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आचार्य यक्षदेवसरि का जीवन ]
[ औसवाल संवत् २१८ ___नोट- इस लेख में जो शिलालेखों की नकल दी गई है वह एपिग्रेफिका इन्डिया की जिल्द तेरहवीं सन् १९१५-१६ सफा १५९ से १६६ तक से ली गई है।
उपरोक्त शिलालेखों से इतना पता तो सहज ही में लग जाता है कि खण्डगिरि उदयगिरि का नाम १० वीं तथा ११ वीं शताब्दी तक कुमारकुमारोपर्वत प्रसिद्ध था । त्रिशून गुफा के ऊपर एक सफेद पुता हुआ जिनमन्दिर हैं जिसकी मिति निश्चित नहीं है-यहां से दक्षिण की तरफ पत्थर की चट्टान ऊपर जैन तीर्थङ्करों की कई मूर्तियां अंकित है जो इधर-उधर पत्थरों के गिरने से साफ एवं प्रगट मालूम नहीं होती हैंयहां पर भीत को एक गुफा थी जिसमें भी जैनतीर्थंकरों की मूर्तियां थीं --पर्वत की चट्टान के मध्य में एक जैन मन्दिर है जिसमें पांच जैन मतियां हैं।
खंडगिरि के दक्षिण पश्चिम में नीलगिरि है-यहां राधाकुंड और श्यामकुंड हैं।
इन गुफाओं में से हाथीगुफा की मिती सन् ई. से १५८ या १५३ वर्ष पहले की है-तथा उदयगिरि की स्वर्गपुरी, मञ्चपुरी, सर्पगुफा, वाघगुफा, जाम्बेश्वर, हरिदास, ऐसी ६ गुफात्रों में तथा खण्डगिरि की तत्वगुफा दो और अनंतगुफा इस तरह ९ गुफाओं में शिलालेख ब्राह्मी अक्षरों में हैं और खारबेल राजा के समय के अक्षरों से मिलते हुए हैं । क्योंकि इन ब्राह्मी अक्षरों का परिवर्तन सन ईस्वी के पहली शताब्दी से पीछे हुआ है इसलिए इन लेखों को नियमानुसार इस समय के पीछे का नहीं रखा जा सकता है । ये नौ गुफाएं हाथीगुफा के निकट ही समय में खोदी गई थी अर्थात सन ईस्वी से दूसरी शताब्दी से पहले नहीं खोदी गई थीं-तो भी सम्भव है, उनमें से कुछ यह या और दूसरी गुफाएं हाथीगुफा से भी पहले की हों क्योंकि राजा खारवेल ने अपने बड़े लेख के अंकित करने को यह पहाड़ी इसीलिए चुनी होगी कि यह पहाड़ी जैनसाधुओं के विराजने से पवित्र हो चुकी है। यहाँ की स्वाभाविक या कृत्रिम गुफात्रों में जैन साधु अवश्य पहले से ही विराजते होंगे। कम से कम आधी शताब्दी तो अवश्य लेना चाहए कि जब यह पहाड़ी मुनियों के विराजने से इतनी पवित्र हो गई थी कि जिसको पवित्र जानकर राज-कुटुम्ब ने यहां खुदाई में बहुत सा रुपया खर्च किया था। यहां अवश्य सन् ईस्वी से तीसरी शताब्दी के पहले लेने ( गुफायें ) मौजूद थीं। जो कुछ यह प्रमाण मिलते हैं उनसे यह बात अनमिलती नहीं है। क्योंकि हाथी गुफा के लेख के १०० वर्ष पहले यह उड़ीसा देश वृहत-मौर्य राज्य का एक भाग हो गया था और तब जिस निग्रंथ मत का वर्णन अशोक के शिलालेखों में है उसका प्रभाव अवश्य यहां पर हुआ ही होगा।
दूसरी शताब्दी में महायान भाग के बौद्धों के बड़े उपदेशक ने कहा जाता है कि उड़ीसा के राजा को और उसकी बहुत सी प्रजा को बौद्ध कर लिया। और तब यह मानना ठीक ही है कि इस समय के पीछे जैन मत का प्रभाव मंद हो गया और जन गुफाओं का खोदना बन्द हो गया-इन सबका सार यह होना चाहिए कि यहां की बहुत सी गुफाओं के खोदने का समय सन् ईस्वी की तीसरी शताब्दी के पहले से लेकर प्रथम शताब्दी पहले तक है।
___ सबसे बड़ी गुफा रानी की गुफा है । यह अभाग्य की बात है कि इस गुफा पर कोई शिलालेख नहीं है जिससे इसकी मिती का पता चले । परन्तु इसके लम्बे कमरे की श्रेणी या स्तम्भों की बड़ी लाइन तथा चित्रकारी आदि प्रगट करती हैं कि यह रचना किसी धनाढ्य दातार द्वारा हुई है। शायद किसी बलवान
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