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पाचार्य यक्षदेवमूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् २१८
कर कहा-मैं बुद्ध शासन का नाश करूंगा। बतलाओ तुम क्या चाहते हो,स्तूप या संघाराम? इस पर भिक्षुओं ने स्तूपों को ग्रहण किया । पुष्यमित्र संघाराम और भिक्षुओं का नाश करता हुआ शाकल तक पहुँच गया। उसने यह घोषणा करदी कि जो कोई भी मुझे श्रमण (साधु) का मस्तक लाकर देगा उसे मैं सोने की सौ मुहरें दूंगा xx अतः लोगों ने बड़ी २ संख्या में सिर देना प्रारंभ कियाxxसुन कर वह अहेत ( अहंत प्रतिमा) की धात करने लगा। पर वहाँ उसका कोई प्रयत्न सफल नहीं हुआ । सब प्रयत्न छोड़ कर वह कोष्टक में गया । उस समय दंष्ट्राविनाशी यक्ष सोचता है कि यहाँ भगवच्छासन का नाश हो रहा है, पर मैंने यह शिक्षा ग्रहण की हुई है कि मैं किसी का अप्रिय नहीं करूंगा।' उस यक्ष की पुत्री कृमीसेनयक्ष याचना करता था पर उसे पापकर्मी समम कर वह अपनी पुत्री को नहीं देता था, पर उस समय उसने भगवच्छासन की रक्षा के निमित्त अपनी पुत्री कृमीसेनयक्ष को देदी।।
पुष्यमित्र को एक बड़े थक्ष की मदद थी, जिससे वह किसी से मारा नहीं जाता था।
दंष्ट्राविनाशी यक्ष पुष्यमित्र संबंधी यक्ष को लेकर पहाड़ों में फिरने को चला गया। उधर कमीसेन यक्ष ने एक बड़ा पहाड़ लाकर सेना सहित पुष्यमित्र को रोक लिया ।
उस पुष्यमित्र का 'मुनिहत' ऐसा नाम स्थापित किया। जब पुष्यमित्र मारा गया तब मगद में मोर्यवंश का अंत हुआ।
"दिव्यावदान के २१ वें अवदान से कुछ श्लोकों का सारांश ( ३ ) वेदान्तिक एवं पुराणकारों का मत है कि
'जब कलियुग पूरा होने लगेगा तब धर्म रक्षण के लिये शंभलगाम के मुखिया विष्णुयश प्रामण के यहाँ भगवान् विष्णु कल्की के रूप में अवतार लेंगे'
___'कल्की देवदत्त नामक तेज घोड़े पर सवार हो के खड़ग से दुष्टों और राजवेश में रहते हुए सब लुटेरों का नाश करेगा । जो म्लेच्छ हैं, जो अधार्मिक और पाखंडी हैं वे सब कल्की द्वारा नाश किये जायेंगे ।
-श्री मद्भागवत स्कंध १२ वां, अध्याय २ उपरोक्त तीनों धर्म वालों के शास्त्र प्रमाणों से इतना तो सहज ही में जाना जा सकता है कि कस्की ब्राह्मणों के पक्ष में और जैन एवं बौद्धों के विपक्ष में होगा । यही कारण है कि ब्राह्मण उसको विष्णु का अवतार लिखते हैं जब कि जैन एवं वौद्ध उसको धर्म विध्वंसक, अन्यायी एवं अत्याचारी लिखते हैं । यदि कल्की पुष्पमित्र ही है तो यह सब घटनाए सब तरह से उसके लिये मिलती हुई है।
जैन शास्त्रकारों का यह कथन है कि कल्की धर्म का धंस करेगा और जब उसका अन्याय चरम सीमा तक पहुँच जायगा तब इंद्र आवेगा और उसे दंड देगा अर्थात् जान से मार डालेगा और उसके पुत्र दत्त को राज्य देगा इत्यादि । यही बात राजा पुष्पमित्र के लिये ठीक घटित होती है कारण उड़ीसा की हाथीगुंफा के शिलालेख में लिखा है कि मगद का राजा पुष्पमित्र के अन्याय के कारण महामेघवाहन चक्रवर्ती कलिंगपति राजा खारवेल को मगध पर दो बार चढ़ाई करनी पड़ी और पुष्पमित्र को ऐसा दंड दिया कि उसका सिर भपने चरणों में मुका दिया । खारवेल कट्टर जैन था अतः जब उनसे पुष्पमित्र का अन्याय देखा न गया तब ही इसने मगध पर चढ़ाई कर उसे इस प्रकार दंड दिया हो तो यह असंभव भी नहीं है।
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