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वि० पू० १८२ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
इस विषय में श्रीमान् पन्यासजी कल्याणविजयजी महाराज ने अपने 'वीरनिर्वाणसंवत और जैनकाल गणना' नामक पुस्तक में अनेक प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध किया है कि जिस कल्की राजा का जैन, बौद्ध और पुराणकारों ने वर्णन किया है वह कल्की पुष्पमित्र ही हो सकता है। इत्यादि :
पन्यासजी महाराज के प्रमाण और युत्तियाँ बहुत महत्व पूर्ण हैं। यदि धर्म द्रोही पुष्पमित्र को ही कल्की मान लिया जाय तो असंगत कुछ भी नहीं है । कारण तीनों धर्म वालों की लिखी हुई कल्की की घटनाएं पुष्पमित्र के जीवन के साथ घटित होती हैं अब रहा कल्की होने के समय की बात अतः इस विषय में-हाँ जैन, बौद्ध और ब्राह्मणों ने कल्की के होने का समय पृथक पृथक् लिखा है परन्तु जैनों का मत है कि वर्तमान समय के पूर्व कल्की हो चुका है क्योंकि जैन लेखकों ने कल्कि का समय वीर निर्वाण संवत् १००० से २००० तक का लिखा है । जब हम वीर निर्वाण से २००० वर्ष का समय देखते हैं तो इसमें पुष्पमित्र के अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति ऐसा नजर नहीं आता कि जिसने धर्माधता के वशीभूत हो साधुओं को कत्ल किया हो या साधुओं की भिक्षा पर टैक्स लगाया हो जैसा कि पुष्पमित्र ने किया था अतः पुष्पमित्र को ही कल्की मान लेना न्याय संगत ही कहा जा सकता है।
अब रहा पुराणकारों द्वारा लिखित कल्की का समय जो वे कल्की को कलियुग का अन्त में होना बतलाया है जब कि राजा कल्की के विषय में जैन बौद्ध और पुराणकारों की लिखित घटनाएं सब सदृश ही हैं और वे प्रायः एक ही पुरुष के लिये ही हैं तो कोई कारण नहीं कि हम इस घटनाओं को ऊपर लिखे अनुसार पुष्पमित्र के लिये न मार्ने ।
खैर इस विषय को तो मैं इतना ही कह कर विद्वानों पर छोड़ देता हूँ कि मगध के सिंहासन पर पमित्र एक ऐसा भारत में कलंक स्वरूप राजा हुआ है कि भारत के इतिहास में ऐसा धर्मान्ध कोई में राजा नहीं हुआ था।
जैसे पुष्पमित्र ब्राह्मण धर्म को मानने वाला मगध का राजा हुआ वैसे ही उस समय कलिंग के सिंहा सन पर खारवेलराजा जैन धर्म को मानने वाला चक्रवर्ति राजा हुआ पर कहाँ पुष्पमित्र की धर्मान्धता श्री कहाँ खारवेल की सम्यग् दृष्टि वह जैन होता हुआ भी अपना राज्याभिषेक ब्राह्मण धर्मानुसार करवाया थ और उस समय के तीनों धर्मो ( जैन बोद्ध, वेदान्तिक ) को यथावत् सन्मान की दृष्टि से देखता था ।
इति कलिंग का संक्षिप्त इतिहास ।
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