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________________ वि० पू० १८२ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास पिता स्वर्गवासी हुए। और तब वे कलिंग राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए। वंश परम्पग से यद्यपि वे जैन धर्मावलंबी थे तथापि उनका राज्याभिषेक ब्राह्मण धर्मानुसार हुआ था। जिस वर्ष खारवेल राजा हुए उसी वर्ष प्रचंड तूफान होने से राजधानी तोसाली नगरी की बाहरी दीवाले बुजे मय दरवाजे के टूट गई थीं। राजा खारवेल ने इसे फिर से मजबूती के साथ तैयार करवाया । देशविजय-उड़ीसा की हाथीगुफा में पाली भाषा में खोदित एक बृहत् शिलालेख है । जो ऊपर दिया गया है उसमें खारवेल के राजत्व के प्रथम वर्ष से १३ वाँ वर्ष तक की घटनाएँ वर्णित हैं । उससे यह मालूम होता हैं कि राजा खारवेल अपने राजत्व के प्रथम वर्ष में राजधानी की मरम्मत का काम करवाकर द्वितीय वर्ष से द्वादश वर्ष तक देश विजय करने के लिये युद्धयात्रा में बाहर ही घूमते रहे । मूषिकदेश विजय-कौशल ( दक्षिण कौशल ) के पश्चिम में मूषिक नामक एक देश कलिंग से लगा हुश्रा उत्तर पश्चिम की ओर अर्थात् वर्तमान काना हाँडी संबल इत्यादि स्थानों में व्याप्तमान था। वर्तमान धुमसर इत्यादि स्थान और गंजाम जिला के पश्चिमीय विभाग में भंजवंशीय क्षत्रिय राज्य करते थे। मूषिक गजा इन काश्यप क्षत्रियों पर बारम्बार आक्रमण कर भारी अत्याचार करते थे। काश्यप देश कलिंग के अन्तर्गत था, इस लिये राजा खारवेल ने काश्यपों की रक्षा करने के निमित्त मृषिक देश पर चढ़ाई की। वे इस समय आन्ध्र देश में होते हुए गये थे। इसी से आन्ध्र राजा सातकर्णि ने उनका गतिरोध किया था किन्तु वे ससैन्य परास्त हो कर मार्ग छोड़ने के लिये वाध्य हुए। श्रान्ध्र राजा सातकर्णि को परास्त कर खारवेल ने मषिक राजा की राजधानी पर हमला कर समस्त मषिक लोगों को परास्त किया और इसी युद्ध से ईस्वी पूर्व १७१ संन् के समन मषिक देश कलिंग के अन्तर्गत होगया। भोजक और राष्ट्रि राज्य आक्रमण-अपने राजत्व के चतुर्थ वर्ष में (स्त्री० पू० १६९ अब्द में) राजा खारवेल भोजक सौर राष्ट्रिक राजाओं से युद्ध करने चले । ये दोनों देश आन्ध्र देश के समीप पश्चिम और उत्तर पश्चिम में थे। वर्तमान महाराष्ट्र देश का राष्ट्रिक और बरार का भोजक राज्य होना अनुमान किया जा सकता है । इन राजाओं ने खारवेल के विरुद्ध आन्ध्र राजा सातकर्णि की सहायता की थी। इसी से राजा खारवेल ने प्रथम प्रान्ध्र और मूषिक देशवासियों को दबा कर अनन्तर राष्ट्रिक और भोजक राज्यों पर आक्रमण किया। अंत में इन दोनों राज्यों को विजय कर खारवेल ने उन्हें कलिंग के अन्तर्गत किया किन्तु इन राज्यों को दूर होने के कारण अपने अधिकार में न ला, केवल उन्हीं राजाओं को वापिस कर उन्हें अपना आधीन राजा बनाये । इन राजाओं ने भी राजा खारवेल को अपना राजाधिराज माना और यथोचित सम्मान किया । तब से वे लोग स्वाधीन राजा न रह कर खारवेल के श्राधीन गजा हो गये। विवाह:-राजा खारवेल का विवाह उनके राजत्व के सप्तम वर्ष में याने २२ वर्ष की अवस्था में हुआ था। खंडगिरिस्थ मंचपुरी गुफा में जो शिलालेख है, उसमें लिखा है कि यह गुमा चक्रवर्ती राजा खारवेल की मुख्य पटरानी द्वारा बनवाई गई है, जो राजा लालकस की पुत्री थी। यह लालकस हाथीसहस के पौत्र थे किंतु राजा खारवेल की पटरानी का नाम यहाँ नहीं लिखा है और न यह स्पष्ट है कि ये राजा लालकस किस देश के राजा थे। पं० श्री नीलकंठदास ने खारवेल के विवाह सम्बन्ध में एक उड़िया भाषा में काव्य पुस्तक लिखी है, इसमें खारवेल की पटरानी का नाम धूसी लिखा है। उसका सारांश नीचे दिया जाता है। Jain Educe semnational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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