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वि० पू० १८२ वर्षे ।
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास हस्तिगुफा का शिलालेख और उसका भाषानुकाद
१--नमो अराहंतानं []] नमो सवधिधानं [1] ऐरेन महाराजेन महामेघवाहनेन चेतिराज वसवधनेन पसथसुभलखनेन चतुरंतलुठितगुनोपहितेन कलिंगाधिपतिना सिरि खारवेलेन ।
अनुवाद - अरिहन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, ऐर (ऐल) महाराजा महामेघवाहन (मरेन्द्र) चेदिराजवंशवर्धन, प्रशस्त, शुभ लक्षण युक्त, चतुरन्त व्यापि गुण युक्त कलिंगाधिपति श्री खारवेल ने
२--पंदरसवसानि सिरि-कडार-सरीरवता कीडिता कुमारकीडिका [I] ततो लेखरूपगणनाववहार-विधिविसारदेन सबविजावदातेन नववसानि योवरजं पसासितं [ संपुण-चतु-वीसति-बसो तदानि वधमान-सेसवो वेनाभिवि-जयोततिये
अनुवाद-पन्द्रह वर्ष पर्यन्त श्री कडार (गौर वर्ण युक्त) शारीरिक स्वरूप वाले ने बाल्यावस्था की क्रीडाएं की । इसके पीछे लेख्य ( सरकारी फरियाद नामा श्रादि ) रूप ( टंकशाल ) गणित ( राज्य की आय व्यय तथा हिसाब ) व्यवहार (नियमोपनियम ) और विधि (धर्म शास्त्र आदि ) विषयों में विशारद हो सर्व विद्यावदात ( सर्व विद्याओं में प्रबुद्ध) ऐसे ( उन्होंने ) नौ वर्ष पर्यन्त युवराज पद पर रह कर शासन का कार्य किया । उस समय पूर्ण चौबीस वर्ष की आयु में जोकि बालवय से वधमान और जो अभिविजय में वेन (राज ) है ऐसे वह तीसरे
३- कलिंगराजवंस-पुरिसयुगे महाराजाभिसेचनं पापुनाति [0] अभिसितमतो च पधमे वसे यात-विहतगोपुर-पाकार-निवेसनं पटिसंखारयति [1] कलिंगनगरि [f] खबीर-इसि-ताल-तडागपाडि यो च बंधापयति [1] सवुयानपटिसंठपनं च
अनुवाद-पुरुष युग में ( तीसरी पुश्त में ) कलिंग के राज्यवंश में राज्याभिषेक पाये । अभिषेक होने के पश्चात प्रथम वर्ष में प्रबल वायु उपद्रव से टूटे हुए दरवाजे वाले किले का जीर्णोद्धार कराया । राजधानी कलिंगनगर में ऋषि खिबीर के तालाब और किनारे बँधवाए । सब बगीचों की मरम्मत
४--कारयति [u] पनतीसाहि सतसहसेहि पकतियो च रंजयति [0] दुतिये च वसे अचितयिता सातकणि पछिमदिसं हय-गज-नर-रथ-बहुलं दंडं पठापयति [1] कन्हवेंनां गताय च सेनाय वितासितं मुसिकनगरं [0] ततिये पुन वसे
अनुवाद-करवाई । पैंतीस लाख प्रकृति (प्रजा) का रंजन किया। दूसरे वर्ष में सातकणि (सातकणि) की किचिंत भी परवाह न करके पश्चिम दिशा में चढ़ाई करने को घोड़े हाथी, रथ और पैदल सहित बड़ी सेना भेजी। कन्हवेनों ( कृष्णवेणा ) नदी पर पहुँची हुई सेना से मुसिकभूषिका नगर को त्रास पहुँचाया । और तीसरे वर्ष में गंधर्व वेद के पंडित ऐसे ( उन्होंने ) दंप ( डफ ? ) नृत्य, गीत, वादित्र के संदर्शन ( तमाशे ) आदि से उत्सव समाज ( नाटक, कुश्ती आदि ) करवा कर नगर को खेलाया; और चौथे वर्ष में विद्याधराधिवासे को केगिस को कलिङ्ग के पूर्ववर्ती राजाओं ने बनवाया था और जो पहिले कभी भी
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