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आचाय सिद्धसूरि का जीवन ]
[ओसवाल संवत् ३८८
आर्या सरस्वती ने भी उज्जैन में पदार्पण किया । उस समय उज्जैन में गर्दभिल्ल नाम का राजा राज करता था, वह अन्यायी तो था ही पर साथ में व्यभिचारी भी था । एक समय राजा की दृष्टि बालब्रह्मचारिणी सती परस्वती साध्वी पर पड़ी जिसके रूप योवन और लावण्य पर मुग्ध बनकर राजा ने अपने अनुचरों से साध्वी को बलात्कार अपने राजमहलों में बुलाली । साध्वी विचारी बहुत रुदन करती हुई खूब चिल्लाई पर जब राजा ही अन्याय कर रहा हो तो सुने भी कौन । साथ की साध्वियों ने आकर सब हाल कालका चार्य को कहा तो कालकाचार्य को बड़ा ही अफसोस हुआ और उन्होंने गजा के पास जाकर राजा को बहुत समझाया पर वह तो था कामान्ध, उसने सूरिजी की एक भी नहीं सुनी । वे निराश होकर वापिस लौट पाये । तदनन्तर उज्जैन के संघ अग्रेश्वर अनेक प्रकार से भेंट लेकर राजा के पास गये और साध्वी को छोड़ने की प्रार्थना की पर उस पापिष्ट व्यभिचारी ने किसी की भी नहीं सुनी। इस हालत में कालकाचार्य ने भीषण प्रतिज्ञा कर ली कि मैं इस व्यभिचारी राजा को सकुटुम्ब पदभ्रष्ट नहीं कर दूँ तो मेरा नाम कालकाचार्य नहीं है। सूरिजी कई दिन तो नगर में पागल की भांति फिरे पर इससे होने वाला क्या था । उस समय भरोंच नगर में बल मित्र भानु मत्र नाम के राजा राज करते थे और वे कालकाचार्यके भानजे थे । कालकाचार्य उनके पास गये पर वे भी गर्दभिल्ल का दमन करने में असमर्थ थे। दूसरे भी कई राजाओं के पास गये पर सूरिजी के दर्द की बात किसी ने भी नहीं सुनी । इस हालत में लाचार हो श्राप सिन्धु नदी को पार कर पार्श्वकुल अर्थात पार्श्व की खाड़ी के पास के प्रदेश (ईरान) में गये जिसको शाकद्वीप भी कहते हैं । वहाँ के राजाओं
ॐ जैन लेखकों का कथन है कि जिस राजा ने कालकाचार्य की बहिन सरस्वती का उपहरण किया था उसका नाम 'दप्पण' (दर्पण) था और किसी योगी की तरफ से गर्दभी विद्या प्राप्त करने से वह 'गर्दभिल्ल' कहलाता था।
बृहत्कल्प भाष्य और चूर्णि में भी राजा गर्दभ सम्बन्धी कुछ बातें हैं, जिनका सार यह है कि उज्जयिनी नगरी में अनिलपुत्र श्रव नामक राजा और उसका पुत्र गर्दभ युवराज था। गर्दभ के आडोलिया नाम की बहिन थी। यौवनप्राप्त अडौलिया का रूप सौन्दर्य देख कर युवराज गर्दभ उस पर मोहित हो गया। उसके मंत्री दीर्घपृष्ट को यह मालूम हुई और उसने अडौलिया को सातवें भूमिघर में रख दिया और गर्दभ उसके पास आने जाने लगा।'
चूर्णि का मूल लेख इस प्रकार है
"उज्जैणी णगरी, तत्थ अणिलसुतो जवो नाम राया, तस्स पुत्तो गद्दभोणाम जुवराया, तस्स रण्णो धूआ गद्दभस्स भइणी अडोलिया णाम, सा य रूपवती तस्स य जुवरणो दीहपट्ठो णाम सचिवो (अमात्य इत्यर्थः) ताहे सो जुवराखा तं अडोलियं भइणि पासित्ता अज्झोववरणों दवली भवइ । अमच्चेण पुच्छितो णिबंधे सिट्ठां अमच्चेण भण्णाइ सागारियं भविस्सति तो सत्तभूमीवरे छुभउ तत्थ भुंजाहि ताए समं फोए लोगों जागिस्सइ सा कहिं पिणटा एवं होउत्ति कतं ।"
संभव है, साध्वी सरस्वती का अपहारक गर्दभिल और अडेलिया का कामी यह गर्दभ दोनों एक ही हों। जब अपनी बहिन का ही विवेक नहीं था तो दूसरे का तो कहना ही क्या।
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शाखिदेशश्च तत्रास्ति राजानस्तत्र शाखयः । शकापराभिधाः सन्ति नवतिः षड्रिमरर्गला ॥ ४४ ॥ तेषामेकोधिराजोस्ति सप्तलक्ष तुरङमाः । तुरङ्गायुत मानाश्चापरेपि स्युनश्चराः ॥ ४५ ॥ एको माण्डलिकस्तेषां प्रैषी कालकसूरिणा । अनेक कौतुक प्रेक्षाहुतचित्तः कृतोऽथ सः ॥ ४६ ॥
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सरस्वती का अपहरण
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