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________________ वि० सं० ५२ वर्ष ] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास तो जीवदत्तसूरि का समय प्रबन्धानुसार विक्रम के समकालीन और कहाँ जिनदत्तसूरि का समय विक्रम की बारहवीं शताब्दी का । फिर समझ में नहीं आता है कि खरतरों ने यह जघन्य कार्य क्यों किया ? शायद कई व्यक्ति यह कल्पना कर लें कि जीवदेवसूरि के साथ जैसे गाय की घटना घटित हुई वैसे ही जिनदत्तसूरि के साथ घटित हुई होगी। तभी तो जिनदत्तसूरि के भक्तों ने उनके साथ भी गाय की घटना का उल्लेख किया है। जिनदत्तसरि के जीवन विषय विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में गणधरसार्द्धशतक की वृहद्वृति में जिनपतिसूरि के शिष्य सुतिगरिण ने छोटी २ बातों तक का उल्लेख किया पर गाय वाली घटना की गन्ध तक उसमें नहीं है तथा और भी कई व्यक्तियों ने जिनदत्तसूरि के लिये बहुत कुछ लिखा है पर गाय की घटना का जिक्र मात्र भी नहीं किया इतना ही क्यों पर विक्रम की सोलहवीं शताब्दी तक तो किसी की भी मान्यता नहीं थी कि जिनदत्तसरि के साथ गाय वाली घटना घटित हुई फिर सतरहवीं शताब्दी में यह स्वप्न क्यों आया होगा ? वास्तव में आधुनिक खरतरों ने इधर उधर के प्रभाविक आचार्यों के साथ घटी हुई घटनाओं को जिनदत्तसूरि के साथ जोड़ जिनदत्तसूरि को चमत्कारी ठहाराने की कोशीश की है पर इस प्रकार मात्र कल्पनाए करने से चमत्कारी सिद्ध नहीं होते हैं । " इति जीवदेवसूरि का जीवन" प्राचार्य स्कान्दलसूरि और श्रागमकाचना आचार्य स्कन्दिलसरि-जैन संसार में माथुरी वाचना के नाम से स्कन्दिलाचार्य बहुत ही प्रसिद्ध हैं परन्तु स्कन्दिलाचार्य के समय के लिये बड़ी भारी गड़बड़ है। कारण, चार स्थानों पर भिन्न २ समय स्कन्दिलाचार्य का वर्णन आता है जैसे १-युगप्रधान पट्टावली में स्कन्दिलाचार्य को श्यामाचार्य के बाद युग प्रधान कहा है । श्यामाचार्य का स्वर्गवास वीर वि० सं० ३७६ के आस पास का बतलाया है तदन्तर स्कन्दिलाचार्य युग प्रधान हुये और वे ३८ वर्ष युग प्रधान पद पर रहे तो वीरात् ४१४ वे वर्ष आपका स्वर्गवास हुभा। २-प्रभाविक चरित्र वृद्धवादी प्रबन्ध में वृद्धवादी को दीक्षा देने वाले स्कन्दिलाचार्य थे जैसे कि"पारिजातोऽपारिजातो, जैनशासननन्दने । सर्वश्रतानुयोगाहे कन्दुकन्दलनाम्बुदः॥ विद्याधरवराम्नाये, चिन्तामणिरिवेष्टदः । आसोच्छी स्कन्दिलाचार्यः, पादलिप्तप्रभोः कुले । इन स्कन्दिलाचार्य को अनुयोगधार कहा है परन्तु आपका सत्ता समय नहीं बतलाया है तथापि अनुमान किया जा सकता है कि आप विक्रम संवत के पूर्व हुये होंगे । कारण, स्कन्दिलाचार्य ने वृद्धवादी को दीक्षा दी और वृद्धवादी के शिष्य सिद्धसैनदिवाकर हुये जो विक्रम के समसामयिक थे अतः इस लेख से स्कन्दिलाचार्य का समय विक्रम संवत् पूर्व का ही मानना चाहिये । [ श्री वीर परम्परा ४५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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