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[३०] सजनो ! आप जानते हैं मैं उस वैष्णव सम्प्रदाय का आचार्य हूँ यही नहीं मैं उस सन्प्रदाय का सर्वतोभाव से रक्षक हूँ और साथ ही उसको तरफ कड़ी नजर से देखने वाले का दीक्षक भी हूँ तो भी भरी मजलिस में मुझे तह कहना सत्य के कारण आवश्यक हुआ है कि जैनों का प्रन्थसमुदाय सारस्वत महासागर है उसकी ग्रंथसंख्या इतनी अधिक है कि उन प्रन्थों का सूचीपत्र भी एक निबन्ध हो जायगा......"उस पुस्तक समुदाय का लेख और लेख्य कैसा गंभीर, युक्तिपूर्ण, भावपूरित, विशद और अगाध है। इसके विषय में इतना ही कह देना उचित है कि जिन्होंने इस सारस्वत समुद्र में अपने मतिमन्थान को डालकर चिर आन्दोलन किया है वे ही जानते हैं............
(१२) तब तो सज्जनो! आप अवश्य जान गए होंगे कि जैनमत तब से चलित हुआ है जब से संसार सृष्टि का प्रारम्भ हुआ।
(१३) मुझे तो इसमें किसी प्रकार का उन नहीं है कि जैन दर्शन वेदान्तादिदर्शनों से भी पूर्व का है इत्यादि.........। ३३ भारतगौरव के तिलक, पुरुषशिरोमणि, इतिहासज्ञ, माननीय पं० बालगंगाधर तिलक,
भूतसम्पादक, "केसरी" इनके ३० नवम्बर सन् १९०४ को बड़ौदानगर में दिये हुए व्याख्यान से(१) जैनधर्म विशेषकर ब्राह्मणधर्म के साथ अत्यन्त निकट सम्बन्ध रखता है। दोनों धर्म प्राचीन हैं।
(२) प्रन्थों तथा सामाजिक व्याख्यानों से जाना जावा है कि जैनधर्म अनादि है। यह विषय अब निर्विवाद तथा मतभेदरहित है और इस विषय में इतिहास के दृढ़ प्रमाण हैं।
(३) इसी प्रकार जैनधर्म में "महावीर स्वामी" का शक ( सम्वत् ) चला है जिसे चलते हुए २४०० वर्ष हो चुके हैं । शक चलाने की कल्पना जैनी भाइयोंने ही उठाई थी।
(४) गौतमबुद्ध महावीर स्वामी ( जैन तीर्थकर ) का शिष्य था जिससे स्पष्ट जाना जाता है कि बौद्ध धर्मकी स्थापना के प्रथम जैनधर्म का प्रकाश फैल रहा था। चौबीस तीर्थंकरों में महावीर स्वामी अन्तिम तीर्थकर थे । इससे भी जैनधर्मकी प्राचीनता जानी जाती है । बौद्धधर्म पीछे से हुआ यह बात निश्चित है। बौद्धधर्मके तत्त्व जैनधर्मके तत्वों के अनुकरण हैं।
(५) श्रीमान महाराज गायकवाड ( बड़ोदा नरेश ) ने पहिले दिन कान्फ्रेंस में जिस प्रकार कहा था उसी प्रकार 'अहिंसा परमोधर्मः' इस उदार सिद्धान्तने ब्राह्मण धर्म पर चिरस्मरणीय छापमारी है। पूर्वकाल में यज्ञ के लिये असंख्य पशुहिंसा होती थी इसके प्रमाणमेघदूतकाव्य आदि अनेक प्रन्थों से मिलते हैं...... परन्तु इस घोर हिंसा का ब्राह्मणधर्मसे विदाई ले जानेका श्रेय (पुण्य ) जैनधर्म ही के हिस्से में हैं।
(६) ब्राह्मणधर्म और जैनधर्म दोनोंमें झगड़े की जड हिंसा थी जो अब नष्ट होगई है । और इस रीवि से ब्राह्मण धर्म को जैनधर्म ही ने अहिंसाधर्म सिखाया ।
(७) ब्रह्मणधर्म पर जो जैनधर्मने अक्षुण्ण छाप मारी है उसका यश जैनधर्म के ही योग्य है। अहिंसा का सिद्धान्त जैनधर्म में प्रारम्भ से है और इस तत्व को समझने की त्रुटि के कारण बौद्धधर्म अपने अनुयायी चीनीयों के रूप में सर्वभक्षी होगया है।
(८) ब्राह्मण और हिन्दुधर्म में मांस भक्षण और मदिरा पान बन्द होगया, यह भी जैनधर्म का ही
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