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________________ आचार्य यक्षदेवसरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् २१८ अनुवाद-..... 'सब को वश किये । तेरहवें वर्ष में पवित्र कुमारी पर्वत के ऊपर जहां (जैन धर्म का ) विजय धर्म चक्र सुप्रवृत्तमान है । प्रक्षीण संसृति (जन्म मरणों को नष्ट किये ) कायनिषिदी (स्तूप) ऊपर ( रहने वाले ) पाप को बताने वाले ( पाप ज्ञापकों ) के लिये व्रत पूरे हो गये पश्चात् मिलने वाले राज (विभूतियों कायम कर दी । (शासनो बन्ध दिये ) पूजा में रक्त उपासक खारवेल ने जीव और शरीर की श्री की परीक्षा करली ( जीव और शरीर परीक्षा कर ली है। १५........ [सु] कतिसमणसुविहितानं [नु-?] च सत-दिसानं [नु-१] भानिनं तपसिइसिनं संघियनं [ नु?][; अरहत-निसीदिया समीपे पभारे वराकर-समुथपिताहि अनेक योजनाहिताहि प. सि. ओ"सिलाह सिंहपथ-रानिसि [] धुडाय निसयानि अनुवाद-सुकृति श्रमणे सुविहित शत दिशाओं के ज्ञानी-तपस्वी ऋषि संघ के लोगों को..... अरिहंत के निषीद्दीका पास पहाड़ के ऊपर उम्दा खानों के अन्दर से निकाल के लाये हुए-अनेक योजनों से लाये हुए' "सिंह प्रस्थवाली रानी सिन्धुला के लिए निःश्रय ..... १६........ घंटालक्तो x चतरे व वेरियगभे थंभे पतिठापयति, [ , ] पान-तरिया सत सहसेहि [1] मुरिय-काल वोर्छिनं च चोयठिअंग-सतिकं तुरियं उपादयति [I] खेमराजा स बढ राजा स भिखुराजा धमराजा पसंतो सुनंतो अनुभवंतो कलाणानि ____ अनुवाद-घंटा संयुक्त (') वैडुर्य रत्न वाले चार स्तम्भ स्थापित किये । पचहत्तर लाख के व्यय से मौर्यकाल में उच्छेदित हुए चौसठ ( चौसठ अध्याय वाले ) अंग सप्तिकों का गैथा भाग पुनः तैयार कर. वाया । यह खेमराज वृद्धराज भिक्षुराज धर्मराज कल्यान को देखते और अनुभव करते १७...."गुण-विसेस-कुसलो सव-पांसडपृजको सव-देवायतनसंकारकारको [अ] पतिहत चकिवाहिनिबलो चकधुरो गुतचको पवत-चको राजसि-वस-कुलविनिश्रितो महा-विजयो राजा खारवेल-सिरि अनुवाद-छ गुण विशेष कुशल मर्व पंथो का श्रादर करने वाला सर्व ( प्रकार के ) मन्दिरों की मरम्मत करने वाला अस्खलित रथ और सेता वाला चक्र ( राज्य ) के धुरा ( नेता ) गुप्त ( रक्षित ) चक्र पाला प्रवृतचक्रवाला राजर्षि वश विनिःसृत राजा खारवेल उपरोक्त शिलालेख का विशेषार्थ--चैत्र ( चेटक ) वंशीय राजाओं में खारवेल सबसे श्रेष्ट और पराक्रमी राजा हुए। वंश परम्परानुसार खारवेल भी 'ऐर महामेघ वाहन' की उपाधि से भूषित हुए थे, सन ईस्वी १९७ वर्ष पूर्व में इनका जन्म हुआ था। पन्द्रह वर्ष तक इनका बाल्य जीवन केवल क्रीड़ा में व्यतीत हुश्रा । सन् ईस्वी से १८२ वर्ष पूर्व याने अपने १५ वर्ष में खारवेल युवराज पद पर नियुक्त हुये अनुमान होता है कि इनके पिता वृद्ध अथवा रोग प्रस्त होने के कारण राज्य चलाने में अक्षम थे इसी कारण खारवेल को उन्होंने युवराज पद देकर संपूर्ण राज्य भार उनके हाथ में सौंपा और तब से ही राज्य भार खारवेल के हाथ में न्यस्त हुआ । युवरान होने के बाद राजा खारवेल को राजधर्म की शिक्षा दी गई । २४ वर्ष की अवस्था में संपूर्ण राज-विद्या में उत्तीर्ण हुए और विशेषत ज्ञान और धर्म में उनकी प्रवीणता प्रशंसनीय हुई। राज्याभिषेक-खारवेल की २४ वर्ष की अवस्था में अर्थात् सन् ईस्वी से १७३ वर्ष पूर्व में उनके ३६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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