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वि० पू० ७९ वर्षे ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
१४ - - याचार्य श्री देवगुप्त सूरि ( द्वितीय )
आचार्यस्तु स देव गुप्त सूरिरभवद्गेत्रस्य भूषा सुधीः । श्रेष्टी श्रेष्ट गुणान्वितो बहुतरैः कान्ति प्रतानैवृर्तः || भ्रमं भ्रामक देश विषये निर्माय जैनेत्तरन् । जैनान् जनमतस्य वर्धन परो वन्द्यौ विभूतिः सदा ||
प्राचार्य देवगुप्त सूरि-
- आपका गृहस्थ जीवन बड़ा ही चमत्कारी घटनापूर्ण था। पट्टावलीकारों ने लिखा है कि उपशपुर के राजा उत्पलदेव की सन्तान परस्परा में धर्मवात्सल्य लक्ष्मी मे कुबेर की स्पर्द्धा करने वाला श्रेष्ट गौत्रीय राव करत्था था । आपका संसार जीवन एक राजस्वी ठाठ वाला था, आपके ११ पुत्र होने पर भी कोई पुत्री नहीं थी जिसकी रावजी सदैव प्रतीक्षा कर रहे थे। इतना ही क्यों पर केवल एक पुत्री की गरज से रावजी ने अपनी दूसरी शादी बाप्पनागगोत्रीय राव देपाल की सुशील कन्या कुमारदेवी के साथ कर ली, पर लिखित लेखों को कौन मिटा सकता है ? एक दिन कुमारदेवी ने स्वप्न के अन्दर रत्नादि से चमकता हुआ देवविमान देखा, तदानुसार कुमारदेवी ने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया और उसका शुभ नाम देवसिंह रखा गया । माता पिता ने देवसिंह का भली भांति लालन पालन किया। बच्चों के अच्छे या बुरे संस्कार पड़ना उनके माता पिताओं पर निर्भर है। बचपन के संस्कार तमाम जिन्दगी भर स्थिर रहते हैं। इतना ही क्यों पर माता पिता के आचरणों की भी उनके बाल बच्चों पर गहरी छाप पड़ जाती है । राव करत्था और उनकी भार्या दोनों सदाचारी एवं धर्मज्ञ एवं देव गुरु के पूर्ण भक्त थे । जब वे मन्दिर उपाश्रय जाते थे तब अक्सर देवसिंह को भी साथ ले जाते थे । अतः देवसिंह के बचपन से ही धर्म के सुन्दर संस्कार जम गये। जब देवसिंह आठ वर्ष की उम्र को अति क्रमण कर गया तो उनके माता पिता ने उनके विद्याध्ययन का अच्छा प्रबन्ध कर दिया। राब करत्था अच्छी तरह से जानता था कि मनुष्य का जीवन व्यवहारिक ज्ञान के साथ साथ धार्मिक ज्ञान से ही सुखमय बनता | अतः अपने पुत्र को व्यवहारिक ज्ञान के साथ धार्मिक अभ्यास भी करवाया करता था । देवसिंह ने पूर्व में ज्ञान पद की आराधना खूब भक्ति के साथ की होगा कि अपने सहपाठियों से हमेशा अप्रेश्वर रहता यों कहा जाय तो देवसिंह ने थोड़े ही समय में अच्छा ज्ञान हासिल कर लिया । देवसिंह अपने माता पिता तो क्या पर एकादश वृद्ध भ्राताओं का भी विनय करने में अपनी योग्यता का ठीक परिचय करवा देता था । उसी समय का जिक्र है कि श्रीसंघ के प्रबल पुन्योदय से महा भाविक एवं अनेक लब्धियों से परिपूर्ण श्राचार्य कक्कसूरिजी महाराज का शुभागमन उपकेशपुर में हुआ जिनकी जनता कई अर्से से प्रतीक्षा कर रही थी । राजा एवं प्रजा ने मिल कर सूरिजी महाराज का नगर प्रवेश बड़ी ही धूमधाम एवं समारोह से करवाया। सूरिजी भगवान् महावीर की यात्रा कर उपाश्रय में पधारे और धर्म जिज्ञासुओं को थोड़ी पर सारगर्भित धर्म देशना इस प्रकार से दी कि उपस्थित जनता पर खूब ही प्रभाव पड़ा ।
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