________________
वि० सं० ११५ वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
बना सके । कोरंटसंघ ने सूरिजी की मृत्यु क्रिया करने के पश्चात् चतुर्विध श्रीसंघ एकत्र होकर विचार किया कि सूरिजी अपने हाथों से अपने पट्टधर बना नहीं सके पर आचार्य बिना गच्छ का संचालन कौन करेगा ? अतः वे लोग चलकर आचार्य रत्नप्रभसूरि के पास गये और प्रार्थना की कि प्रभो ! कोरंटगच्छ इतना बड़ा गच्छ है पर इस समय कोई आचार्य नहीं है अतः आप कोरंटपुर पधार कर योग्य मुनि को आचार्य बनावें इत्यादि इस पर आचार्य रत्नप्रभसूरि कोरंटपुर पधारे और कोरंटगच्छ में एक सोमहंस नाम का अच्छा विद्वान एवं योग्य मुनि था जिसको सूरि मन्त्र की आराधना करवा कर शुभ मुहुर्त में श्रीसंघ के समक्ष प्राचार्य पर से विभूषित किया और आपका नाम कनकप्रभसूरि रक्खा इस पद महोत्सव में कोरंटसंघ ने सवा लक्ष द्रव्य व्यय कर जिनशासन की अच्छी प्रभावना की । पूर्व जमाने में गच्छ अलग २ होने पर भी आपस में कितना प्रेम स्नेह और एक दूसरे की उन्नति में किस प्रकार सहायक बनते थे जिसका यह एक उज्ज्वल उदाहरण है । इस प्रकार का धर्म प्रेम से ही जैनधर्म उन्नति के शिखर पर पहुँच गया था।
इस प्रकार आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि ने अपने शासन में जैनधर्म का खूब प्रचार बढ़ाया जहां-जहां आप पधारे वहां वहां जैनधर्म की प्रभावना के साथ महाजन संघ की खूब वृद्धि की कई भवुकों को दीक्षा प्रदान कर श्रमण संघ की संख्या बढ़ा कर प्रत्येक प्रान्तों में साधुओं को विहार की आज्ञा दी और चतुर्विध श्री संघ के ज्ञानवृद्धि के निमित्त अनेक ग्रन्थों की रचना भी की अन्त में आप उपकेशपुर पधारे और अपना आयुष्य नजदीक समझ कर चतुर्विध श्रीसंघ के समीक्ष आलोचना कर अनशनव्रत धारण कर लिया और ३२ दिन परम समाधि में बिता कर स्वर्गधाम पधार गये।
प्राचार्य रत्नप्रभसूरि के ६३ वर्ष के दीर्घशासन में शासनोन्नति के अनेक कार्य हुए जिसका वर्णन पट्टावलियों वंशावलियों आदि अनेक ग्रन्थों में विस्तार से मिलते हैं पर ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से उन सब को मैं यहाँ पर नहीं लिख सकता हूँ तथापि नमूना के तौर पर कतिपय नामोल्लेख कर देता हूँ।
प्राचार्य श्री के उपदेश से भावुकों ने दीक्षा ग्रहण की १--उपकेशपुर के कुमट गोत्रिय गणधर ने सूरिजी के पास दीक्षा ग्रहण की। २-- उपकेशपुर के भद्रगोत्रिय सलखणादि ने दीक्षा ली।। ३...-नागपुर के आदित्यनाग गोत्रीय शा पुनड़ ने दीक्षा ली। ४-संखपुर के सुचंती गोत्रिय १६ साथियों के साथ हरदेव ने दीक्षा ली । ५-मुग्धपुर के बापनाग गोत्रिय देवपाल ने सपत्नी दीक्षा ली। ६-काकंदड़ा के कुलभद्रगोत्रिय शाहा नेना ने चार मित्रों के साथ दीक्षा ली। ७-पद्मावती के क्षत्रिय वीरमदेव ने दीक्षा ली। ८-- चन्द्रावती के लुंग गोत्रिय मघवा ने ११ भावुकों के साथ दीक्षा ली। ९-भद्रावती के ब्राह्मण जयदेव ने अपने तीन मित्रों के साथ दीक्षा ली। १०-कोरंटपुर प्राग्वट वंश के शाह पोपा ने सपत्नी दीक्षा ली। ११-भोपाणी के प्राग्वटवंश के शाह कुरा ने दीक्षा ली।
१२ -विद्यापुर के श्रीमाल रामदेव ने १९ साथियों के साथ दीक्षा ली । Jain Ed86 international
For Private & Personal use Only [ सूरिजी के करकमलों से दीक्षाएँ -
For Private & Personal Use On
frary.org