________________
वि० सं० ११५ वर्षे ]
[भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
कि स्त्रियों के कहने पर विश्वास नहीं किया जाता है अभी तो दुख के मारी तू पुत्र को मुझे देती है पर फिर बाद में कभी मांगा तो पुत्र तुमको नहीं दिया जायगा । सुनन्दा ने कहा मैं कभी पुत्र को नहीं मांगूंगी। इसके लिये मुनि समित एवं मेरी सखियां साक्षी देंगी।
बस ! धनगिरि छः मास का पुत्र को मोली में डाल कर गुरु महाराज के पास ले आया और गुरु ने मोली को हाथ में ली तो उसमें वजन बहुत था । गुरु ने कहा कि हे मुनि ! तू क्या आज वज्र लाया है। यही कारण था कि उस बालक का नाम वज्र रख दिया ।
वज्र बालक होने के कारण शय्यात्तर एवं गृहस्थों को सौंप दिया कि वे पालन पोषण करें। तथा उनके संस्कारों के लिये साध्वियों के उपाश्रय रखने की भी आज्ञा दे दी थी सुनन्दा भी वहाँ आया करती थी। कभी कभी साध्वियों से पुत्र वापिस देने की प्रार्थना भी किया करती थी पर साध्धियां कह देती थीं कि बेहराया हुआ बालक वापिस नहीं दिया जाता है, इस पर भी तुमको पुत्र की जरूरत हो तो गुरु महाराज के पास जाओ और वे जैसी आज्ञा दें बैसा करो इत्यादि । जब साध्वियां सूत्र की स्वाध्याय करती थी तो बालक बज्र ने सुनने मात्र से एकादशांग का अध्ययन कर लिया। इस प्रकार बज्र ३ वर्ष का हो गया। अब तो सुनंदा को पुत्र प्रति पूरा मोह लग गया और बार २ पुत्र की याचना करने लगी पर मुनि धनगिरि ऐसा शासन का भावि प्रभाविक पुत्र को कब देने वाला था। आखिर सुनन्दा राज में गई राजा ने दोनों के बयान लिये और कहा कि अपनी-अपनी कोशिश करो। बच्चे का दिल होगा उसको दिया जायगा । एक तरफ तो साधुओं ने ओघा पात्रे रख दिये और दूसरी ओर सुनन्दा ने सांसारिक मोहक पदार्थ रख दिये और राज. सभा में बन को बुलाया । राजा ने कहा तुमको प्रिय हो वही लेलो बन्न ने मोहक पदार्थों को छोड़ श्रोधा पात्रा लेलिये । बस राजा ने बज को मुनियों के सुपुर्द कर दिया। उस समय बज की केवल ३ वर्ष की आयु थी।
जब गुरु महाराज ने बजू को दीक्षा देने का निश्चय किया तो सुनंदा ने सोचा कि मेरे पति ने दीक्षा ली मेरा पुत्र दीक्षा लेने को तैयार होगया तो अब मैं संसार में रह कर क्या करूंगी मुझे भी दीक्षा लेना ही हितकारी है अतः बज्र और बन की माता ने गुरु महाराज के पास दीक्षा लेली युगप्रधान पट्टावली में बन का गृहस्थावास ८ वर्ष का बतलाया है शायद् सुनन्दा अपने पुत्र के लिये फिर कहीं तकरार न करे इसलिये वन को तीन वर्ष की आयु में साधु वेष दे दिया हो और बाद ८ वर्ष का होने पर दीक्षा दी हो तो यह संभव भी हो सकता है । दूसरे आगम व्यवहारियों के लिये कल्प भी तो नहीं होता है वे ज्ञान के जरिये भविष्य का लाभालाभ देखे वैसा ही कर सकते हैं जब तक बज्र मुनि आठ वर्ष के नहीं हुये वहाँ तक साध्वियों के पास रहा । तत्पश्चात बन कों दीक्षा देदी और मुनि वज्र गुरु महाराज के साथ विहार कर दिया।
एक समय गुरु महाराज के साथ मुनि बज्र विहार करता हुआ एक जंगल में पहाड़ के पास जा रहा था । उस समय एक जम्भकदेव ने बन की परीक्षा के निमित्त वैक्रय से इतनी वर्षा की कि पृथ्वी जलमय हो गई । बा ने एक पर्वत की गुफा में जाकर ध्यान लगा दिया। तीन दिन तक पानी के जीवों की दया के
* अतिखिन्ना च सावादीदवार्यसमितो मुनिः । साक्षी सख्यश्च साक्षिण्यो भाषे नातः किमप्यहम् ॥ ६४ ॥ वज्रोपमं किमानीतं त्वयेदं मम हस्तयोः । भारकृन्मुमुचे हस्तान्मयासौ निजकासने ॥ ६८॥ गुरुश्च वज्र इत्याख्यां तस्य कृत्वा समा (म) पयत् । साध्वीपाश्र्वाच्छाविकाणां व्यहार्षीदन्यतस्ततः ॥ ७० ॥
सतो विशेषिताकारं तदीयपरिचर्यया । तत्रायाता सुनन्दापि तं निरीक्ष्य दधौ स्पृहाम् ॥ ७४ ॥ प्र. च. ४८४
For Private & Personal use Only [भगवान् महावीर की परम्परा
दावीर की परम्पराary.org
Jain Education International
1 गाय ग.7.1
1.
।