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वि० सं० ५२ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
___ तात्पर्य यह है कि महाभयंकर दुकाल के समय साधुओं के पठन पाठन बंधसा हो गया था जब दुर्भिक्ष के अन्त में सुकाल हुआ तो आचार्य स्कन्दिलसूरि के अध्यक्षत्र में मथुरा नगरी और आर्य नागार्जुनसूरि की नायकता में वल्लभी नगरी में श्रमण संघ को आगमों की वाचना दी गई तथा सूत्रों कों पुस्तकों पर लिखा गया । अतः आचार्य स्कन्दिल एवं नागार्जुन के समय दोनों स्थानों में आगम वाचना हुई । इसम किसी प्रकार का संदेह नहीं है।
इतिहास ज्ञान की पूरी शोध खोज नहीं करने के कारण हमारे अन्दर यह भ्रान्ति फैली हुई है कि वल्लभी नगरी में श्री देवद्ध गणीक्षमाश्रमण के अध्यक्षत्व में आगम बाचना हुई थी और कई २ तो देवऋद्धि. गणिक्षमाश्रमणजी को आर्य स्कन्दिल के समसामयिक भी मानते हैं और प्रमाण के लिए उपाध्यायजी विनय विजयजी के लोक प्रकाश के श्लोक बताते हैं ।
"दुर्भिक्षे स्कन्दिलाचार्यदेवर्द्धिगणिवार के । गणनाभावतः साधु साध्वीना विस्मृतं श्रुतम। ततः सुभिक्षे संजाते संघस्य मेलगोऽभवत् । वलभ्यां मथुरायां च सूत्रार्थ घटनाकृते ।। वलभ्यां संगते संघे देवर्सिगणिरग्रणीः । मथुरायां संगते च स्कंदिलार्योऽग्रणीरभूत् ।। ततश्च वाचनाभेदस्तत्र जातः कचित् क्वचित् । विस्मृतस्मरणो भेदो जातु स्यादुभयोरपि । तत्तैस्ततोऽर्वाचीननैश्च गीताथैः पापभीरुभिः । मतद्वयं तुल्यतया कक्षीकृतमनिणयात् ॥
-लोकप्रकाश उपाध्यायजी महाराज ने उपरोक्त बात जनश्रुति सुन कर या अनुमान से लिखी है । कारण, हम ऊपर लिख पाए हैं कि मथुरा में स्कन्दिचार्य और वल्लभी में नागार्जुनाचार्य के नायकत्व में आगम बांचना हुई थी तब इन दोनों प्राचार्य के बाद कई १५० वर्ष के देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण हुए हैं वे स्कन्दिलाचार्य के समसामयिक कैसे हो सकते हैं ? देवद्धिगणिक्षमाश्रमणजी के समय भी वल्लभी में जैन संघ एकत्र हुए थे पर उस समय आगम वाचना नहीं हुई थी पर दोनों वाचनाओं में पठान्तर वाचान्तर रह गया था उनको ठीक कर आगम पुस्तकों पर लिखे गये थे। जैसे कहा है कि"वलहि पुरम्मि नयरे देवहिपमुह समण संघेण पुत्थइ अगमु सिहिओ, नवसय असी आओ वीराओ"
क्षमाश्रमणजी ने आगमों को पुस्तकों पर लिखने में मुख्य स्थान माथुरी वाचना को ही दिया था और वल्लभी वाचना जो माथुरी वाचना के सदृश्य थी उसे तो माथुरी वाचना के अन्तरगत कर दिया और जो पाठ माथुरी वाचना से नहीं मिलता उसे नागार्जुन के नाम से पाठान्तर रूप में रख दिया जैसे
"नागार्जुनीयास्तु पठंति-एवं खलु." । आचारांग टीका । "नागार्जुनीयास्तु पठंति-समरण भविस्सामो. " आचारांग टीका । "नागार्जुनीयास्तु पठंति-जे खलु०" । आचारांग टीका । "नागार्जुनीयास्तु पठति-पुठ्ठो वा०" । आचारांग टीका । "अत्रांतरे नागार्जुनीयास्तु पठंति-सौ उण तयं उवठ्ठियं०' । सूत्रकृतांग टीका । "नागार्जुनीयास्तु पठंति--पलिमंथमहं वियाणिया०" । सूत्रकृतांग टीका। "तो विवरणकारेहिं पि नागजुणीया उण एवं पढतित्ति समुल्लिगिया तहेवायाराइसु"। कथावली
[ श्री वीर परम्परा
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