________________
वि० पू० १८३ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
__ श्रीमती ने अपने पिता को कह कर जिस वृक्ष पर से शामली भूमि पर गिरी थी उस भूमि पर तीर्थकर मुनिसुव्रतदेव का एक बावन देहरियों संयुक्त भव्य देवालय बना दिया जो शामली की स्मृति करवाने के कारण उस मन्दिर का नाम 'शामलीबिहार' रख दिया। यह विहार एक तीर्थ स्वरूप में माने जाने लगा इत्यादि वर्णन है उस मन्दिर का समय समय जीर्णोद्धार भी हुआ शायद् आचार्य सुहस्ति के समय तक वह मन्दिर मौजूद भी होगा । और उस तीर्थ की यात्राथ सूरिजी भरोच पधारे हों। पर आज तो वह मन्दिर दृष्टिगोचर नहीं होता है हाँ वर्तमान में भरूच्छ नगर में एक मुनिसुव्रतदेव का प्राचीन मन्दिर विद्यमान जरूर है शायद यह शामलों विहार ही हो जिसके दर्शन इस किताब के लेखक ने वि० सं० १९७४ में किये थे ।
आचार्य महागिरि और आचार्य सुहस्तिसूरि जैन समाज में बहुत ही प्रसिद्ध है आपने जैन धर्म के प्रचार एवं उन्नति के ऐसे ऐसे चोखे और अनोखे कार्य किये हैं कि जैन समाज उनको कभी भूल ही नहीं सकती है इतना ही क्यों पर जैन समाज आप के उपकारों से आज भी आपकी ऋणी है और भविष्य में रहेगी ।
इन युगलाचार्यों के समय पूर्व हम केवल एक गोदासगच्छ और उनकी चार शाखाएँ के दर्शन कर आये है पर इन दोनों आचार्यों की शिष्य परम्परा से तो अनेक गच्छ कुल और शाखाएँ के दर्शन करते हैं जिसका संक्षिप्त से पाठकों को दिग्दर्शन करवा देते हैं कि भगवान महावीर की एक ही समुदाय में अलग अलग कितने गच्छ कुल और शाखाएँ का प्रादुर्भाव होकर समुदायिक शक्ति को किस प्रकार कमजोर बना दी थी शायद् जैनधर्म उन्नति के उच्चेशिखर पर पहुँच गया था यह कलिकाल की कुटिल गति से सहन नहीं हुआ हो अतः उसके प्रकोप से ही इस प्रकार गच्छों के द्वारा जैनधर्म अनेक विभागों में विभक्त हो गया हो ?
__ आर्य महागिरि के मुख्य आठ शिष्य थे:-१-उत्तर २ बलिस्सह ३ धनाड्य ४ श्रीभद्र ५ कौडिन्य ६ नाग ७ नागमित्र और ८ रोहगुप्त एवं आठ शिष्य थे जिसमें रोहगुप्त द्वारा त्रिराशिक मत की उत्पत्ति हुई जिसको हम आगे चल कर निन्हवों के अधिकार में सात निन्हवों के साथ लिखेंगे।
आर्य महागिरि के शिष्य से उत्तर बलिस्सह नामक शिष्य से उत्तरबलिस्सह नाम का गच्छ निकला और इस गच्छ की चार शाखाएँ भी हो गई १-कौशंबिका २ सौरितका ३ कौकुंबीनी ४ चन्दनागरी ।
आर्य सुहस्तिसूरि के मुख्य बारह शिष्य हुए:-१-रोहण २-भद्रयश ३-मेघ ४-कामद्धि ५-सुस्थि ६सुप्रतिबुद्ध ७-रक्षित ८-रोहगुप्त ९-ऋषिगुप्त १०-श्रीगुप्त ११-ब्रह्मा और १२-सोम । इन बारह शिष्यों से कितने गच्छ एवं शाखाएँ निकली । जिस गच्छ कुल और शाखाएँ के नाम इस प्रकार हैं ।
१-उद्देहगच्छ-आर्य रोहण से उदेहगच्छ निकला इस गच्छ से छ कुल और चार शाखाएं भी निकली जो कुलों के नाम :-१ नादभूत २ सोमभून ३ उल्लगच्छ ४ हस्तलिप्त ५ नंदिम और ६ पारिहासक और चार शाखाएं जिसके नाम :-१ उडुंबरिका २ मासपूरिका ३ मतिपत्रका ४ पूर्णपत्रका ।
२-चारणगच्छ-आर्य श्रीगुप्त से चारणगच्छ निकला इससे सातकुल और चार शाखाए निकली जिसमें कुलों के नाम :-१वत्सलिज्ज २ प्रीतिधर्मिक ३ हालिम ४ पुष्पमित्रिक ५ मालिम ६ आर्य वेड़क ७ कृष्णसेख तथा चार शाखाओं के नाम १ हारित मालागारी २ संकासीका ३ गवेधुका ४ ब्रजनागरी
Jain Educ
e rnational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org