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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ३८८
८. शक्रेन्द्र आकर स्तुति की थी। रत्न संचय ग्रन्थादि । ९-बल्लभी में आगम पुस्तकों पर लिखते समय शामिल थे-श्रावश्यक चूर्णी आदि में ।
___ उपरोक्त घटनायें किस समय और किस कालकाचार्य के साथ घटी थी। ___A पहिली घटना के नायक कालकाचार्य उपरोक्त चार कालकाचार्य से अलग हैं, कारण इस घटना का समय वीर नि० सं० ३०० के आस पास का बतलाया है।
____B. दूसरी तीसरी घटना के नायक उपरोक्त चार कालक से पहिले + कालकाचार्य हैं जिन्हों का नाम श्यामाचार्य भी था और आपका समय वी० ३३५-३७६ है । * पर मेरुतुंगसूरि ने आपका समय ३२० का लिखा है शायद् यह समय दीक्षा को लक्ष में रख लिखा हो।
__C चौथी, पांचवीं, छट्टी और सातवीं घटना के नायक दूसरे कालकाचार्य हैं जिन्हों का समय वीरात् ४५३ से ४६५ तक है ।। _D आठवीं घटना के स्वामि तीसरे कालकाचार्य हैं जिन्हों का समय वीरात् ७२० का है पर यह अप्रसिद्ध है।
E नौवीं घटना के नायक चतुर्थ कालकाचार्य हैं श्रापका समय वी० नि० ९९३ वर्ष का है ।
पूर्वोक्त गाथाओं में सांवत्सरिक चतुर्थी के करने वाले चतुर्थ कालकाचार्य को लिखा है पर वास्तविक चौथ की सांवत्सरी के कर्ता द्वितीय कालकाचार्य ही हैं जिसके लिये आगे चल कर लिखेंगे।
उपरोक्त चार एवं पांच कालकाचार्यों में धर्म एवं राज में क्रान्ति पैदा करने वाले दूसरे कालकाचार्य हुये उनका ही जीवन यहाँ लिखा जा रहा है।
धारावास नगर में राजा वैरसिंह राज करता था आपकी रानी का नाम सुरसुन्दरी था । आपके दो संतान पैदा हुई जिसमें कुवर का नाम कालका और कन्या का नाम सरस्वती था कालककुँवर के सब
____ + एक कथा में ऐसा भी लिखा मिलता है कि स्वर्ग से एक ब्राह्मण का रूप धारण करके इन्द्र कालकाचार्य को बन्दन करने को आया था तो ब्राह्मण ने अपना हाथ कालकाचार्य को दिखलाया कि मेरी आयुष्य कितनी है ? सूरिजी ने रेखा पर लक्ष देकर सौ दो सौ और तीन सौ वर्ष तक का अनुमान किया पर आयुष्यरेखा तो उससे भी बढ़ती गई तब जाकर उपयोग लगाया कि इस पंचमारे में इससे अधिक आयुष्य हो नहीं सकती है तो यह कौन होगा ? विशेष उपयोग लगाने से मालूम हुआ कि यह तो पहिले स्वर्ग का इन्द्र है। सूरिजा ने कहा आपकी आयुष्य दो सागरोपम की है जिसको सुनकर इन्द्र ने सोचा कि कालकाचार्य बड़े ही ज्ञानी हैं।
इससे यह भी पाया जाता है कि जम्बुद्वीप्रज्ञाप्तीसूत्रादिशास्त्रों में पंचमारा में उत्कृष्टि ६२० वर्ष की आयुष्य बतलाई है। यह मुख्यता से कहां है पर गौणता से इससे अधिक आयु भी हो सकती है जैसे कालकाचार्य ने ३०० वर्ष तक का अनुमान किया था। आज पाश्चात्य प्रदेशों में १५०-२०० वर्षों के आयुष्य वाले मनुष्य मौजूद हैं जिसको देख भद्रिक लोग शंका करने लग जाते हैं कि अपने सूत्रों में तो पंचमारा में १२० वर्ष की ही आयु कही है तो १५०-२०० वर्षों की आयु कैसे हो सकती है इसका समाधान उपरोक्त घटना से हो सकता है कि १२० वर्ष का आयुष्य मौख्यतासे कहा है तब गौणतासे पंचमारे में ३०० वर्ष तक की आयुष्य हो सकती है।
१ सिरिवीर जिणिदाओ, वरिससया तिन्निवीस (३२०) अहियाओ । कालायसूरी जाओ, सक्को पडिबोहिओ जेण ॥
मेरुतुगसूरि की 'विचारश्रेणी' १ कालको काल कोदण्ड खण्डितारिः (?) सुतोऽभवत् । सुता सरस्वती नाम्ना ब्रह्मभूविश्वपावना ॥ ७ ॥
कालकाचार्य
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