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________________ वि० सं० ५२ वर्ष । [ भगवान् पाश्वनाथ की परम्परा का इतिहास राजा विक्रमादित्य आपका कुछ वर्णन तो आचार्य सिद्धसेनदिवाकर और आचार्य जेवदेवसूरि के अधिकार में आ गया है इनके अलावा कई जैनाचार्यों ने राजा विक्रमादित्य के जीवन के विषय बड़े-बड़े प्रन्थों का निर्माण भी किया है और उनमें से बहुत से प्रन्थ अद्याववि विद्यमान भी हैं। यह बात सर्वत्र प्रसिद्ध है कि राजा विक्रमादित्य ने पृथ्वी निऋण करके अपने नाम का संवत् चलाया और वह संवत् अद्यावधि चल भी रहा है। अतः राजा विक्रमादीत्य भारत में एक सम्राट राजा हुआ, ऐसी मान्यता चिरकाल से चली आ रही है परन्तु वर्तमान युग में इतिहास की शोध खोज से कई विद्वान इस निर्णय पर आये हैं कि संवत चलाने वाले विक्रमादित्य नाम का कोई राजा नहीं हुआ है । परन्तु 'विक्रम' यह एक किसी शक्तिशाली वीर भूपति का विशेषण है और जो विक्रम संवत् चल रहा है यह वास्तव में कृतसंवत् मालव संवत् एवं मालवगणसवत् था जो मालव प्रजा की विजय का द्योतक है । उसी मालव सवत् के साथ आगे चलकर विक्रम की नौबी शताब्दी में संवत् के साथ विक्रम नाम लग जाने से विक्रम संवत् बन गया है और इस बात की साबूति के लिये निम्न लिखित शिलालेख बतलाये जाते हैं: - "श्रीलिवगणाम्नाते, प्रशस्ते कृतसंज्ञिते । एक षष्ठ्यधिके प्राप्त, समाशतचतुष्टये [1] पायका (ट्का) ले शुभे प्राप्ते ।" मंदसौर से मिले हुये नरवर्मन् के समय के लेख में "कोषु चतुर्पु वर्षशतेष्वेकाशीत्युतरेष्वस्यां मालवपूर्वायां । ४.०] ८.१ कार्तिक शुक्लपंचम्याम" । राजपूताना म्यूजियम (अजमेर में रखे हुये नगरी (मध्यमिका, उदयपुर राज्य में) के शिल लेख में। ___"मालवानां गणस्थित्या याते शत चतुष्टये । त्रिनवत्यधिकेन्दानाम्रि (मृ) तौ सेव्यधनस्त (स्व) ने ॥ सहस्यमासशुक्लस्य प्रशस्तेह्नि त्रयोदशे ॥" मंदसौर से मिले हुये कुमारगुप्त [प्रथम) के समय के शिल लेख में "पंचसु शतेष शरदां यातेष्वेकानवति सहितेषु मालवगणस्थितिवशात्कालज्ञानाय लिखितेष।" मंदसौर से मिले हुये यशोधर्मन (विष्णु वर्दन के समय के शिलालेख में "संवत्सरशतैर्यातः सपश्चनवत्यर्गलैः, [0] सप्तभिमार्यालवेशानां"। भारतीय प्रा. लिपिमाला १६६ कोटा के पास कणस्वा के शिवमंदिर में लगे हुये शिलालेखों में"कृतेपु चतुघुवर्षशतेष्वष्टाविंशेषु ४००-२०८ फाल्गुण (न) बहुलस्यापंचदश्यामेतस्यां पूर्वाया।" फ्ली; गु० इं, पृ० २५३ यातेषु चतुपु क्रि (क) तेष शतेष सौस्ये (म्यै) वा ष्टा) शीतसोत्तरपदेष्विह वत्स रेप ___ शुक्ले त्रयोदशदिने भुवि कार्तिकस्य मासस्य सर्वजनचितसुखावहस्य ।" फली, गु० इ० पृ ४७० उपरोक्त शिलालेखों में कृत-मालव-मालवगण संवत् का प्रयोग हुआ है। परन्तु संवत् के साथ विक्रम का नाम निर्देश तक कहीं पर भी नहीं हुआ है यदि इस संवत को राजा विक्रम ने ही चलाया होगा तो संवत् के प्रारम्भ में ही विक्रम का नाम अवश्य होता अतः विद्वानों का मत है कि प्रस्तुत संवत् किसी विक्रम राजा विक्रमादित्य ] Jain Educa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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