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वि० पू० १८२ वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
बरामदे से हो कर तीन द्वार वाले लम्बे कमरे में जाना होता है ये द्वार अब गिर गये हैं छत की रक्षा अब दो नये स्तम्भ दे कर की गई है । भीतों पर पद्मासन तीर्थंकर की मूर्तियाँ देवी सहित अंकित हैं। पीछे की तरफ श्रीपार्श्वनाथ की बड़ी खड़गासन मूर्ति है। जिस पर ७ फन का मण्डप है इस पर देवी का चिन्ह अंकित नहीं है-इन सब मूर्तियों के भिन्न २ चिन्ह दिये हुए हैं तथा ये ८ से ७॥ इंच तक की ऊँची हैं जब कि श्री पार्श्वनाथजी की मूर्ति २ फुट ७॥ इंच ऊंची है । इसी के पास दक्षिण में - १८-त्रिशूलगुफा है-जिसका कमरा २२ फुट लम्बा ७ फुट चौड़ा व ८ फुट ऊंचा है । इसमें भी २४
तीर्थङ्करों की मूर्तियां अंकित हैं। इन्हीं में ७ फण मण्डप सहित श्रीपार्श्वनाथजी की खड़गासन मूर्ति तथा प्रान्त में श्री महावीर स्वामी की मूर्ति है । इन २४ तीर्थङ्करों के समुदाय में भी श्रीपार्श्वनाथ जी को श्री महावीरस्वामी के पहले न देकर मध्य में विराजित किया है । ( अर्थात् - इससे यह सिद्ध होता है कि श्री पार्श्वनाथजी की विशेष भक्ति को दरशाने वाली यह गुफा है सम्भव है कि ये मूर्तियाँ श्रीपार्श्वनाथजी के मुक्ति पधारने के बाद और महावीर स्वामी के निर्वाण के पहले विराजमान की गई हों।
पन्द्रहवें तीर्थङ्कर का श्रासन एक वेदी से ढका हुआ है जिस पर तीन पद्मासन सुन्दर मूर्तियाँ श्री पार्श्वनाथ भगवान की है इस गुफा की मूर्तियों का आकार पहले की गुफाओं की मूर्तियों के आकार से सुन्दर है ।
फिर बाई तरफ आने से ५० या ६० फुट ऊँचा देखने से वहाँ जैन मूर्तियाँ अंकित हैं१९--फिर आगे पश्चिम की तरफ २ खन्ड की गुफा है-इसको सिंहगुफा या ललतेन्दुकेसरीगुफा कहते
हैं-पहले खण्ड के कमरे में जैन तीर्थङ्कर की मूर्तियाँ अंकित हैं--जिनमें सब से मुख्य श्री पार्श्वनाथ की
है उसमेंएक शिला लेख भी अंकित है१-ऊँ-श्रीउद्योतकेसरीविजयराज्य संवत् ५ । २-श्रीकुमारपर्वत स्थाने जीर्ण वापि जीर्ण इसान। ३-उद्योतित तस्मित् थाने चतुर्विंशति तीर्थङ्कर। ४-स्थापिता प्रतिष्ठा काले हरि ओप जसनंदिकं । ५-क्ष...'हु..."ति'"''दुथा'.......। ६-श्री पार्श्वनाथस्य कर्मक्षयाय
(नोट-इस लेख में राजा उद्योतकेशरी कोनाम व संवत् ५ आया है तथा खण्डगिरि का नाम कुमार पर्वत लिखा है-यहां जीर्ण मन्दिर व बापी पहले थे ऐसा प्रकट है-वहीं २४ तीर्थकर स्थापित किये गये । प्रतिष्टा के समय में यहां श्री यसनन्दिआचार्य मौजूद थे।) इसके आगे एक झील है जिसको आकाश गंगा करते हैं२०-अनन्तगुफा-खंडगिरि की दाहिनी तरफ एक लम्बा कमरा है, जो २३ फुट चौड़ा व २४ फुटल म्बा
व ६ फुट ऊंचा है, चार द्वार हैं । पीछे की भीत पर ७ पवित्र चित्र अंकित हैं। उनमें स्वस्तिक, त्रिशून,
आदि हैं-पहले स्वस्तिक के नीचे एक छोटी खड़गासन मूर्ति है जो अब बहुतविस गई है यह मूर्ति शायद भीपार्श्वनाथजी की होगी। इसमें कुछ दृश्य भी बने हैं-यहां लेख सन् ई० से पहले के हैं।
"दोहद समनानम् लेनम्" दोहद के साधुओं की गुफा तथा "दंडाचार" अर्थ समझ में नहीं पाया। २१-एक दूसरी गुफा में ५ पक्ति का लेख है।
१-श्रीशान्तिकर सौराज्याद आचन्द्रार्कम् । २-गुहे गुहे खदि ? संझे पुनः अंगे-भाग । ३-जास्य विरजे जने इज्या गर्भ समुद्। ४-भूतो नन्न तस्य सुतो भिषक भीमतो।
५-याचते वान्य प्रस्थम् सम्वत् सरात् पुनः।।
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