कर इक्ष्वाकु भूमिपर नाभीकुलकरकी मरूदेवा भार्या की पवित्र कुक्षी में असाढ वद ४ को तीन ज्ञान संयुक्त अवतीर्ण हुये माताने वृषभादि १४ स्वप्ने देखे नाभीकुलकर व इन्द्रने स्वप्नों का फल कहा-शुभ दोहला पूर्ण करते हुए चैत वद ८ को भगवान का जन्म हुआ ५६ दिग्कुमारिकाओं ने सूतिकाकर्म किया और ६४ इन्द्रोंने सुमेरु गिरिपर भगवान का स्नात्रमहोत्सव बड़े ही समारोह के साथ किया । वृषभका स्वप्नसूचित भगवानका नाम वृषभ यानि ऋषभदेव रखा । इन्द्र जब भगवान के दर्शनको आया तब हाथमें इक्षु (सेलडी का सांठा) लाया था और भगवान्को आमन्त्रण करनेपर प्रभुने ग्रहण किया वास्ते इन्द्रने आपका इक्ष्वाकुवंश स्थापन किया। सुमंगला-भगवान के साथ युगजपने जन्म लिया था। . सुनंदा-एक नूतन युगल ताड वृक्ष के नीचे बैठा था उस ताड का फल लड़का के कोमल स्थान पर पड़ने से लड़का मर गया बाद लड़की को नाभीराजा के पास पहुँचा दी । इन दोनों (सुमंगला और सुनंदा ) के साथ भगवानका पाणिग्रहण हुश्रा यह पाणिग्रहण पहलापहल ही हुआ था जिसके सब व्यवहार विधि विधान पुरुषोंका कर्त्तव्य इन्द्रने और औरतों का कार्य इन्द्राणि ने किया था जबसे युगल धर्मबन्ध हो सब युगलमनुष्य इस रीति से पाणिग्रहण करने लगे। . इधर कल्पवृक्ष प्रायः सर्व नष्ट हो जानेसे युगल मनुष्यों में अधिकाधिक लेश पढ़ने लगा नाभीकुलकर के हकार मकार धिकार दंड देनेपर भी क्षुधातुर युगल मर्यादाका बराबर भंग करने लगे युगलमनुष्यों ने नाभीराजासे एक राजा बनानेकी याचना करी उत्तर में यह कहा कि “जामो तुम्हारे राजा ऋषभ होगा" इस dain Educa cथवसर पर पन्त ने श्राकर भगवानका राजभिषेक करने का सर्वरीतरिवाज यगलमनुष्यों को बतलाया और स्वच्छ Vaheitolaryong
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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