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________________ वि० पू० ७९ वर्षे ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास खर्चा है और वह एक दो रुपये कमा भी ले तो उसका घाटा पूरा नहीं होता है । उस खर्च के लिये तो उसको दो रास्ते सोधने होंगे या तो खर्च बिल्कुल बन्द करदे या पैदास को बढ़ावे । माता- बेटा ! मैं तेरी इन बातों को नहीं समझ पाई हूँ कि तू क्या कह रहा है ? बेटा - माता ! मैं कह रहा हूँ कि जीव के अनादिकाल के कर्म लगे हुये हैं और पाप रूपी कार्य करने से और भी कमों का संचय हो रहा है अतः पापारंभ करता हुआ थोड़ा बहुत धर्म कार्य साधन कर भी ले तो उससे वह घाटा पूरा नहीं हो सकता है। बल्कि घाटा और बढ़ता जा रहा है। माता ने | मुसकरा कर कहा- बेटा संसार में पापारंभ तो होता ही है और जब तक घर में बैठे रहे। वहाँ तक इससे बच भी तो नहीं सकते हैं । यदि तू कुछ उपाय जानता हो तो बता । बेटा- - माता यदि पापारंभ से नहीं बच सके तो इस जीव का कल्याण कैसे हो सकेगा ? और केवल घर का ही कारण है तो ऐसे घर को छोड़ क्यों नहीं दिया जाय कि कर्म बन्धन का हेतु जो पापारंभ है उससे बच कर कल्याण साधन कर सके । माता घर तो अनंतोवार किया और छोड़ा पर धर्म की आराधना एक बार भी नहीं की अतः घर की परवाह न कर धर्माराधना करना ही अच्छा है जिससे घाटा से बच सके । माता - वाह बेटा ! यह तो अच्छी बात कही, क्या तू पागल तो नहीं हो गया है ? व्याख्यान तो सब नगर के लोग सुनते हैं और सब लोग तेरी तरह घर छोड़ दें तो यह नगर ही शून्य हो जायगा ? बेटा - माता ! मैं नगर की बात नहीं करता हूँ। और ऐसा बनना भी असम्भव है । मानो कि सब लोग चाहते हैं कि हम कोटाधीश बन जायें, पर सब लोग कोटाधीश बन नहीं सकते हैं। पर जिसके शुभ कमों का उदय होता है वही कोटाधीश बन सकता है । माता- - तो क्या एक तेरे ही शुभ कर्म हैं कि तु घर छोड़ने की बातें कर रहा हैं ? बेटा - हाँ माता ! यदि मेरे ऐसे शुभ कर्म उदय हो जांय तो मैं बड़ी खुशी मनाऊँगा । माता और पुत्र हँसी खुशी में बात कर रहे थे कि इतने में देवसिंह का पिता राव करत्या घर पर आ गया । देवसिंह की माता ने अपने पतिदेव से कहा आप अपने प्यारे पुत्र की बातें तो सुनिये यह क्या कह रहा है ? कारण आज आप ने भी व्याख्यान सुना है और यह भी व्याख्यान सुन श्राया है । पिता- क्यों बेटा ! तेरी मां क्या कहती है और तू क्या बातें करता है ? Jain EdQ बेटा - पिताजी ! व्याख्यान की बातें कर रहा हूँ । w पिता - व्याख्यान की क्या बातें हैं ? व्याख्यान तो सब लोग सुनते ही हैं । बेटा - - व्याख्यान सुनने पर अमल करने की बातें मैं माँ को सुना रहा हूँ । पिता - तू व्याख्यान की बातों पर क्या अमल करना कराना चाहता है ? माता -- हँस कर कहा कि आपका बेटा घर छोड़ना चाहता है और मुझे भी उपदेश देता है । पिता - क्यों बेटा ! क्या तेरी माँ जो कह रही है यह बात सत्य है ? बेटा - हाँ पिताजी, मेरी माँ का कपना सोलह आने सत्य है । पिता - तो क्या तू घर छोड़ के दिसावर जायगा या साधुओं के साथ ? बेटा - पिताजी साधुओं के साथ जाना भी तो एक प्रकार से दिसावर ही है । पिता- - पर अपनी मां को तो पूंछ ले कि यह तेरे साथ चलेगी या नहीं ? ०३९८ International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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