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________________ आचार्य रत्नप्रभसूरि का जीवन ] [ओसवाल संवत् १८७ की रचना की जिसके पढ़ने से महादेव का लिंग स्वयं फाट कर आवन्तिपार्श्वनाथ की मूर्ति प्रकट हुई जिसका वर्णन मैं आचार्य सिद्धसेनदिवाकर के जीवन में विस्तार पूर्वक लिलूँगा। शामली विहार-आचार्य सुहस्तिसूरि अपने शिष्य मण्डल के साथ भूभ्रमन करते हुए एक समय तीर्थङ्कर मुनिसुव्रत की यात्रार्थ भरोच नगर में पधारे वहाँ के श्रीसंघ ने सूरिजी महाराज का बड़े ही उत्साह एवं समारोह से स्वागत किया सूरिजी ने शामली विहार का दर्शन कर उसकी उत्पत्ति के विषय में इस प्रकार कहा जाता है कि इसी भरोच नगर के पास सदैव बहने वाली नर्मदा नदी के कन्नारे एक बन के अन्दर सघन छाया और फल फूलों से सम्रद्ध वृक्ष था जिस पर एक शामली अपने बच्चों के साथ रहती थी और उस बन के फल फूलों से अपने बच्चों का पोषण करती थी वहाँ एक शिकारी खटीक भी श्राया करता था जो पशुओं को मार कर मांस लेजाकर उसको बेचकर अपनी आजीविका करता था जब खटीक मांस तैयार करता था तब कभी कभी वह शामली पक्षी उस पर भ्रष्टा कर दिया करती थी इससे खटीक गुस्से होकर एक बान शामली को ऐसा मारा कि वह घायल होकर भूमि पर गिर पड़ी। भाग्यवशात् उस समय एक श्रावक उस वन में आ निकला और उसने गिरी हुई शामली की त्रास को देखकर उसके पास जाकर नवकार मन्त्र सुनाया शामली के भाग्य था कि उसने मरती मरती भी नवकार मन्त्र को सुनकर श्रद्धा सम्पन्न होगई । यही कारण है कि शामली मर कर एक सिंहल देश का राजा श्रीचन्द की रानी चन्द्रावती की कुक्ष में पुत्रीपने उत्पन्न हुई जब पुत्री का जन्म हुआ तो अनेक महोत्सवों के साथ उसका नाम श्रीमती रख दिया श्रीमती अनेक लालन पालन से राजा के घर पर वृद्धि पा रही थी राजा का किसी पूर्व भव संस्कारों से उस पर इतना प्रेम था कि वह जहाँ जाता था अपनी पुत्री श्रीमती को साथ ले जाता था। एक समय किसी कार्यवशात राजा श्रीचन्द भरोच नगर गया था वहाँ भी अपनी पुत्री श्रीमती को साथ लेगया भरोचनगर एक व्यापार का केन्द्र था राजा बाजार में गया तो किसी वस्तु खरीदने के लिये एक ऋषभदत्त श्रेष्टि की दुकान पर जा निकला उस समय ऋषभदत्त निर्वृति म बैठा नवकार मन्त्र का जाप कर रहा था जब राजकन्या श्रीमती ने सेठ के मुह से नवकार मन्त्र सुना तो उसको प्रिय लगा इतना ही क्यों पर राजकन्या उस शब्द पर इतनी मोहित होगई कि सेठजी से प्रार्थना की कि सेठजी आप क्या जाप कर रहे हो ? सेठ ने कहा कि मैं नवकार मन्त्र का जाप कर रहा हूँ जो सब शास्त्रों एवं सब धर्मों का सार है और इसके जाप से मनुष्य सर्व सम्मति एवं स्वर्ग मोक्ष प्राप्त कर सकता है इत्यादि सेठ ने नवकारमन्त्र का महात्म्य कहा जिसको सुनकर राजकन्या ने पुनः प्रार्थना की कि सेठजी यह मन्त्र आप मुझे सिखा दें तो मैं श्रापका बड़ा ही अहसान मानूंगी सेठजी ने कहा इसमें अहसान की क्या बात है मैं आपको मेरी स्वीधर्मी बेहन समझ कर खुशी के साथ सिखा दूंगा बस सेठजी ने दो चार वार कहा और श्रीमती ने बड़े ही प्रेम से उसे कण्ठस्थ कर लिया श्रीमती ज्यों ज्यों श्रद्धा पूर्वक निर्मल दिल से नवकार मन्त्र का जाप करने लगी त्यों त्यों उनको आनन्द आता गया आखिर उस नवकार मन्त्र के जाप से श्रीमती को जातिस्मरण ज्ञान हो आया और उसने अपना पूर्वभव देखा कि मैं इस नगर के उपवन में रहने वाली शामली पाक्षी थी खटीक के हाथों से मारी गई पर सेठजी के नवकार मन्त्र सुनाने से मैंने राजा के घर पर जन्म लिया है और आज मैं सुख साहबी भोग रही हूँ यह सब नवकार महामन्त्र का ही प्रभाव है आज मैं चाहूँ तो उस खटीक का बदला ले सकती हूँ पर ऐसा करने से और भी कर्म बन्ध का कारण होगा जीव सब कर्माधिन है । virwwwv Jain Education International For Private & Personal Use Only 30 www.amerary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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