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आचार्य यक्षदेवसरि का जोवन ]
[ ओसवाल संवत् २१८
है १५ फुट से ६ फुट की माप है । यही प्रसिद्ध खारबेल का लेख है। (यह लेख पहले दे दिया गया है। :--सपेंगुफा-इसके द्वार की बाई ओर पहली शताब्दी पूर्व का एक शिलालेख है ये दो लाइन का है ।
१-कम्मस हलरिन । २--णय च पसादो।
अर्थात्-कम्म और हलरिवन का प्रासाद । इसी सर्पगुफा द्वार पर बड़ी हाथीगुफा के पास एक शलालेख है-"चूलसमय को था जे याय" चूल कर्मन् का अजेय कोठा । २--वाघगुफा--इस पर भी दूसरी शताब्दी का शिलालेख है जो दो पक्तिये इस भांति है :--
१--नगरअरंबदस २--सभूतनोलेनम -- अर्थात् नगरज जसभूति की गुफा । १०-हरिदासगुफा--इस पर एक शिलालेख इस भांति है और इ० संः पहली शताब्दी पूर्व का
"चूलकुमसपसातोकथाजेयाच ।" अर्थात्-चूलकुम का प्रासाद और अजेय कोठा । ११-जंबेश्वरगुफा--- यहां एक शिलालेख मञ्चपुरी गुफा के समय का जो लेख ब्राह्मी अक्षरों में है।
"महामदास वारियाय ना कियस लेनम्" अर्धात्-महामद की स्त्री नाकियस की गुफा । १२-छोटीहाथीगुफा-इस पर भी एक अपूर्व लेख हैं। "अगरिच.............. 'सलेनम्"।
श्रागे खंड गिरि की कुछ गुफाओं का वर्णन है और वह उत्तर से शुरू करते हैं :१३--तत्त्वगुफा नं० १-- इसमें चित्र है तथा इस पर शिलालेख हैं-- यह पहली शताब्दी पूर्व का है। १४--तत्त्वगुफा नं० २-इसपर भी लेख है-"पद मुलिकस कुसु मास लेनम्" कुसुम सेवक की गुफा___ यह सब से प्राचीन लेख है। खंडगिरि के लेखों में (Oldest of all inscriptions in Khandgiri) १५--नवमुनिगुफा - इसके भीतर १० वौं शताब्दी का लेख है जो इस भांति हैं:
१-" ॐ श्रीमत् उद्योतकेशरीदेवस्य प्रवर्द्धमाने विजय राज्ये संवत् १८ २-- श्रीआय्यंसंघप्रतिबद्ध ग्रहगुलविनिर्गतदेशीगणाचार्यश्रीकुलचन्द्र
३-भट्टारकस्थतस्यशिष्यशुभचन्द्रस्य । इस लेख में स्पष्ट लिखा है कि उद्योतकेशरीदेव के उन्नतिशीलराज्य के १८ वें वर्ष में श्री शुभचन्द्र भावार्य यहाँ विराजित थे जो श्री आर्यसंघगृहकुलदेशीगण के प्राचार्यकुलचन्द्रभट्टारक के शिष्य थे । १६--इसी गुफा में--टूटी हुई भीत पर दूसरा शिलालेख इसी समय का है, जिसके वाक्य ये हैं
१--श्रीधर क्षात्र--यह एक भाग पर है और दूसरे भाग में है कि
ऊं श्री आचार्य कुलचन्द्रस्य तस्य शिष्यरवल्लशुभचन्द्रस्य'... 'छात्र विजो इसले भी शुभचन्द्र प्राचार्य का नाम प्रगट है-इस गुफा के दाहने कमरे में एक एक फुट ऊँची दश तीर्थंकरों की मूर्तियाँ है उनमें शासनदेवी बनी हुई है। श्रीपार्श्वनाथजी की दो मूर्तियें हैं। जिनके ऊपर सफणमण्डप किये हुए हैं-उनकी विशेष मान्यता प्रगट है । और इस गुफा के आगे १७-बारह जागुफा इसका नाम बारह भुजा इसलिये है कि बरामदे की दीवार के बाई तरफ एक देवी
की मूर्ति है जिसके बाहर भुजाये हैं। (नोट :-यह जिनशासन की प्रति मूर्ति मालूम होती है क्योंकि जिनवाणी में आचारङ्ग आदि बारह अङ्ग होते हैं)
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