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आचार्य सिद्धसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ४५२
१९-कविजनकल्पद्रुमोपमाख्यैकोनविंशतितमोपनिषद्-इसमें कवियों को कल्पवृक्ष बतलाने का वि० २० - सकलप्रपंचपथ निदाननामविंशतितमोपनिषद् - इसमें जितने प्रपंची मार्ग हैं उनका वर्णन है । २१-श्राद्धधर्मसाध्यापवर्गनामैकविंशतितमोपनिषद्-३समें गृहस्थ धर्म से भी मुक्तिमार्ग की वि० २२-समनयनिदाननाम द्वाविंशतितमोपनिषद्-इसमें सात नय का स्वरूप विस्तार से बतलाया है। २३-बंधमोक्षापगमनाम त्रयोंविंशतितमोपनिषद्-इसमें बंध मोक्ष का स्वरूप है। २४-इष्टकमनीयसिद्धनामत्रयोविंशतितमोपनिषद्-इसमें मनोइच्छित सिद्धियां प्राप्त करने का वि. २५-ब्रह्मकमनीयसिद्धयभिधाननाम पंचीवंशतितमोपनिषद-इसमें योगमार्ग से मोक्ष प्राप्त करने की वि. २६-नैः कर्मकमनीयाख्य षड्विंशतितमवेदांत-इसमें कर्म काण्ड से रहित वेदांतं स्वरूप निरूपण है २७-चतुर्वर्गचिंतामणिनाम सप्तविंशतितमवेदांत-इसमें काम अर्थ धर्म और मोक्ष चारपुरुषार्थ का वि० २८-पंचज्ञानस्वरूपवेदनारख्यमष्टाविंशतितमवेदांतं-इसमें पांच ज्ञान का विस्तार से वर्णन है। २९-पंचदर्शनस्वरूपरहस्याभिधानकोनत्रिंशतमोपनिषद्-इसमें पांच प्रकार के दर्शन का सरूप है । ३०-पंचचारित्रस्वरूपरहस्याभिधान त्रिंशत्तमोपनिषद्-इसमें पांच प्रकार के चारित्र का वर्णन है। ३१-निगमागमवाक्यविवरणख्यकत्रिंशत्तमोपनिषद-इसमें निगम और आगम का विषय हैं। ३२-व्यवहारसाध्यापवर्गनामद्वात्रिंशत्तमवेदांत-इसमें व्यवहार मार्ग से मोक्ष की साधना का विर ३३-निश्चयैकसाध्यापवर्गभिधान त्रयस्त्रिंशत्तमोपनिषद-इसमें निश्चयमार्ग से मोक्ष प्राप्तो का वर्णन है ३४-प्रायश्चित्तैकसाध्यापवर्गाख्यचतुत्रिंशत्तमोपनिषद-इसमें लगे हुए पाप का प्रायश्चित करने का वि. ३५-दर्शनैकसाध्यापवर्गनाम पंचत्रिंशत्तमवेदांत-दर्शन से मोक्ष साधन का वर्णन है । ३६-विरताविरतसमानापवर्गाह्न षट्त्रिंशत्तमवेदांत-समभाव रखने से ही मोक्ष प्राप्त होता है
'जैनधर्म का माचीन इतिहास भाग दूसरा पृ० १८२' इन उपनिषदों की विषय सूची से पाया जाता है कि इनमें गृहस्थ धर्म के अलावा जैनधर्म का तात्विक आगमिक और दर्शनिक ज्ञान का भी प्रतिपादन किया है । अतः उपनिषद प्राचीन निगम शास्त्र हैं र वर्तमान में इन उपनिषदों का आस्तित्व कहाँ भी पाया नहीं जाता है । शायद निगमवादियों के साथ उनके नेगम शास्त्र भी लोप हो गये हों खैर इन नामों से इतना तो जाना जा सकता है कि पूर्व जमाने में निगमवादी प्रौर उनके निगमशास्त्र थे।
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