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आचार्य रत्नप्रभसूरि का जीवन ]
[ओसवाल संवत् ५१५
शाह पेथा ने राजशी की उम्र ८ वर्ष की हुई तो अध्यापक के पास पढ़ने को भेज दिया । दूसरे विद्यार्थियों से राजशी में विनयगुण अधिक था। यही कारण था कि अध्यापक महोदय की राजशी पर विशेष कृपा रहती थी और राजशी पढ़ाई में अपने सहपाठियों से हमेशा आगे बढ़ता जाता था।
एक दिन आचार्य सिद्धसूरि ॐ कार नगर में पधारे अतः श्रीसंघ ने आपका सुन्दर सत्कार किया सूरिजी का व्याख्यान हमेशा होता था । एक दिन माता कुल्ली ने विनय के साथ अपने पुत्र राज सिंह की धर्म चेष्ठा के लिये सूरिजी से पूछा कि पूज्यवर ! राजसिंह बाल्यावस्था में ही साधु उचित कार्य करता है इसका क्या कारण है ? सूरिजी ने अपने निमित्त ज्ञान से कहा माता राजसिंह ने पूर्व जन्म में दीक्षा की आराधना की है। अतः इसको दीक्षा पर अनुराग है। माता तू भी धन्य है कि तेरी कुक्षी से राजसी जैसा पुत्र पैदा हुआ है जो कभी राजसी दीक्षा लेगा तो जैनधर्म की प्रभावना के साथ जगत का उद्धार करने वाला होगा इत्यादि। सूरिजी के वचन सुनकर माता के दिल में आया कि यह राजसी कहीं दीक्षा न ले ले अतः इसकी शादी जल्दी से कर देनी चाहिये । बस फिर तो देरी ही क्या थी पहिले से ही राजसी की शादी के लिये कई प्रस्ताव आये हुये थे। शाह पेथा ने एक लिखी पढ़ी श्रोष्ठि कन्या के साथ राजसी का सम्बन्ध ( सगाई ) करदी । इस बात की खबर जब राजर्स को हुई तो उसने अपनी माता से कहा कि माता! पिताजी मुझे जाल में फंसाना चाहते हैं पर मैं हर्गिज इस संसार रूपी जाल में न फंसूगा | माता ने कहा बेटा क्या विवाह करना जाल है ?
पुत्र ने कहा हां माता मैं समझता हूँ कि-विवाह करना जाल है ? माता-यदि संसार में कोई विवाह न करे तो फिर संसार चले ही कैसे ? पुत्र-माता मैं संसार की बात नहीं करता हूँ मैं तो अपनी बात करता हूँ। माता-तू शादी नहीं करेगा तो क्या साधु बनेगा ? पुत्र-हां माता मैं तो दीक्षा लूंगा।
माता-खैर दीक्षा ले तो दम्पति दोनों साथ में ही लेना शादी तो कर ले वरना हमारी मांग जाने में अच्छा नहीं लगेगा।
मां बेटा में बातें हो ही रही थीं कि इतने में पेथाशाह घरपर आ गया और पूछा कि आज मां बेटा क्या बातें कर रहे हो । माता बोली आपका पुत्र कहता है कि मुझे शादी नहीं करनी है मुझे तो दीक्षा लेनी है ? शाह पेथा ने कहा कि दीक्षा लेनी है तो भी शादी तो करले फिर सब घर वालों के साथ में ही दीक्षा लेना। राजसी ने सोचा कि जो कमों की रेखा है वह तो किसी के भी टाली टल ही नहीं सकती है और इस निमित्त कारण से ही सबका कल्याण होने वाला हो वो भी कौन कह सकता है ? जब माता पिता का इतना आग्रह है तो होने दो शादी अगर मेरे दीक्षा का योग है तो शादी से रुक भी नहीं सकेगा जिसके लिये जम्बुकुंवर बनकुंवर आदि अनेक महापुरुषों के उदाहरण विद्यमान है।
राजशी के माता पिता ने बड़े ही समारोह के साथ राजसी का विवाह कर दिया। इधर तो राजशी के लग्न को पूरा एक मास भी नहीं हुआ था कि उधर से आचार्यश्री सिद्धसूरिजी महाराज भ्रमण करते हुए पुनः ॐकार नगर में पधार गये । सूरिजी का उपदेश हमेशा त्याग वैराग्य पर होता था और आप यह भी फरमाया करते थे कि संसार में जीव मोह एवं ममत्व से दुखी बनता है तष्ण तो ऐसी वैतरणी है कि मनुष्य समम जाने पर भी तृष्णा के वशीभूत बना हुआ इस प्रकार विचार करता है कि ।
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[माता बेटा का संवाद
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