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आचार्ययक्षदेवसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् २१८
पड़ा नहीं था । अहंत पूर्व का अर्थ नया चढ़ा कर यह भी होता है........ जिसके मुकुट व्यर्थ हो गये हैं । जिनके कवच बख्तर श्रादि काट कर दो टुकड़े कर दिये गये हैं, जिनके छत्र काट कर उड़ा दिये गये हैं
५--गंधव-वेदबुधो दंप-नत-गीतवादित संदसनाहि उसव-समाज कारापनाहि च कीडापयति नगरिं [1] तथा चबुथे वसे विजाधराधिवासं अहत-पुवं कालिंग पुवराजनिवेसितं. वितध मकुटसविलमढिते च निखित छत
अनुवाद-और जिनके श्रृंगार (राजकीय चिन्ह, सोने चांदी के लोटे मारी) फेंक दिये गए हैं, जिनके रत्न और स्वापतेय ( धन ) छीन लिया गया है ऐसे सब राष्ट्रीय भोजकों को अपने चरणों में झुकाया, अब पांचवें वर्ष में नन्दराज्य के एक सौ और तीसरे वर्ष ( संवत् ) में खुदी हुई नहर को तनसुलिय के रस्ते राजधानी के अन्दर ले आए । अभिषेक छटवें वर्ष राजसूय यज्ञ के उजवते हुए। महसूल के सब रुपये ।
६-भिंगारे हित-रतन-सापतेये सवरठिक भोजके पादे वंदापयति [I] पंचमे च दानी वसे नंदराज-तिबस-सत-ओघाटित तनसुलिय-वाटा पनाडि नगरं पवेस [ति] [I] सो भिसितो च राजसुय [0] संदश-यंतोसव-कर-वणं
अनुवाद-माफ किये वैसे ही अनेक लाखों अनुग्रहों पौर जनपद को बक्सीष किए । सातवें वर्ष में राज्य करते आपकी महारानी बनधर वाली धूषिता ( Demetrios) ने मातृपदे को प्राप्त किया (१) ( कुमार १)......आठवें वर्ष में महा + + + सेना . . . 'गोरधगिरि
७--अनुग्रह अनेकानि सतसहसानि विसजति पोरं जानपदं [1] सतमं च वसं पसासतो वजि-रघरव [ ] तिघुसित-घरिनीस [-मतुकपद-पुंना [ ति? कुमार ] ... [1] अठमे च वसे-महता x सेना गोरधगिरि।
अनुवाद-को तोड़ करके राजगृह (नगर) को घेर लिया जिसके कार्यों से अवदात ( वीर कथाओं का संनाद से युनानी राजा (यवन राजा) डिमित (..... 'अपनी सेना और छकड़े एकत्र कर मथुरा में छोड़ के पीछा लौट गया.... 'नौवें वर्ष में ( वह श्री खारवेलने ) दिये हैं.... पल्लव पूर्ण
८-वीं तपाघा ) यिता राजगह उपपीडापयति [0] एतिनं च कंमापदान-संनादेन संवितसेन-वाहनो विपमुचितु मधुरं अपयातो यवनराज डि मित[ मो ? ] यछति [वि.] 'पलव''.. ___अनुवाद-कल्पवृक्षो! अश्व हस्ती रथों (उनको) चलाने वालों के साथ वैसे ही मकानों और शालाओं अग्निकुण्डों के साथ यह सब स्वीकार करने के लिए ब्राह्मणों को जो जागीरें भी दी अहत का .....
९-कपरुखे हय-गज-रध-सह-यंते सवघरावास-परिवसने स-अगिणठिया [0] सव-गहनं च कारयितुं बम्हणानं जाति परिहारं ददाति [ अरहतो. 'व""नगिय
अनुवाद-राजभवन रूप महाविजय (नाम का) प्रासाद उसने अड़तीस लाख (पण) से बनवाया। दसवें वर्ष में दंड, संधी साम प्रधान ( उसने ) भूमि विजय करने के लिये भारतवर्ष में प्रस्थान किया'... "जिन्हों के ऊपर ( आपने ) चढ़ाई करी उन से मणिरत्न वगैरह प्राप्त किये।
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